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19.4.10

कहीं नक्सलवाडी में तब्दील न हो जाये उत्तराखंड

बेईमान लोगो की तरक्की से आम आदमी ठगा और हारा हुआ महसूस कर रहा है।
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। सेवानृवित्त पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने उत्तराखंड में बढ़ते भ्रष्टाचार को आधार बनाकर माओवादियों का एकक्षत्र राज होने की संभावना जता कर राज्य के पुलिस महकमे की चिंता ही नहीं बढ़ दी है बल्कि उत्ताराखंड के उजले भविष्य पर ही सवाल खडे कर दिये हैं। पूर्व पुलिस महानिदेशक की यह चिंता बेमतलब नहीं है। उन्होंने तर्क के साथ अपनी इस चिंता को पुख्ता तरीके से रखा है।
पुलिस महकमे में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके सेवानृवित्त पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह का मानना है कि जिस तेजी से उत्तराखंड में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। राज्य बनने का लाभ एक वर्ग विशेष को मिल रहा है। उससे आम आदमी के भीतर प्रारम्भिक स्तर पर आक्रोश ने अपनी जडें ज़मानी शुरू कर दी हैं। राज्य में भ्रष्टाचार और सत्ताा की ताकत जिस तरह से आम जनमानस के हितों को कुचल रही है। उससे आम आदमी खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगा है। राज्य बनने के बाद जो सपने आम उत्तराखंडियों ने देखे थे। उनके टूटने का दौर पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है। अपनी सरकार से आम जन का भरोसा अब उतना भी नहीं रहा जितना कि उत्तार प्रदेश सरकार पर हुआ करता था। आम आदमियों का यही दर्द अब उसे उनकी ही सरकार से दूर छिटक रहा है। प्रकाश सिंह की माने तो जल्द ही राज्य का आम व्यक्ति व्यवस्था को चुनौती दे कर राज्य में नक्सलवादियों की जमीन तैयार करेगा। पुलिस महकमे की आजीवन सेवा कर रहे प्रकाश सिंह खुद स्वीकार करते हैं कि पुलिस की कार्यप्रणाली आम जन के साथ मित्रता पूर्वक नहीं है। वे स्वीकार करते हैं कि उत्तराखंड के किसी भी थाने या चौकी में गुहार लगाने आये व्यक्ति को पानी तक के लिए नहीं पूछा जाता। लोगों को पुलिस अब तक यह भरोसा ही नहीं दिला सकी है कि दावों की बजाय सही मायनों में वह उनकी मित्र पुलिस है। आज भी राज्य का आम आदमी सरलता से पुलिस के पास अपनी शिकायत ले जाने में कतराता है। हाल में ही जिस तरह से राजधानी में रोडवेज कर्मियों ने पत्रकारों को बंधक बना कर पीटा और पुलिस के हस्तक्षेप के बाद ही पत्रकारों को लडाकू कर्मचारियों के चंगुल से छुडाया जा सका। पुलिस ने इस मामले में गवाह बनने के बजाय कर्मियों की शिकायत पर पत्रकारों के खिलाफ ही संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया। राज्य के मुखिया इस प्रकरण में हस्तक्षेप न करते तो बड़ी बात नहीं कि पुलिस पीटे हुए पत्रकारों को जेल की सलाखों के पीछे कर देती। इस प्रकरण में पुलिस का बर्ताव खुलकर देखने को मिला है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब पत्रकारों के साथ ऐसा सलूक पुलिस कर रही है तो आम आदमी की सुरक्षा की गारंटी कैसे ली जा सकती है। आये दिन पुलिस उत्पीड़न के कई मामले सामने आ रहे हैं।
प्रकाश सिंह बढ़ते माओवाद के लिए पुलिस को ही दोषी नहीं मानते बल्कि नौ वर्षों में जिस बेदर्दी से सरकारों ने सत्ता की ताकत का बेजां इस्तेमाल किया उससे आम आदमी दिन प्रति दिन कुंठित होता जा रहा है। राज्य में जिस तेजी से बेईमान लोग तरक्की कर रहे हैं। उससे आम आदमी स्वयं को ठगा और हारा हुआ महसूस कर रहा है। नाराज़ आम जन की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसी नाराज़गी को बड़ी चिंता मानते हुए प्रकाश सिंह शांत राज्य को भविष्य में नक्सलवाडी में तब्दील होने की संभावना जता रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड उन संवेदनशील राज्यों में गिना जाने लगा है जहां माओवाद और नक्सलवाद तेज गति से पैर पसार रहा है। नेपाल की सीमा से सटा राज्य का कुमाऊं मंडल जिस तरह माओवाद की चपेट में आ रहा है उससे यह चिंता दोगुनी हो जाती है कि समय रहते सरकारों ने व्यवस्थाएं ठीक न की तो उत्ताराखंड का गढवाल मंडल और मैदानी इलाका भी लाल जमीन में तब्दील हो जाएगा। लिहाजा यही वक्त है जब सत्ता में बैठे मठाधीशों को प्रदेश के आम व्यक्ति को कुंठा से बाहर निकालना होगा।

3 comments:

पूनम श्रीवास्तव said...

aapki soch sachchai ke kareeb hi lagti hai .aapki chinta apani jagah sahi hai.
poonam

tension point said...

बहुत चिंतनीय विषय है, कि उत्तराखंड को अलग होने के बाद क्या मिला ? अब तो जितनी भी योजनायें हैं सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं | एक अच्छा लेख देने का धन्यवाद |

पी.एस .भाकुनी said...

बहुत चिंतनीय विषय है,एक अच्छा लेख देने का धन्यवाद |