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29.6.08

हम उल्लू हैं

इधर मुझे कई दिनों तक हरटीरिया के दौरे पड़ते रहे.जिन भडासी भाइयों ने इस बीमारी का नाम न मालूम हो वे डा.रूपेश से संपर्क कर सकते हैं.मुझे इसके बारे में सिर्फ उतनी ही जानकारी है,जितनी किसी मरीज को होती है.जैसे फीमेल पर्सन को हिज के हिस्टीरिया का दौरा पड़ता है,ठीक वैसे ही मेल पर्सन को हर के लिए के हरटीरिया का दौरा पड़ता है.सो इधर कई दिनों तक ज्यादातर समय पंडिताइन मुझे अंक में भर कर दौरे के असर को दूर करने के प्रयास करती रहीं.स्वस्थ हुआ तो करुणाकर प्रकरण भीतर तक बींध गया.सो कुछ बात मन में ही रह गई.जो अब प्रकट कर रहा हूं.पहली यह कि नीरव भैया मुझसे बड़े उल्लू हैं.उन्होंने सुरापान के लिए शास्त्रसम्मत प्रमाण देकर मेरी दलील की पुष्टि .उसके लिए तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि छोटे-छोटे मियां,बड़े मियां सुभान अल्लाह.यशवंत भाई ने कहा था कि भाई पीसी रामपुरिया व भाई राजीव का स्वागत करना है.भाई जहां तक रामपुरिया जी की बात है तो मैं कन्फर्म हूं कि वह उल्लू हैं.मैने उनके ब्लाग पर उनकी फोटो देखी है.रही बात राजीव की तो वह भी उल्लू ही होंगे,क्योंकि बकौल उनके वह ३८ साल के हो चुके हैं.अब एक घटना की चर्चा करूंगा.हुआ यह कि बचपन में एक दिन पिता श्री ने मुझे उल्लू कह दिया तो मेरी माता जी उनसे लड़ पड़ीं.बोलीं,मेरा बेटा उल्लू का पट्ठा हो सकता है.उल्लू नहीं.पिता जी इस बात पर बिगड़ गए.माता जी ने फिर जवाब दिया.अभी तुम उल्लू हो क्योंकि बतौर गृहलक्षमी मैं तुम पर सवार रहती हूं.बेचारा बेटा अभी बच्चा है.उसे अभी उल्लू बनाना ठीक नहीं.हालांकि कुछ साल बाद मैं भी उल्लू बन गया.अब मेरे ऊपर गृहलक्षमी सवार रहती हैं.जय भडास

2 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

हाँ भाई त्रिपाठीजी ! आपने सही याद दिलाया ! हम तो पैदायशी उल्लू हैं | मैंने तो सोचा था आपको मालुम होगा |इसीलिए आप लोगों ने मुझे भडासी (उल्लू) बनाया | वैसे भी हमारी अशिक्षा कोलकाता में हुई है और वहाँ उल्लू को बड़ा शुभ पक्षी माना जाता है | और शादी विवाह, नित्य पूजन में उल्लू की ध्वनी का बड़ा महत्त्व होता है |
इस लिए जब हमने इस उल्लू अवतार में जनम लिया तो पुरे घर में कोहराम मच गया | और सर्वसम्मति से ये फैसला पंडितों ने लिया की इस उल्लू को एक मटकी में रख कर, उसका मुंह बंद कर के, हुगली नदी में प्रवाहित कर दो | हमको इतना गुस्सा आया था उन पंडितो पर की , आपको क्या बताए ? और बस ब्राह्मण के घर जनम लेकर भी ब्राह्मण कर्म छोड़कर, भडासी बनने का इंतजार करते रहे | और भाई त्रिपाठीजी .. आप ये समझ लो की उन पंडितों ने तो हमारा पैदा होते ही बोलो राम करवा दिया था | बाद में ऐसा हुवा की .. जब हमको जिंदा जल समाधि देने की तैयारी चल रही थी, वहाँ पर एक बंगाली सज्जन आ गए और उन्होंने हमारे वालदेन को उल्लू की महिमा बताई , तब हमारी जल समाधि टल पायी |
और भाई एक बात .. हमारे ब्लॉग पर जो फोटो लगी है वो उम्र की वजह से ऎसी वनमानुष जैसी दिखने लग गई है | आप यकीन करो हम पैदाईशी और वर्त्तमान में भी सौ प्रतिशत उल्लू हैं |
और सबसे बड़ा प्रमाण तो ये है की आजकल हम उल्लुओं (भडासियों) की, अपनी पिछले जनम के बिछडे भाई बंधुओं की मंडली में शामिल हो गए हैं | नही तो वनमानुष का उल्लुओं में क्या काम ?
कोई शक ?

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

जगदीश भाई,आपने भड़ासी भाई-बहनो को उल्लू कहा तो प्यार का घनत्त्व और गहरा हो गया क्योंकि मैं अपने दिवंगत पालतू उल्लू जिसका नाम "व्हिसिल" रखा था, बहुत प्यार करता हूं भले वो अब देह में नहीं है लेकिन मेरे दिल मे अब भी हिस्स्स... की आवाज करके मुझे इंसानी दरिंदो से सावधान करता रहता है...
जय जय भड़ास