अभी नेट पर एक समाचार पढ़ा कि मुख्यमंत्री गहलोत के गृह नगर जोधपुर के निजी चिकित्सकों ने अस्पतालों में सुरक्षा उपलब्ध कराने के मुद्दे पर हड़ताल कर दी है| वैसे अपने यहाँ किसी समस्या का समाधान होता तो नहीं है लेकिन मान लेते हैं चिकित्सकीय आवश्यकता को ध्यान में रखकर इन चिकित्सकों की बात सुन ली जाएगी और इन्हें सुरक्षा भी उपलब्ध करा दी जाएगी | अब सवाल यह उठता है कि चिकित्सकों के पास तो हड़ताल का हथियार था इसलिए उनकी जीत हो गयी लेकिन आम आदमी जो किसी भी जगह स्वयं को सुरक्षित नहीं समझता है वह क्या करे, उनके पास हड़ताल रूपी कोई ब्रह्मास्त्र भी नहीं है|
गहलोत सरकर के मंत्री तो प्रदेश में कानून व्यवस्था सुचारु होने का राग आलापते रहते हैं लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश से कानून व्यवस्था इस तरह से गायब हो गयी जैसे गधे के सर से सिंग | राह चलती महिलाओं की बाइकर्स द्वारा सरेआम चेन तोड़ने की और लूटपाट की घटनाएँ तो आए दिन अख़बारों की सुर्खियाँ बनती हैं | अब तो लुटेरों के हौसले इतने पस्त हैं कि दिनदहाडे बैंक लूटकर भाग जाते हैं | कभी गलता की पहाड़ियों में नर कंकाल मिलता है तो कभी पुलिस मुख्यालय के सामने नरमुंड लेकिन हत्याओं का राज आजतक नही खुला | पुलिस का वही रटा-रटाया जुमला "तहकीकात जारी है जल्द ही अपराधियों को पकड़ा जाएगा "| लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात | अपराधी बेख़ौफ़ घूमते हैं और आम जनता असुरक्षा की भावना के साथ सहमी हुई | लेकिन पब्लिक सुरक्षा मांगे किससे, कौन सुनने वाला है | सरकार के नुमाइंदों को तो पिछली वसुंधरा सरकार पर छींटाकशी करने में ही फुर्सत नहीं है |
ऐसी विकट परिस्थिति में पब्लिक को तो सबकुछ सहन करना ही पड़ेगा | भय और खौफ से त्रस्त जनता यही कह सकती है " कौन सुनेगा, किसको सुनाएं, इसलिए चुप रहते हैं |
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