नार्थ साउथ कारीडोर विवाद
अभी ना हार हुई ना जीत फिर कैसे जीत गये जयराम रमेश?
इंड़िया टू डे में प्रकाशित लेख से जिले वासी भौंचक सिवनी वासी भी हैं हतक्षेपकत्ताZ
सिवनी। फोर लेन मामले के सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहते हुये एक राष्ट्रीय पत्रिका ने इस मामले में जयराम रमेश जीत बता दी हैं। दो केन्द्रीय मन्त्रियों के बीच की इस टकराहट में अटके उत्तर दक्षिण कॉरीडोर के मामले में दोनों में एक राय ना बनने से सरकार को अरबों रुपयों का चूना लग चुका हैें।
देश की प्रसिद्ध पत्रिका इंड़िश टू डे के 1 सितम्बर 2010 के अंक में राष्ट्र.पर्यावरण सक्रिय पहरुआ शीर्षक से एक लेख पेज नं. 14 में प्रकाशित हुआ हैं। इस लेख में पेज नं. 17 के पहले कालम में लिखा हैं कि,Þ ईसा के जन्म से दो सौ वर्ष से भी ज्यादा पहले रोमन सम्राट हेलियोगाबलस अपने पकड़े गये लोगों का कत्ल करवाना पसन्द करता था,क्योंकि उसे हरी घांस पर लाल रंग देखना पसन्द था।और जब रमेश के हरे भरे ऐजेंड़ा का सवाल आता हैं, तो डनहें भी खूब खून खराबा करवाने से कोई आपत्ति नहीं होती। एक केन्द्रीय मन्त्री का कहना हैं कि बोलने में तेज रमेश कई केबिनेट बैठकों को तू तू मैं मैं का अखाड़ा बनवा चुकें हैं।जब सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्री कमलनसथ ने सिवनी(मध्यप्रदेश) से नागपुर(महाराष्ट्र)राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या सात को,जो संयोग वश पेंच टाइगर रिजर्व से होकर जाता हैं,चौड़ा करनें की अनुमति दीतो रमेश खफा हो गये। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जहां जहां हरियाली के योद्धा की जीत हुई। कमलनाथ के अनुसार यह सड़क कई दशकों से हैं। Þ जबकि वास्तविकता कुछ और ही हैं।
मामला नागपुर सिवनी के चौड़ीकरण का हैं ही नहीं। मामला हें प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुभुZज योजना के तहत बनने उत्तर दक्षिण का कारीडोर का हें जो कि श्रीनगर से कन्याकुमारी तक जायेगा। इस मार्ग की लंबाई 4 हजार कि.मी. हैं। जिसमें कई चरणों में कई स्थानों पर काम चल रहा हें हैं कुछ हिस्से तो बन कर पूरे होने की कगार मेें हैं। इसी के तहत सिवनी जिले के लखनादौन से खवासा नागपुर तक का रोड़ फोर लेन का बन रहा हैं। इस समय ना तो कमलनाथ भूतल परिवहन मन्त्री थे और ना ही जयराम रमेश वन एवं पर्यावरण मुन्त्री थे। इसमें जिले में बनने वाले हिस्से का सत्तर प्रतिशत मार्ग बन भी चुका हैं।
इसी बीच दिल्ली के एक एन.जी.ओ. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इण्डिय़ा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगायी थी। यह याचिका अभी भी लंबित हैं। दोनों मन्त्रालयों में एक मत ना होने से मामला लटक गया हैं। कॉरीडोर बनाने वाली कंपनियों को बाधा मुक्त जमीन उपलब्ध ना करा पाने के कारण अभी तक सरकार को लगभग दो अरब पचास करोड़ रुपये की हर्जाने के रूप में चपत लग चुकी हैं।
ना जाने क्यों कैसे इंड़िया टू डे ने इा मामले में सुप्रीम कोर्ट में हार जीत होने के पहले ही रमेश की जीत कैसे करा दी हैंर्षोर्षो
हरवंश का नाम लेकर उनके नाम को राजनीति में जिदा ना रखने की जिले के भाजपाइयों को समझाइश दी अरविन्द मैनन ने
जिला भाजपा की नव निर्वाचित कार्यकारिणी की पहली बैठक संभागीय संगठन मन्त्री अरविन्द मैनन की उपस्थिति में राशि लॉन में संपन्न हुयी।बताया जाता है कि संगठन मन्त्री ने यह कहा कि कैसे जिले की चारों सीटें जीतना हैं इसकी रणनीति बनायें और अमल में जुट जायें।