दर्द समझो दवा समझ लोगे।
ज्योति समझो दीया समझ लोगे ।
व्यर्थ देरी हरम में उलझे हो -
ख़ुद को समझो खुदा समझ लोगे ।
कंगन कभी न टूटे ऐसा कोई हाथ नही है।
चंदन कभी न छूटे ऐसा कोई माथ नही है ।
चारो और भीड़ अपनों की लेकिन रिश्तो का-
बंधन कभी न टूटे ऐसा कोई साथ नही है ।
प्यार की पहचान लेकर जी रहा हूँ।
दर्द का उनमान लेकर जी रहा हूँ ।
जाति भाषा धर्म से आहत हुआ -
अधमरा इंसान लेकर जी रहा हूँ ।।
ये अहिंसा मेरा मन्दिर मेरी आजादी है
कर्म से भाग न पाये वो मुनादी है॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
9.5.09
Loksangharsha: ख़ुद को समझो खुदा समझ लोगे
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