19.4.10
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना-ब्रज की दुनिया
विज्ञान कहता है कि पहले इंसान इन्सान नहीं बल्कि बन्दर था खैर होगा लेकिन हमने तो नहीं देखा.धीरे-धीरे सभ्यता के विकासक्रम में वह आदमी से इन्सान बना.यह विकास सिर्फ सतही नहीं था बल्कि उसमें कई मानवोचित गुणों-अवगुणों का भी समय के साथ-साथ विकास हुआ.पहले जहाँ श्रम-प्रधान अर्थव्यवस्था आई बाद में मशीनों ने मानवों का काम करना शुरू कर दिया.अब जिसके पास जितनी ही ज्यादा संख्या में और अत्याधुनिक मशीनें थीं वही सबसे धनवान बन गया.मशीनों की खरीद के लिए तो पैसा चाहिए घर में तो मशीनें बन नहीं सकतीं.तो इस तरह शुरुआत हुई पूंजीवाद की.पहले जहाँ भगवान सबको नाचते थे और दुनिया को चलाते थे अब पैसा सबको नचाने लगा.पहले आदमी मशीन का मददगार बना और अब खुद ही मशीन बन गया है.दिन-रात वह सुविधाएँ जुटाने की जुगत में, भाग-दौड़ में लगा रहता है.रातों में जागना उसके लिए अब सामान्य बात हो गई है.दिन और रात आते हैं और गुजर जाते हैं लेकिन दिन-रात जानवरों की तरह खटने के बावजूद काम है कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है.उसकी जरूरतें काफी बढ़ गई हैं या अगर हम कहें कि उसकी आवश्यकताएं अनंत हो गई हैं तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी.अनंत की पूर्ति के लिए अनंत साधनों के साथ अनंत प्रयास करने पड़ेंगे और आदमी की क्षमता और साधन है कि सीमित हैं. जब सामान्य तरीके से जरूरत के अनुसार धन कमाना संभव नहीं हो पाता तब वह गलत रास्ता अख्तियार करता है और धनपिशाच बनकर रह जाता है.पैसों के लिए जारी भाग-दौड़ के चलते सम्बन्ध और रिश्ते भी अब अपना अर्थ खोने लगे हैं.सब कुछ पैसा हो गया है.लोग अब यह नहीं देखते की धन कमाने के लिए किसी ने सही रास्ता अपनाया है या गलत.जिसके पास पैसा है वही पूज्य है.धोखा, छल की अब अवगुणों में नहीं गुणों में गिनती होने लगी है.पहले जहाँ इन्सान कर्ता,पैसा साधन मात्र और सुख साध्य था अब पैसा एकसाथ कर्ता व साध्य और इन्सान साधन बनकर रह गया है.तत्कालीन केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूंदेव ने कुछ साल पहले गुप्त रूप से तैयार किये गए एक वीडियो में कहा था कि खुदा कसम पैसा खुदा तो नहीं है लेकिन यह खुदा से कम भी नहीं है.लेकिन अब पैसा खुदा ही नहीं है बल्कि खुदा से भी बड़ा हो गया है और इंसान अपने पद से गिरकर पशु बनकर रह गया है.पैसों से उसने बेशुमार सुविधाएँ जुटा ली हैं लेकिन उसका दिन का चैन और रातों की नींद हवा हो गई है. दिल ने काम करना बंद कर दिया है सिर्फ उसका दिमाग काम कर रहा है.आज ग़ालिब की इन पंक्तियों की प्रासंगिकता और भी ज्यादा हो गई है-दुश्वार है काम का आसां होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सान होना.
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