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22.8.10

गांजा की गिरफ्त में युवा पीढी

अखिलेश उपाध्याय
सस्ता और सुलभ नशा गांजा इस समय कटनी जिले के गली कूचे में बड़ी आसानी से मिल जाता है तभी तो जिले की युवा पीढी इस जहरीले नशे की गिरफ्त में पूरी तरह से जकड़ती जा रही है.
रीठी तहसील से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर बसे परेवागार की एक पूरी कौम भीख मांग कर गुजारा करती है और पुडियो के माध्यम से क्षेत्र के लोगो को गांजा भी पहुचाती है.



पिछले पांच-सात वर्षों में ये लोग जिन्हें क्षेत्रीय भासा में fakhda कहते है डांग और रीठी के बीच बस गए है. ये लोग अधिकतर भीख मांगकर अपना गुजारा करते है और रीठी से गुजरने वाली रेलगाडियो में गा-बजाकर तथा भीख मांगकर गुजारा करते है लेकिन वास्तव में ये इस क्षेत्र के युवाओं को गांजा पहुचाने का प्रमुख काम करते है. तभी तो छप्पन ग्राम पंचायत का मुख्यालय बना यह गजेडियो का केंद्र आधी रात को भी गांजा उपलब्द्ध कराता है.



इस रीठी क्षेत्र में इस fakhda समाज के द्वारा गांजा का व्यवसाय जोरो से चलाया जा रह है. क्षेत्र के आठ वर्ष से लेकर साठ वर्ष तक के बच्चे और पुरुष गांजे की लत के इस कदर आदी हो गए है की इनको अब न तो घर दीखता और न ही इन्हें अपने परिवार और भविष्य की कोई फिक्र है. अभी तक स्थानीय लोग इस fakhda प्रजाति को दया का पात्र मानती थी और 


उनकी गरीबी पर तरस खा कर उन्हें डांग के लोगो ने पनाह भी दी तथा इनको मागने पर लोग राशन आदि भी देते रहे लेकिन अब जब क्षेत्र की युवा पीढी को गांजा जैसे जानलेवा  नशे का आदि बनाने में इन्ही का प्रमुख हाथ है तो अब लोग इनको यहाँ से भगा देना चाहते है. 
गांजा का सेवन करने वालो के शरीर पर जो तत्काल प्रभाव पड़ता है उसमे गजेडी मनोरोगी हो जाता है. यदि प्रतिदिन कोई इसका सेवन लगातार करे तो गांजा की दस माइक्रोग्राम की मात्रा ही काफी है मानव को मनोरोगी बनाने में. एक अध्ययन के मुताबिक गांजा के सेवन से फेफड़ो पर दुष्प्रभाव , लो ब्लड प्रेसर, याददास्त में कमी, कार्य करने में भूल एवं एकाग्रता में कमी जैसे रोग घर कर जाते है.


दूरगामी प्रभाव

गांजा के लगातार सेवन से मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. निउजीलेंद में किये गए एक अध्ययन के मुताबिक फेफड़ो के केंसर से प्रभावित मरीजो में गांजा न पीने वालो की तुलना में पांच गुना अधिक खतरा रहता है. इसी प्रकार लॉस एंजिलिस में 2252 लोगो पर किये गए अध्ययन में भी यही तथ्य सामने आया की ये सभी गांजा पीते थे और इनको फेफड़ो, सर या गर्दन का केंसर पाया गया.


अनेक अध्ययन में यह तथ्य निकलकर आया की गांजा के सेवन से डिप्रेसन, मानसिक उच्चाटन,  सनकीपन आदि लक्षण भी देखे जाते है.

गांजा रोकथाम के लिए क़ानून

बीसवी सदी के शुरुआत में ही अधिकांस देशो ने गांजा की खेती, पास में रखने एवं ले जाने पर   प्रतिबन्ध लगा दिया था. लेकिन कुछ राष्ट्रों में इसके प्रति कठोर कानून नहीं है और न ही
अधिक पेनाल्टी बसूली जाती है.

ऐसा नहीं है की रीठी पुलिस को कुछ पता न हो लेकिन न जाने पुलिस सब कुछ जानते हुए भी  नशे की इस दुष्प्रवृत्ति को क्यों बढ़ावा दे रही है. क्षेरा के युवाओं में गांजे जैसे स्लो पोइसन
फैलाने वाली इस प्रजाती पर पुलिस शिकंजा क्यों नहीं कसती ?

1 comment:

दीपक बाबा said...

कावड़ मेले के दौरान बहुत गांजा था.... हरिद्वार से लेकर हरियाण, राजस्थान, दिल्ली .... उत्तेर प्रदेश... हर कावडिया दबा कर दम लगता था...