कई जगह हुए धमाके में से एक दिल्ली का दिल कनाटप्लेस भी था जहाँ मैं ख़ुद मौजूद था। धमाके की सुचना जैसे ही फ़ैली अखबारनवीसों के खिलते चेहरे का चश्मदीद गवाह भी। धमाके के बाद पोलिस और मीडिया जनों की मुस्तैदी देखने लायक थी, आखिर दोनों में यही तो समानता है की घटना होने के तुंरत बाद ही दोनों मुस्तैद होते हैं, एक को खानापूर्ति करनी होती है तो दुसरे को ख़बर को बेचने की जल्दी। मुस्तैदी और कर्तव्य परायणता की कुछ झलकियाँ भी इन तस्वीरों के बहाने
पत्रकारों का झुंड, ख़बर को बेचने की जल्दी में सब कुछ दांव पर।
पत्रकारों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाते पुलिसकर्मी, मुस्तैदी जो दिखानी है.
संवेदनशीलता की पराकाष्ठा, मगर किसके लिए ?
घटना के वक्त मैं एक प्रतिष्ठित अखबार के सम्पादकीय में था और गवाह उसका कि इस धमाके को कैसे अखबारनवीस कैश कर सकते हैं, सबको फिकर कि कोई मुद्दा छुट ना जाए।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है, बिहार में कोशी का पानी उतरा और उतर गयी मीडिया के सर से कोशी का भूत. क्यूंकि बिकाऊ बाढ़ का पानी था बाढ़ की बाद अन्न अन्न को तरसते लोग नहीं.
बिहार के बाढ़ के प्रति मीडिया, प्रशासन और विकाश पुरुष कि संवेदनशीलता का इन्तेजार कीजिये। अगले लेख में.
जय जय भड़ास
4 comments:
bilkul theek kaha. barh ke baad bomb sahi t r p to badani hai .abhi to sab par exculsiv news hogi
ye hi to rona hai.
रजनीश जी,
आप १०० प्रतिशत ठीक है. पर इसी बात मैं एक बात जो आप नोट नही कर पाए " वो छोटा गुब्बारे बेचने वाला बच्चा" उस की हालत क्या बना दी थी मीडिया और पुलिस ने, बहुत ही शर्मशार करने वाली. अगले से यदि कोई भी इस तरह का गवाह हुआ तो वो कभी नही कहेगा की उसने कुछ देखा.
जय माता दी
जय भड़ास
मिस मंजुराज ठाकुर
sab Editor www.narmadanchal.in
एक बहुत ही अच्दा प्रयास है यह साइट जिसकी प्रशंसा की जाना चाहिए। मीडिया के लिए भी कोई न कोई आचार संहिता अवश्य ही होना चाहिए। अखिलेश शुक्ल संपादक कथा चक्र
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