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3.5.09

मेरी भावना

भावनाओ में वहता हूँ तो लोग कायर समझते हे
भावनाओं में नही वहता हो तो लोग पत्थर दिल समझते हे
नही आता मुझे समझ करू में क्या
दिल करता जाके लगा दू उन पहाडो से छलाग
फिर में भावनाओ में बह जाता हु
माँ की ममता की छाँव में बहन की राखी में
किसी के प्यार में
लेकिन सोचता हु
कब तक बंधा रहूगा इनकी भावनाओ में
कभी तो जाना ही होगा इन भावनाओ को तोड़कर
क्योंकि नही रख पाउँगा जिन्दगी के बाद
इन भावनाओ को सहेजकर

5 comments:

शिखा शुक्ला said...

जीत जी ,
ये भावनाए ही तो जीने की वजह होती है इनके साथ से ही जिन्दगी है ,वैसे रचना में भी भावनाए झलक रही है.

jeet said...

bhavna hum mai nahi samjhane walo me hoti hai

l k chhajer said...

भावना अजर अमर है कभी मर नहीं सकती हैं......

मंदिर जाओ , मस्जिद जाओ ,चाहे जाओ गिरजाघर

अगर आपकी भावना शुद्ध नहीं है तो

न भगवान सुनेगा, न अल्लाह और न ही ईसामसिही तक आवाज पहुँचेगी

वैसे लोग कहते तो बहुत हैं की ....

जैसे किसी को जिन्दा रहने के लिए साँसों की ज़रुरत है..

बिलकुल वैसे ही मुझे जिंदा रहने के लिए भावना की ज़रुरत हैं....

क्यांकि भावना मेरे स्वासों की सरगम है , मेरे बच्चों की माँ है ......

भावना अजर अमर है कभी मर नहीं सकती हैं......

...लूण करण छाजेड , बीकानेर

निर्मला कपिला said...

जिस आदमी मे भावनायें नहीं होती वो तो पहले ही मरे समान होता है उसे छलाँग लगाने की भी जरूरत नहीं पडती आप अपनी भावनायों को संजो कर रखें

Thar Express said...

Dhaywad , Bhawana ko sanjokar rakhana hi Bhawana hai.