जाने माने टीवी पत्रकार और एंकर रवीश कुमार ने आज "राजस्थान पत्रिका" शोएब-सानिया की शादी के बारेमें मीडिया में आ रही खबरों पर लेख लिखा है,"एक शादी पर हो हल्ला "। ये बड़े है इसलिए जो लिखा ठीक ही होगा। जनाब यहाँ कुछ हो तो रहा है, तब ख़बरें आ रहीं हैं। मीडिया में तो कुछ ना हो तो भी खबर बन जाती है। जैसे हमारे यहाँ बनी। हमने पूरे मीडिया में "लाशों के कारोबार" का कारोबार करवा दिया। किसी ने कहा कि पुलिस ने लाश बेचीं है। बस उसके बाद हमने वही दिखाया जो उस आदमी ने बताया। अपना दिमाग हम नहीं लगाते, जो दूसरा कहता है वही दिखाते हैं। इस बात को कई दिन हो गए, आज तक तो ऐसी कोई लाश मिली नहीं जिसको बेचा गया हो।जब सेल की हुई लाश का पता लगाने में हम कामयाब नहीं हुए तो हमने हैडिंग बदल दिए। अब मीडिया में लाशों के कारोबार की बजाये लाश देने में अनियमितता के हैडिंग लगाने लगे। यह खबर नहीं थी , लेकिन बने गई। जो पूरे मीडिया के सर चढ़ कर बोली। आज के दौर में जो आदमी खबर बनाने की कला जानता है वह सबसे बड़ा पत्रकार है। खबर है नहीं, मगर बनानी है। श्रीगंगानगर ने यही किया। श्रीगंगानगर में एक परिवार ने मेडिकल कॉलेज को अपने बुजुर्ग की डैड बोडी दान दी। यह खबर किसी को नहीं चाहिए। भारत पाक सीमा पर सुरक्षा बालों ने रेगिस्तान को गुले गुलजार बना रखा है। जिसको देखने हर रोज बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सीमा सुरक्षा बल के जवान अधिकारी उनको बोर्डर दिखाते हैं, समझाते हैं। मगर ये बात खबर नहीं है। बाद आज के दौर में तो ऐसा हो गया कि जो खबर है वह खबर नहीं है, जो खबर नहीं है वह खबर बना कर चलाई जाती है, दिखाई जाती है। पता नहीं वीजन नहीं रहा या बैठे बैठे खबर बनना मज़बूरी हो गई।
7.4.10
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3 comments:
सच में, इस दौर में अगर सबसे ज्यादा पतन हुआ है तो वह मीडिया का हुआ है नैतिक पतन चारित्रिक पतन और जो-जो भी पतन होते हैं वह सब इनमें हो चुका है अब कुछ बाकी नहीं है | हाँ ! कहीं कहीं नैतिकता का बीज बचा है |
लोगो से गुजरीश है की खबर वही दे जो खबर हो।
sahi h thik khabar deni chahiye aur media ko bhi usko parkashit ya telecast karne se pahle kuch to saboot dekhne chahiye ki wo khabar sacchi h bhi ya nhi
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