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27.4.10

बौद्धिक क्षमता से लबरेज़ हैं चिदम्बरम

              (उपदेश सक्सेना)
केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम से सतारूढ़ और विरोधी राजनेताओं की चिढ़ने की वजह है उनकी तीव्र बौद्धिक क्षमता, तल्ख हाजिर जवाबी और उस पर डटे रहने वाला साहस। गृहमंत्री पी चिदम्बरम उस समय बेबाक़ हो जाते हैं जब उनके सही कार्यों को, उनके धैर्य को, उनकी बौद्धिक क्षमता और कर्त्तव्य परायणता को पक्ष-विपक्ष या कहीं से भी चुनौती दी जाती है। दंतेवाड़ा की दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में बैठकर ज़ुबानी जमा-खर्च की जुगाली से काम नहीं चलेगा। जरूरत है माओवादी, नक्सलवादी समस्या से दो टूक निपटने की। आम आदमी अब त्रस्त है। स्वयं नक्सलवाद के प्रणेता चारू मजूमदार हों या कानु सान्याल अन्त में निराशा से उत्पन्न हुई इस हिंसा से सबका मोहभंग हो चुका था। पर निराशा की व्यापकता में कमी नहीं आई बेरोजगारी, गरीबी और अभाव नक्सलवाद के लिए उर्वरक का काम करने लगे। नक्सलवाद भी महानगरों से क़स्बों और फिर गांवों और जंगलों में जाकर सक्रिय हो गया। उसकी विष वेल को बड़ा होने में तीन-चार दशक लगे। पिछले कई सालों से नक्सलवाद ने तकनीकी हथियारों, सूचना तन्त्रों वाले उपकरणों का प्रयोग तीव्रता से किया। धन जुटाने के लिए उसने अब आम आदमी को भी घेरना शुरू कर दिया और मध्यप्रदेश, बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश व महाराष्ट्र के कई जिलों में पसरने लगा। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने शुरू-शुरू में इसे कानून व्यवस्था का मुद्दा मानकर इस हिंसा की अनदेखी की और धीरे-धीरे नक्सलवाद का नासूर बढ़ता चला गया। जब केंद्रीय रिजर्व बल के 76 जवानों को एक साथ भून दिया गया तो सरकार सकते में आ गई। गृह मंत्री पी चिदम्बरम घरेलू नक्सल समस्या से दो-चार होने के लिए भारतीय सेना का इस्तेमाल नहीं चाहते थे। उन्हें अपना और भटका हुआ मानकर उनसे बातचीत द्वारा समस्या का हल चाहते थे। पर जब पानी सिर से ऊपर निकल गया तो सरकार को कठोर कदम उठाने पड़े। बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और उनकी वामपंथी सरकार चिदम्बरम की आलोचक बन गई। पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने चिदम्बरम की नक्सल नीति को कोरी बौद्धिक तल्खी का नाम दिया। चिदम्बरम धैर्य रखते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अमेरिकी-ब्राजील यात्रा पर जाने से पहले अपने इस्तीफे की पेशकश की थी। जिसको डॉ. सिंह ने नहीं माना और उन्हें डटे रहने को कहा। लोकसभा में दंतेवाडा सैन्य हत्या काण्ड पर श्रध्दांजलि अर्पित की गई और उसके बाद चिदंबरम ने अपना वक्तव्य दिया। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रवाद के संदर्भ में गृहमंत्री के साहस-धैर्य और अडिग रहने की नीति की प्रशंसा की और उन्हें नक्सलवाद के मुद्दे पर पूरा समर्थन देने का आश्वासन दिया।
