यह दुनिया की विलक्षण सामयिक घटना है कि अमेरिकी सैन्य संस्थान पेंटागन ने शांति पुरूष नॉम चोमस्की को अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है। देखना है वह यह सम्मान लेते हैं या ठुकराते हैं। भारत में नागार्जुन के साथ ऐसी ही घटना हो चुकी है जब स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी ने नागार्जुन को पुरस्कार दिया था। नागार्जुन ने अपनी सारी जिंदगी श्रीमती गांधी के खिलाफ जमकर लिखा,जेपी आंदोलन में भी भाग लिया। इसके बावजूद उन्हें पुरस्कृत किया गया। ठीक वैसा ही चोमस्की के साथ हुआ है। अमरीकी प्रशासन की विदेश नीति,घरेलू नीतियों और खासकर युद्धपंथी नीतियों के खिलाफ सारी दुनिया में शांति का बिगुल बजाने वाले चोम्सकी को दुनिया के सबसे बर्बर सैन्य संस्थान पेंटागन ने सम्मान के लिए आखिर क्यों चुना ? इसका अभी तक सटीक उत्तर नहीं मिला है। स्वयं चोमस्की भी इस खबर को सुनकर गुस्से में बोल पडे कि सर्वसत्तावादी सरकारें कई बार ऐसा करती हैं।
चोमस्की के अनुसार अमरीका आज जिस अवस्था में पहुँच चुका है उसमें जनतंत्र के साथ उसके अन्तर्विरोध पहले की तुलना में ज्यादा गहरे हुए हैं। पहले अमरीका में जनतंत्र की कम से कम शासकवर्ग के दोनों प्रधानदल वकालत किया करते थे, किंतु प्रथम मध्यपूर्व युध्द (1992-93)के बाद से घरेलू स्तर पर इस प्रसंग में गिरावट आयी है। अमरीकी प्रशासन का नागरिकों के निजी जीवन में हस्तक्षेप बढ़ा है। प्रोपेगैण्डा के स्तर पर अमरीका के द्वारा जनतंत्र और जनतांत्रिक मूल्यों और संरचनाओं का अहर्निश प्रचार होता रहता है। जिन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और मंचों में अमरीका का प्रभुत्व है वहां पर भी इनका भोंपू की तरह प्रचार करता है और जनतंत्र के वाचिक शेर की तरह दहाड़ता है। किंतु व्यवहार में जब कोई देश अपने यहां जनतंत्र स्थापित करने की कोशिश करता है तो उसमें अमरीकी प्रशासन अडंगे लगाता है उन ताकतों को समर्थन देता है जो जनतंत्र और सुधारों के विरोधी हैं। अतिराष्ट्रवादी ,प्रतिक्रियावादी,सैन्यवादी,फासिस्ट और पृथकतावादी तत्वों को राजनीतिक समर्थन देता रहा है। जनतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों को गिराने के लिए राजनीतिक और सैन्य हस्तक्षेप करता रहा है।
चोम्स्की के अनुसार अमरीकी प्रशासन की ऐसी सरकार बनाने में दिलचस्पी है जिसकी घरेलू और विदेशी पूंजी निवेश के प्रति वचनबध्दता हो। एक्सपोर्ट के लिए उत्पादन करने में ध्यान दे और मुनाफा कमाकर देश के बाहर ले जाने में मदद करे। चोम्स्की के अनुसार अमरीका के इस लक्ष्य को कभी चुनौती नहीं दी गयी। उल्लेखनीय है यह नीति अमरीका के गुप्त सरकारी दस्तावेजों में मौजूद है, जिसका पहलीबार चोम्स्की ने ही रहस्योद्धाटन किया था। अमरीकी नीतिनिर्धारक इन्हीं लक्ष्यों के आधार पर सारी दुनिया को सोचने और आचरण करने के लिए बाध्य करते हैं।