बार बार क्यों हरवंश सिंह का नाम लेकर उन्हें राजनीति में ज़िन्दा रख रहे हो। संभागीय संगठन मन्त्री के के इस कथन को लेकर तरह तरह की चर्चायें भाजपा कार्यकत्ताZओं के बीच होने लगीं हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दलों में नूराकुश्ती के किस्से चर्चित रहने से अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा हैं कि यह तो अब नूरा कुश्ती भी नहीं रह गई हैं वरन सब कुछ खुला खुला हैं और किसी को किसी की चिन्ता भी नहीं हैं। इससे ज्यादा राजनैतिक बेशर्मी की बात और भला क्या हो सकती हैंर्षोर्षो हिन्दी,हिन्दू,हिन्दुस्तान और राममन्दिर काश्मीर से धारा 370 हटाना और कामन कोड विल लागू करना भाजपा के जनसंध के समय से छ: मूल मन्त्र रहें हैं। जब जब विपक्ष में रहे तो सभी मुद्दे बुलन्द रहे और जब सत्ता में आये तो यह आड़ कर ली कि ये मुद्दे एन.डी.ए. के ऐजेन्डे में शामिल नहीं हैं और सरकार एन.डी.ए. की हैं। जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू ने इसके विरोध में आयोजित बन्द को समर्थन देते हुये जो विज्ञप्ति जारी की थी उसमें यह उल्लेख किया कि 15 अगस्त के बाद इंका का एक प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली जायेगा और केप्द्रीय मन्त्री कमलनाथ और जयराम रमेश से भेंट कर मामले को शीघ्र सुलझाने का अग्रह करेगा।लेकिन अभी तक तारीख भी तय नहीं है।
हरवंश के बारे में मैनन के टके से जवाब से भौंचक हैं भाजपायी - बीते सप्ताह में जिले में भाजपा की गतिविधियां कुछ अधिक ही रहीं हैं। जिला भाजपा की नव निर्वाचित कार्यकारिणी की पहली बैठक संभागीय संगठन मन्त्री अरविन्द मैनन की उपस्थिति में राशि लॉन में संपन्न हुयी। इस बैठक में जिले में संगठनात्मक गतिविधियों को संचालित करने के अलावा शिकवा शिकायतों का भी दौर चला। हाल ही में 15 अगस्त के ध्वजारोहण समारोह के मुख्य अतिथि को लेकर हुये विवाद पर चर्चा हुयी। कुछ नेताओं ने इसे जबरन का विवाद बनाना निरूपित किया तो कुछ नेताओं का यह भी मानना था कि प्रदेश में बड़े नेताओं की मिली भगत के कारण जिले में निष्ठावान कार्यकत्ताZओं को नीचा देखना पड़ता हैं। उल्लेखनीय हैं कि नगर भाजपा अध्यक्ष प्रेम तिवारी ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह पर आपराधिक मामले दर्ज हैं इसलिये उन्हें सिवनी में मुख्यअतिथि ना बनाया जाये। इस पर इंका के नगर प्रवक्ता ने बयान जारी कर मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्रियों पर मामले दर्ज होने का मुद्दा उछाल दिया। इसी बीच हरवंश सिंह बालाघाट में ध्वजारोहण करेंगें यह प्रकाशित हो गया। हरवंश सिंह की मुख्यमन्त्री सचिवालय के हवाले से उनसे पूछ किया जाना बताया गया तो नगर भाजपा अध्यक्ष ने इस निर्णय के लिये मुख्यमन्त्री का आभार व्यक्त कर दिया। दूसरे ही दिन सरकार ने फिर नये आदेश प्रसारित कर हरवंश सिंह को सिवनी जिला आवंटित कर दिया। सरकार के इस निर्णय से भाजपाइयों ने अपने आप को घोर अपमानित महसूस किया हैं। बताया जाता है कि ेकार्यकत्ताZओं की इस पीड़ा को दर किनार करते हुये इस पर संगठन मन्त्री ने यह कहा कि कैसे जिले की चारों सीटें जीतना हैं इसकी रणनीति बनायें और अमल में जुट जायें।बार बार क्यों हरवंश सिंह का नाम लेकर उन्हें राजनीति में ज़िन्दा रख रहे हो। संभागीय संगठन मन्त्री के के इस कथन को लेकर तरह तरह की चर्चायें भाजपा कार्यकत्ताZओं के बीच होने लगीं हैं। कुछ वरिष्ठ भाजपाइयों का तो यह भी ेकहना हैं कि हरवंश सिंह एक भी चुनाव खुद नहीं जीते हें वरन उन्हें जिताने में भाजपाइयों का टेका ही हमेशा रहा हैं। हारने वाले प्रत्याशियों द्वारा गिनाये गये हार के कारणों को दरकिनार कर दिया जाता था जो कि भाजपा के अगला चुनाव हारने के कारण बन जाते थे। यह सिलसिला पिछले विस चुनाव तक चलते रहा हैं। अब तो भाजपा में भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं हैं कि भाजपा का नेतृत्व ही एक सीट देकर जिले की शेष विस सीटें और लोकसभा सीट जीतने के लिये सौदा कर लेते हैं।और तो और जिले में संगठन के स्तर पर भी केवलारी क्षेत्र की उपेक्षा की जाती हैं। जबकि इसके विपरीत कांग्रेस के चुनाव के दौरान जिले के कई कांग्रेसियों ने हरवंश सिंह पर यह आरोप लगया हैं कि पूरे संगठन का केन्द्र केवलारी क्षेत्र को बना कर किया गया हें जबकि जहां से कांग्रेस पांच पांच बार से चुनाव हार रही हैं उन विस क्षेत्रों की चुनावों में अनदेखी की गई हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दलों में नूराकुश्ती के किस्से चर्चित रहने से अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा हैं कि यह तो अब नूरा कुश्ती भी नहीं रह गई हैं वरन सब कुछ खुला खुला हैं और किसी को किसी की चिन्ता भी नहीं हैं। इससे ज्यादा राजनैतिक बेशर्मी की बात और भला क्या हो सकती हैंर्षोर्षो
