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30.6.08

बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया

कौन है जो फस्ल सारी इस चमन की खा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
प्यार कहते हैं किसे है कौन से जादू का नाम
आंख करती है इशारे दिल का हो जाता है काम
बारहवें बच्चे से अपनी तेरहवीं करवा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
गुस्ल करवाने को कांधे पर लिए जाते हैं लोग
ऐसे बूढे शेख को भी पांचवी शादी का योग
जाते-जाते एक अंधा मौलवी बतला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
जबसे बस्ती में हमारे एक थाना है खुला
घूमता हर जेबकतरा दूध का होकर धुला
चोर थानेदार को फिर आईना दिखला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
चांद पूनम का मुझे कल घर के पिछवाड़े मिला
मन के गुलदस्ते में मेरे फूल गूलर का खिला
ख्वाब टूटा जिस घड़ी दिन में अंधेरा छा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया।
पं. सुरेश नीरव
( त्रिपाठीजी ने मुझे उल्लू कहकर अपनी बिरादरी में शामिल करने की जो उदारता दिखलाई, मैं सपरिवार उनका आभारी हूं। पी.सी. रामपुरियाजी ने उल्लू महात्म बताकर हमें और अपने आप को जिस चतुराई से महिमामंडित किया है,यह काम भी कोई विद्वान उल्लू ही कर सकता है, कोई काठ का उल्लू नहीं। उल्लू की बातचीत सुनकर, गधे को गुस्सा आ गया। पेश है उसका बयान...गजल की शक्ल में। यकीनन गधों को पसंद आएगा और जिन्हें पसंद न आए समझिए वह सचमुच ही गधे हैं। उनके गधत्व को अग्रिम दुलत्ति-प्रणाम। )

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी, भीषण संकट है कि मैं किस प्रजाति का हुआ? गधा या उल्लू? क्योंकि कविता तो मुझे बेहद पसंद आई या फिर मैं इन दोनो के गुणों का वर्णसंकर पशुनुमा पक्षी "गधुल्लू" हूं... :)
जय जय भड़ास