चिदम्बरम ने अपने विरोधियों को आड़े हाथों लेते हुए साफ कहा कि आज छत्तीसगढ़ राज्य में नक्सलवादी हिंसा का जोर है जहां 76 केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों की जघन्य हत्या कर दी गई है। छत्तीसगढ़ आज इस समस्या से जूझ रहा है। यह सब वहां बरसों से चल रहा है। सन् 2000 तक छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश का ही एक हिस्सा था जहां दस साल तक स्वयं दिग्विजय सिंह ही मुख्यमंत्री थे। उनका इशारा था कि अगर उस समय विकास और रोजगार एवं गरीबी की ओर ध्यान दिया जाता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। हमें जहां हिम्मत से नक्सलवाद से निपटना है वहां विकास क कार्यों को भी तीव्रता से लागू करना होगा। दोनों काम साथ-साथ चलाने होंगे। यह नक्सलवाद का अन्तिम अलार्म है। नक्सलवाद की समस्या अब असहनीय और हिंसक बनकर शत्रुता का रूप ले चुकी है। बकौल राज्यसभा में विपक्षी नेता अरूण जेटली के सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी अपने ही होम मिनिस्टर की टांग खींचने में लगी हुई है. गृहमन्त्री ने कहा कि देश को भ्रम से बाहर निकालना होगा। अब नक्सल राजनीतिक सत्ता चाहते हैं। पीपुल्स लिबरेशन की बात करते हैं। उनकी गुरिल्ला सेना जो पीपुल्स आर्मी की शक्ल ले चुकी है, सत्ता की कुर्सी हथियाना चाहती है। सीधे अब युद्ध का आह्वान करती है। नक्सलवादी हमें अपना शत्रु मानते हैं। वे संसद को एक चिल्लाने वाला सुअरबाड़ा मानते हैं। गृह मंत्री ने कहा, मैं नक्सलवादियों से नहीं डरता-अपनी नैतिक जिम्मेदारी को मानते हुए दंतेवाड़ा सैनिक हत्याकाण्ड के संदर्भ में मैंने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपा था। सोनिया गांधी (कांग्रेस अध्यक्ष), प्रधानमंत्री दोनों ने मुझमें विश्वास जताया है और मेरे इस्तीफे को नामंजूर कर दिया। गृहमंत्री चाहते हैं कि राज्य सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्र में प्रशासन को अपने हाथ में पुन: ले और वहां विकास कार्यों को शिद्दत से शुरू कर दे। स्मरण रहे कि मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ डॉ. रमन सिंह ने भी विकास कार्यों में तेजी लाने और विकास कार्यों में लगे लोगों की पूरी मदद और सुरक्षा देने का वायदा व व्यवस्था की है। भारत जब तालिबानों की धमकियों के बावजूद अफगानिस्तान में विकास कार्यों में डटा हुआ है तब यह तो अपने देश और अपनी मातृभूमि की बात है। डॉ. रमन सिंह पिछले एक वर्ष से केंद्रीय सरकार की सतर्कता व गंभीरता से अत्यन्त प्रभावित हैं और गृहमंत्री के प्रति प्रदेश की ओर से अहसानमंद भी हैं।
गृहमंत्री नक्सल क्षेत्र में बाकायदा ट्रेंड सैनिकों को बेहतर हथियारों के साथ भेजना चाहते हैं। सेन्टर-स्टेट व इंटर स्टेट को आर्डिनेशनल के भी पक्षधर हैं। राज्यों के मुख्यमंत्रियों (नक्सल प्रभावित क्षेत्रों) के समर्थन और सहयोग से नक्सल विरोधी नकसल आपरेशन  की नीति बनाई और अपनाई गई है। नीति है : पुलिस एक्शन और विकास दोनों साथ-साथ चलेंगे। आबादी वाले क्षेत्रों, आदिवासी क्षेत्रों में नीति कैसे लागू की जाए या वहां किस प्रकार हमें काम करना है-क्या-क्या नये कदम उठाने हैं-कहां चूक हुई है, इसके लिए ईएन राममोहन कमेटी की रपट आने के बाद ही बाकी चीजों का खुलासा हो सकेगा। पी.चिदंबरम बौध्दिक ही नहीं कार्यशील व हाजिर जवाब मंत्री भी हैं। शायद यही वजह है कि उनके पार्टी के अंदर विपक्ष के बजाय ज्यादा लोग डाह रखते हैं। पर श्री चिदंबरम साहसी हैं, मंत्रालय जो भी हो वे काम को समझते हैं, विचारते हैं, नीति बनाते हैं। कार्यान्वित करते हैं। लोकतन्त्र में हैं इसलिए संवेदनशील भी हैं। शायद उनकी सफलता भी लोगों में द्वेष का एक कारण हैं। विशेषकर राजनेताओं में। 



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