एक बार फिर पुराने मुद्दों पर लौट कर आ रही हैं भाजपा -हिन्दी,हिन्दू,हिन्दुस्तान और राममन्दिर काश्मीर से धारा 370 हटाना और कामन कोड विल लागू करना भाजपा के जनसंध के समय से छ: मूल मन्त्र रहें हैं। जब जब विपक्ष में रहे तो सभी मुद्दे बुलन्द रहे और जब सत्ता में आये तो यह आड़ कर ली कि ये मुद्दे एन.डी.ए. के ऐजेन्डे में शामिल नहीं हैं और सरकार एन.डी.ए. की हैं। एक चुनाव तो भाजपा ने एन.डी.ए. के उस ऐजेन्डे पर लड़ना भी स्वीकार कर लिया जिसमें भाजपा के ये सभी मूलमन्त्र ही गायब थे। उत्तर प्रदेश और केन्द्र में भी भाजपा के नेतृत्व में सरकार रही लेकिन इन मुद्दों के लिये भाजपा ने कभी सरकार भी दांव पर लगाने की कोशिश नहीं की जैसी कि कांग्रेस ने परमाणु करार के दौरान वामदलों के विरोध के भी सरकार को दांव पर लगा दिया था। लेकिन भाजपा समय समय पर इन मुद्दों पर कुछ ना कुछ करके अपनी प्रतिबद्धता दिखाती रहती हैं। ऐसा ही कुछ अभी काश्मीर के मुद्दे को लेकर जल रहा हैं। भाजपा ने राष्ट्रव्यापी काश्मीर बचाओ देश बचाओ आन्दोलन छेड़ा हैं। भाजपा ने यह चिन्ता भी व्यक्त की हें कि वहां से हिन्दुओं को खदेड़ा जा रहा हैं। लोक सभा में भाजपा की प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इस समस्या को नेहरू की देन बताया हैं। इसी के तहत जिले के गांधी चौक में भी भाजपा ने धरना देकर ज्ञापन दिया। इसमें राज्य सभा सदस्य अनुसुइया उइके उपस्थित रहीं। वैसे यह बात सही हैं कि इन दिनों काश्मीर के हालात खराबक हैं और इसकी जवाबदारी भी सरकार पर आती हें। भाजपा ने भी गठबंधन की सरकार काश्मीर में चलायी थी। हालात बेकाबू होने में जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका तो यह होनी चाहिये कि पहले हालात को सुधारने म3ें सरकार का सहयोग करें और फिर उसे कठघरें में खड़ा करें कि उसकी किन खामियों की वजह से ऐसे बदतर हालात बने थे। लेकिन ऐसा प्रतीत होता हें कि काश्मीर मामले को उठाना भाजपा की राजनैतिक रणनीति के तहत उठाया गया कदम हों। क्योंकि सम्भवत: अगले महीने इलाहाबाद हाई कोर्ट में राम जन्म भूमि विविाद से सम्बंधित केस का फैसला आ जायेगा और उसके अनुरूप भाजपा को अपनी राम मन्दिर के मामले में रणनीति बनाना पड़ेगा। इसीलिये शायद उन छ: मूल सूत्रों की ओर लौटने की रणनीति के तहत ही काश्मीर मुद्दा उठाया गया हो वरना यह बात तो भाजपायी भी जानते हैं कि दिल्ली की सरकार में रह कर जब अपन काश्मीर का मुद्दा हल नहीं कर पाये तो भला शुक्रवारी के गांधी चौक से उसे कैसे हल कर लेंगेंर्षोर्षो
फोर लेन के लिये कब जायेगा इंकाई प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली? -फोर लेन को लेकर इंका का प्रतिनिधि मंड़ल कब दिल्ली जायेगार्षोर्षो इसे लेकर चर्चायें जारी हैं। जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू ने इसके विरोध में आयोजित बन्द को समर्थन देते हुये जो विज्ञप्ति जारी की थी उसमें यह उल्लेख किया कि 15 अगस्त के बाद इंका का एक प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली जायेगा और केप्द्रीय मन्त्री कमलनाथ और जयराम रमेश से भेंट कर मामले को शीघ्र सुलझाने का अग्रह करेगा। लैकिन अभी तक ना तो प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली गया और ना ही कोई तिथि घोषित की गई हैंं। इसे लेकर तरह तरह की चर्चायें व्याप्त हैं।
No comments:
Post a Comment