cinemaJagat
Monday, April 19, 2010
हिंदी सिनेमा का इतिहास-9
राजेश त्रिपाठी
बोलती फिल्मों का युग आया तो फिल्मों के विषय में भी विविधता आयी। प्रेमकथाओं पर ‘हीर रांझा’, ‘सोहनी महिवाल’, ‘मिर्जा साहिबां’, ‘ढोला मारूं’ और ‘लैला मजनूं’ जैसी फिल्में बनीं। पैरामाउंट मूवीटोन के कीकूभाई देसाई ने शुरू-शुरू में कई फंतासी और जादुई फिल्में बनायीं। बाद में उनके उत्तराधिकारी सुभाष देसाई और मनमोहन देसाई ने मल्टीस्टारर फिल्में बनायीं। अलीबाबा, अलादीन, सिकंदर द सेलर तथा थीफ आफ बगदाद जैसी फंतासी फिल्मे कापी लोकप्रिय हुई थीं। 1948 में आयी जेमिनी स्टूडियो मद्रास की कास्ट्यूम फिल्म ‘चंद्रलेखा’ भी काफी सफल रही।
जीवनीमूलक फिल्मों में संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर, संत तुलसीदास आदि प्रमुख हैं। बंगला भाषा में ऐसी अनेक फिल्में बनीं, जिनमें अधिकांश सुभाष बोस, रामकृष्ण परमहंस, विद्यासागर, भगिनी निवेदिता, राजा राममोहन राय तथा खुदीराम पर थीं। देशभक्ति की विषयवस्तु पर- हकीकत, शहीद (फिल्मिस्तान की) चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, आनंदमठ, अंजनगढ़, पहला आदमी, हिंदुस्तान की कसम आदि फिल्में बनायी गयीं। इसके बाद आधुनिक रोमांटिक फिल्मों का युग आया और ऐंग्री यंग मैन का प्रवेश हुआ।
विफल प्रेम के कथानक पर ‘मेला’, ‘रतन’, ‘आर पार’, ‘दीदार’,‘अनमोल घड़ी’, ‘बरसात’, ‘ बैजू बावरा’, ‘लव स्टोरी’, ‘अंखियों के झरोखे से’, ‘आनंद’ तथा ‘मिली’ बनी और काफी सफल भी रहीं। पूर्व जन्म के कथानक पर ‘ मधुमती’ बनी और बहुत सफल रही। सुनील दत्त की ‘यादें’ भारतीय फिल्म के इतिहास में हमेशा याद की जाती रहेगी। यह अकेली ऐसी फिल्म है जिसमें केवल एक पात्र (सुनील दत्त) था। फ्रैंकफर्ट के फिल्म समारोह में इसे श्रेष्ठ फिल्म के रूप में पुरस्कृत किया गया था। इसी तरह ‘नया दिन नयी रात’ को लोग भूल नहीं पायेंगे क्योंकि इसमें संजीव कुमार ने नौ भूमिकाएं निभायी थीं। इस फिल्म में सरोश मोदी ने अपने मेकअप का चमत्कार दिखाया था।
ऐसे तो फिल्मों में जानवरों की भूमिकाएं पहले भी होती थीं ( इस संदर्भ में फिल्म ‘इनसानियत’ उल्लेखनीय है), पर फिल्मों में पशुओं की भूमिका को प्रमुखता देने का श्रेय दक्षिण भारत के फिल्म निर्माता सैंडो एम एम चिनप्पा देवर (अब स्वर्गीय) को है। उनकी फिल्मों ‘हाथी मेरे साथी’, ‘गाय और गोरी’, ‘मां’ के बाद तो यह सिलसिला ही शुरू हो गया। कुत्ते, बंदर और सांप भी स्टार बनने लगे। ‘शुभ दिन’, ‘कर्तव्य’, ‘तेरी मेहरबानियां’, ‘परिवार’ फिल्में इसकी उदाहरण हैं और यह क्रम जारी है।(आगे पढ़ें)
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