अमरीकी नीति का लक्ष्य है जनतंत्र और सामाजिक सुधारों का विरोध करना। अमरीकी प्रशासन के अनुसार उत्पीडित देशों में जनतंत्र और सामाजिक सामाजिक सुधार कभी भी जनप्रिय नहीं रहे हैं। उत्पीड़ित देशों में जनतंत्र और सामाजिक सुधारों के पक्ष में बोलने और आन्दोलन करने वाले ज्यादा लोग नजर ही नहीं आएंगे। आमतौर पर बहुत छोटा सामाजिक तबका ही इनके पक्ष में दिखाई देगा। अमरीकी नीति की सम्पूर्ण निर्भरता सेना पर है। वह ऐसे संगठनों के साथ मोर्चा बनाना पसंद करता रहा है जो सैन्यवादी हों, फौजी हों। अमरीकी प्रशासन ऐसे सभी किस्म के गुटों के सफाए के लिए काम करता रहा है जो अमरीका विरोधी प्रचार अभियान में संलग्न रहते हैं। वे ऐसे किसी भी स्थानीय अथवा जातीय प्रतिरोधी ग्रुप को उभरने नहीं देते जो अमरीकी प्रशासन के हाथ के बाहर चला जाए। यदि ऐसा होता है तो उसका सफाया कर दिया जाता है अथवा हाशिए पर पहुँचा दिया जाता है।
चोमस्की के अनुसार अमरीकी प्रशासन की नीति है जनतांत्रिक ढंग़ से चुनी गई सरकारों को गिराना, इसके लिए जरूरी हो तो खून-खराबा भी करना। खून-खराबे में मारे गए अथवा उत्पीड़ित गरीबों के लिए आर्थिक और अन्य किस्म की मदद पहुँचाना। आर्थिक मदद के काम में अमूमन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मदद ली जाती है। तीसरी दुनिया के देशों में चोम्स्की के अनुसार अमरीकी नीति है '' थोड़ा पालन और नकली प्रेम का प्रदर्शन।'' अमरीका ने लगातार ऐसे जनतंत्र का विरोध किया है जिसके परिणामों पर उसका नियंत्रण न हो। जनतंत्र की बिडम्बना यह है कि उसके जरिए आने वाली सरकार अमरीकी निवेशकों की बनिस्पत अपने देश की जनता की जरूरतों के प्रति जबावदेह होती है, जनता की जरूरतों के प्रति राय जाहिर करती है। चोम्स्की ने लंदन स्थित रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के एक अनुसंधान का जिक्र किया है। जिसके अनुसार अमरीका जनतंत्र के प्रति रश्म-अदायगी करता रहा है।
चोम्स्की ने अमरीकी हस्तक्षेप की पध्दति के बारे में लिखा अमरीकी उत्पीडन की सामान्य पध्दति वही है जिसे कोंट्रा विद्रोहियों ने निकारागुआ में लागू किया था। अथवा अलसल्वाडोर या ग्वाटेमाला में अप्रत्यक्ष ढंग से आतंकी गिरोहों की मदद के जरिए लागू किया गया, इन ग्रुपों के हिंसाचार का लक्ष्य होता है साधारण लोगों की हत्या करना, बर्बर हिंसाचार, परपीडक आनंददायी पिटायी, पहाडों से बच्चों को फेंक देना, औरतों को फांसी लगाकर मार देना, उनके स्तन काट लेना, उनकी चमड़ी उधेड़ देना, चेहरे की चमड़ी को नष्ट कर देना जिससे होने वाले खूनी रिसाव के कारण उनका मौत हो जाती थी, साधारण लोगों के हाथ,पैर अथवा सिर अलग कर देना। अमरीका नीति का लक्ष्य है स्वतंत्र राष्ट्रवाद की हत्या करना और इसके लिए संघर्षरत ताकतों को कुचलना।
हमें सोचना चाहिए क्या अमरीकी प्रशासन के बारे में इतनी कटु राय रखने पर भी चोमस्की को यह सम्मान लेना चाहिए ?
1 comment:
कुछ भी बोलना स्वाभिमान को ठेस पहुचाना होगा
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