कुछ मदारी हमारे गाँव आए हैं,
नारों औ' वादों की नाव लाए हैं।
मदारी डमरू बजाएगा,
बन्दर जनता को खूब झुमाएगा।
मदारी भावनाओं को भड़काएगा,
बन्दर जनता को आपस में लड़ाएगा।
चुनावों में पैतरेबाजी खूब करते हैं,
नेता हमारे मदारी का रूप धरते हैं।
वादों में जख्मों को भरपूर भरते हैं,
इनके चौखट पे सर मजबूर रखते हैं।
सबकी ख़बर रखते हैं ये नेता,
जीतने पर उन्हीं की अनदेखी करते हैं ये नेता।
सत्ता की सौदागरी में ये माहिर हैं,
किरने बड़े ये लोकसेवक जगजाहिर है।
संसद के सदन में नेताओं ने ली खूब अंगडाई,
चुनावों में इनके शब्दों में गिरावट खूब आई।
गठबंधन की गणित से नेता परेशान है,
बहुमत जुटाने में अटकी सबकी जान है।
संसद अब बन चुका बाज़ार है,
लोकतंत्र लुटा, पिटा औ' बेज़ार है।
सत्ता सुख भोगने को बेकरार हैं,
नेताओं को सिर्फ़ कुर्सी से प्यार है।
हम जैसे वोटरों पर धिक्कार है,
जो वोट न डाले उसका जीना बेकार है।
15.5.09
ग़ज़ल
Labels: ग़ज़ल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
bahoot khoob
Post a Comment