भारत एक विषम संकट में फंस सकता है अगर खेती की जमीन को उद्योग धंधों को खड़ा करने की मुहिम में अंधाधुंध इस्तेमाल में परहेज नहीं बरता गया। अभी कहा जा रहा है कि उद्योग धंधो के बिना पूरा विकास संभव नहीं है। इस उद्देश्य की पूर्ति में खेती की उपजाऊ जमान पर उद्योग लगाने की कोशिश हो रही है। इतना ही नहीं भविष्य के खाद्यान्न की जरूरत को दरकिनार कर बंजर पड़ी जमीनों को खेती योग्य बनाने की मुहिम भी लगभग ठंडी पड़ गई है। इसका खामियाजा यह भुगतना होगा कि आने वाले कुछ दशकों में दुनिया की जो आबादी बढ़ेगी उसके लिए पेट भर अनाज भी मयस्सर नहीं हो पाएगा। कम से कम भारत इस संकट में ज्यादा फंसता नजर आ रहा है। इसकी कई वजहें हैं। पहला यह कि खेती योग्य जमीन बढ़ाने की जगह उपजाऊ जमीन पर उद्योग लगाने की मुहिम चल रही है। दूसरा यह कि खेती और किसानों की हालत भारत में सोचनीय होती जा रही है। इसी कारण किसान अब पीढ़ी दर पीढ़ी किसान नहीं रहना चाहता। खेत मजदूरों का गांवों से भारी पैमाने पर पलायन हो रहा है। अगर खेती इतने फायदे का धंधा नही बन पाती जिससे किसान खुशहाल रह सके तो यह दशा किसा भी सरकार के लिए सोचनीय हो सकती है। मैं भी एक किसान का बेटा हूं मगर सपने में भी नहीं सोच पारहा हूं कि अच्छी तालीम पाने को बाद एपने बेटे को पुस्तैनी खेती के धंधे में लगा पाऊं। आखिर क्यों ? क्या कोई सरकार इस बात के लिए चिंतित है कि खेती को मूलभत ढांचा ध्वस्त न होने पाए। कोई ठोस प्रयास की जगह किसानों की भलाई के दिखावे भर किए जा रहे हैं जबकि किसान आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं। वह भी ऐसे समय जब संयुक्त राष्ट्रसंघ ने चेतावनी दे डाली है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में खाद्यान्न का भारी संकट पैदा हो सकता है। दुनिया भर में विश्व खाद्य दिवस मनाए जाने के इस मौके पर कम से कम भारत का हर नागरिक इन सवालों का जवाब ढूंढे कि आखिर क्यों उन्हें इस संकट में धकेल रही हैं हमारी सरकारें ? जाहिर है अनाज किसी मंत्री, उद्योगपति या उनके दलालों को कम नहीं पड़ेगा। भूख से मरेगा आम आदमी ही। आप भी देखें इस रिपोर्ट में क्या है ?
पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें।
15.10.09
अनाज कम पड़ जाएगा, लोग भूखे रह जाएंगे ?
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