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22.4.10

इस गणतन्त्र के जन में इनका शुमार क्यों नहीं?





इस गणतन्त्र के जन में इनका शुमार क्यों नहीं।
क्योंकि हम ऐसा चाहते हैं।
बहुत ईमानदारी के साथ हम महसूस करते हैं, इसकी पुख्ता वजूहात हैं -
वो देखने में हमारे जैसे इंसान ही लगते हैं।
हमारे जैसा महसूस करते हैं
हमारी तरह रोना-हँसना भी जानते हैं
हमारी ख़ुशी में शरीक होते हैं अपना पेट पालने के लिये
नाचते हैं और हमको हँसाते हैं
वह भी साँस लेते हैं, दो रोटी भी खाते हैं
दर्द उनको भी होता है
दिल उनका भी दुःखता है....शायद हम-आपसे बहुत ज्यादा
तड़प - और वह इतनी कि रोज़ जीते हैं और रोज़ मरते हैं।
पूरी ज़िन्दगी में लाखों बार मौत-ज़िन्दगी से दो-चार होते हैं
......या हम दूसरी दुनिया से आये हैं या फिर ये लोग
अरे। हम जैसे आधुनिक लोग
कैसे हो सकते दूसरी दुनिया के
हम तो सैकड़ों वर्ष पुरानी इंसानियत की
सभ्यता रूपी गठरी को अपने मज़बूत कंधों पर उठाये
वक्त की रहगुज़र पर सीना चौड़ा करके चल रहे हैं।
हाँ। शायद ये ही कहीं से टपके हैं
या तो जंगल से या फिर आसमान से आये हैं।
पूँछके देखूँगा उन माँ-ओं से
शायद वो ही सबसे बेहतर बता पाएँ
चूँकि वो जन्म देती हैं
ज़रा सोचो तो...........

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