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13.4.10

चौराहे से बढ़ो उमा जी....


                   (उपदेश सक्सेना)

कहावत है कि -चौराहे पर ज्यादा देर तक खड़े व्यक्ति को समझदार नहीं कहा जाता.मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं उमा भारती भी आज ऐसे ही चौराहे पर खड़ी हैं.वे एक ऐसे अस्थिर चित्त की राजनेता हैं जो अपनी किसी भी अभिव्यक्ति के दौरान कब-कहाँ-क्यों की मर्यादाएं कभी नहीं मानतीं.वे मास लीडर बनने के पहले से साध्वी हैं, वे बहता पानी-रमता जोगी की तरह हैं, एक जगह टिकना उनके स्वभाव में नहीं है मगर यह क्वालिटी राजनीति में मान्य नहीं होती,उमा इस तथ्य को भुला चुकी हैं या राजनीति में आने के पहले उन्हें इसके बारे में किसी ने बताया नहीं होगा.
मप्र की मुख्यमंत्री रहते हुए भी उमा अक्सर ऐसी ही हरकतों के लिए मीडिया की सुर्खियाँ बनती रही हैं. इसके पहले जब वे केंद्र में मंत्री थीं तब भी उनका स्वभाव वैसा ही था. जब पार्टी की ख़ास बैठक में उमा ने लालकृष्ण आडवानी की ओर उंगली उठाकर चेतावनी भरे लफ़्ज़ों में नेतृत्व पर सवाल उठाये थे तभी उन्होंने राजनीति की अपनी पृथक धारा तय कर दी थी. बात-बात में रूठकर कभी केदारनाथ तो कभी बांद्राभान या अन्य किसी जगह अज्ञातवास पर चली जाने वाली साध्वी ने हुबली काण्ड में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अनुकरणीय उदहारण पेश किया था मगर इसके बाद घटी घटनाओं ने उनके इस त्याग को जनता की याद से मिटाने में समय नहीं लगाया. अब मध्यप्रदेश में भाजपा का शायद ही कोई ऐसा बड़ा नेता होगा जो उमा की पार्टी में वापसी का पक्षधर हो. कम समय में उमा ने दोस्तों से ज्यादा अपने दुश्मनों की फौज खड़ी कर ली है.पहले-पहले प्यार की तर्ज़ पर उमा का भाजपा से प्रेम कभी कम हुआ हो ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं है.पिछले आम चुनाव में तो उन्होंने आडवानी के पक्ष में प्रचार करने तक की पहल कर दी थी, लगता है कि उमा का विरोध पार्टी से नहीं बल्कि कुछ नेताओं के प्रति था मगर वे अपनी भावनाएं भली प्रकार से स्पष्ट नहीं कर पायीं और उन्हें पार्टी विरोधी मान लिया गया.
मध्यप्रदेश भाजपा में उमा के आने की आहट से ही इतनी बेचैनी छा गई है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इस स्थिति में पद छोड़ने की पेशकश तक कर दी है, जाहिर है सभी को भय है कि उमा यदि आयीं तो उन्हें खतरा हो सकता है. अब यह ख़तरा क्या और कैसा होगा इस बारे में अलग-अलग नेताओं के अलग-अलग भय हैं.कभी उमा को डूबती नाव बताने वाले और उमा के उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल गौर आज भले ही उमा मामले में कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं हों, बौखलाकर वे भी कहने लगे हैं कि "उन्हें अब काफी अनुशासन में रहना होगा." बहरहाल उमा ने अपनी बनाई पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया है और एक बार फिर वे ११, अशोक रोड नई दिल्ली के द्वार पर दस्तक दे रही हैं, क्या गडकरी जी के लिए उनकी वापसी का फैसला आसान है? उमा की भारतीय जनशक्ति के नेता-कार्यकर्ता भी असमंजस में हैं कि उनका भविष्य क्या होगा?

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