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9.4.10

संघर्ष भरे दिनों में..........
खुशियों को समेटना चाहा
पर मेरी खुशियाँ तो जाने कहाँ खो गयी हैं........
फिर कैसे समेटूं..........
उदास मन फिर सोचने लगा....
क्या लौटेंगी खुशियाँ????
या यूँ ही चलती रहेगी जिन्दगी......

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