हिंदी फिल्मों का इतिहास-10
राजेश त्रिपाठी
अपराध की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्मों का दौर अवाक फिल्मों के युग से ‘काला नाग’ से शुरू हो गया था। इसके निर्देशक थे होमी मास्टर, जिन्होंने इस फिल्म में मुख्य भूमिका भी निभायी थी। सवाक युग में ‘किस्मत’ ( हीरो अशोक कुमार, हीरोइन मुमताज शांति। यह फिल्म कलकत्ता में तकरीबन चार साल तक चली थी, जो एक रिकार्ड है) के गीत भी बहुत हिट हुए थे। ‘दुनिया क्या है’, ‘बाजी’, ‘आर पार’, ‘सीआईडी’, ‘दो आंखे बारह हाथ’ (वी. शांताराम), ‘गंगा यमुना’, ‘मुझे जीने दो’ (डाकुओं की समस्या पर), ‘डॉन’, ‘शोले’ (70 एम. एम. स्टीरियोफोनिक साउंड में बनी भारत की पहली फिल्म। जी. पी. सिप्पी की रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने कामयाबी के नये कीर्तिमान बनाये) आदि फिल्मों का एक सिलसिला ही चल पड़ा जो आज तक बरकरार है।
फिल्मों ने हिंदू-मुसलिम एकता के विषय को भी आधार बनाया। इस दृष्टि से वी.शांताराम की ‘पड़ोसी’ एक उल्लेखनीय फिल्म थी। इसमें मुसलिम कलाकार को हिंदू की और गजानन जागीरदार को मुसलिम पात्र की भूमिका देकर एक नया प्रयोग किया गया था। सामाजिक समस्याओं भी फिल्मों ने मुंह नहीं चुराया। 1941 में बनी ‘आदमी’ में वेश्यावृत्ति के पेशे को मानवीय नजरिये से देखने का पहला प्रयास किया गया। इसके बाद भी समाज की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर फिल्में बनाने का सिलसिला जारी रहा। (क्रमशः)
No comments:
Post a Comment