भारत छोड़ चुके चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने एक अंग्रेजी दैनिक में छपे अपने लेख में लिखा है कि कश्मीर में लड़के इसलिए पत्थरबाजी कर रहे हैं, क्योंकि उनकी आवाज छीन ली गई है और उनकी गर्दन पर बंदूक रखी गई है। भारत पर आरोप लगाते हुसैन उन कश्मीरियों से अपनी तुलना करते हैं, जिसने स्वतंत्रता की चाह और भय के कारण भारत को त्याग दिया। यह वही हुसैन हैं जिन्होंने मार्च में एक समाचार चैनल पर दिए इंटरव्यू में कुछ और कहा था। तब उन्होंने देश बदलने के पीछे टैक्स बचाने की इच्छा, अपनी बड़ी मह्त्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए प्रायोजक ढूंढने और उन योजनाओं को पूरा करने की चाह जैसे कारण गिनाए थे। सवाल है कि उनके देश बदलने के पीछे कौन सी बात सही है? भारत में हुसैन के मित्र बुद्धिजीवी कहते हैं कि दोनों ही बात सही हैं, किंतु न तो हुसैन, न उनके मित्र उस मूल बात पर आते हैं जिस कारण वह वर्षो से भाग रहे हैं। हुसैन के खिलाफ हिंदू देवी-देवताओं तथा भारत माता की अभद्र तस्वीरें बनाकर हिंदुओं को अपमानित करने तथा सामाजिक तनाव पैदा करने के लिए मुकदमें दर्ज हंै। मूल बिंदु पर हुसैन जानबूझकर कभी नहीं आते। इसके बदले वे भारत और कुछ हिंदू संगठनों पर तीर चला रहे हैं। अब भारत का त्याग करने पर तरह-तरह की बयानबाजियां उनकी कला को और संदेहास्पद बना देती है। देवी-देवताओं की गंदी और भद्दी पेंटिगों पर हुसैन के बचाव में सारे तर्क दूसरे लोग देते हैं। एक बार मुंबई में किसी प्रदर्शनी में लगे उनके ऐसे चित्रों पर जब आपत्ति उठी तो उन्होंने माफी मांग कर चित्र हटा लिए। यदि हुसैन के पास उन गंदी तस्वीरों के कला-मूल्य के लिए कहने को कुछ नहीं, तो हिंदू परिवारों में जन्मे सेक्युलर-वामपंथी लेखक, पत्रकार क्यों कुतर्क करते हैं? सभी जानते हैं कि देवी-देवताओं के गंदे चित्रण पर मुकदमा कुछ अदद हिंदू व्यक्तियों ने किया है। देश की न्यायपालिका पूर्णत: स्वतंत्र और निष्पक्ष है, इसलिए प्रश्न उठता है कि हुसैन कानून और न्यायालयों से क्यों भाग रहे हैं? यह कहना कि भारत ने हुसैन के साथ अन्याय किया है, एक मिथ्या प्रचार है। हमारे अनेक कथित बुद्धिजीवियों को हुसैन से उतनी सहानुभूति नहीं, जितना हिंदू भाव से दुराव है। इसीलिए वे हुसैन प्रसंग का उपयोग अपनी राजनीतिक जिद पूरी करने में लगाते हैं। अन्यथा वह हुसैन को सलाह देते कि वह यहां के न्यायालय में अपना पक्ष रखें और छुट्टी पा लें। जहां तक हुसैन की पेंटिंगों के कला-मूल्य का प्रश्न है, तो स्थिति और बेढब है। यह संयोग नहीं कि मीडिया और बौद्धिक मंचों पर यह सवाल उठाया ही नहीं जाता, क्योंकि तब उन्हें बताना होगा कि घर-घर पूजी जाने वाली ंिहंदू देवी को अपने वाहन पशु के साथ मैथुन-मुद्रा में दिखाने में कौन सी कला झलकती है? इस गंभीर प्रश्न का उत्तर देना होगा, जैसा कि प्रसिद्ध चित्रकार सतीश गुजराल ने पूछा है, क्या हुसैन इस्लामी विभूतियों के साथ वही प्रयोग कर सकते हैं जो उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के साथ किया है? इसका उत्तर सबको वैसे भी पता है। हुसैन ने पैगंबर की बेटी फातिमा, स्वयं अपनी माता, मदर टेरेसा आदि अनेक गैर-हिंदू आराध्यों के चित्र पूरे शालीन वस्त्रों में बनाए हैं। स्पष्ट है कि हिंदू देवियों के भद्दे चित्र बनाने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कानूनी तर्कके सिवाय बचाव में हुसैन और कुछ नहीं कह सकते। ऐसा भी प्रतीत होता है कि हुसैन के मंसूबे बाहर से कुछ और भीतर से कुछ और रहे हैं। यदि वे अपने गंदे चित्रों के लिए एक बार माफी मांग चुके तो फिर वैसे चित्र दोबारा क्यों बनाए? दूसरे, यदि उन्हें अपने देश से प्रेम है, जैसा वह कहते हैं तो देश के संविधान और कानून की अवज्ञा क्यों कर रहे हैं? तीसरे, एक अलोकतांत्रिक देश की नागरिकता लेने को क्यों तैयार हो गए? अंतत: यदि वह निर्दोष हैं तो दूसरों पर आरोप लगाने की बजाय अपने पक्ष में विस्तृत कानूनी बयान क्यों नहीं जारी करते? कतर से दिए जाने वाले उनके सार्वजनिक वक्तव्यों में भी इन प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलता इसलिए यही जान पड़ता है कि हुसैन कलाबाजी कर रहे हैं। वह चार साल से कतर में रह रहे हैं, यह तो सब जानते हैं, किंतु यह कितने लोग जानते हैं कि वह वहां अरब सभ्यता के चित्रण की एक बहुत बड़ी और महंगी परियोजना पर काम कर रहे हैं जो स्वयं वहां के राजपरिवार ने उन्हें सौंपी है? यानी हुसैन करोड़ों के पेंटिंग प्रोजेक्ट में लगे हुए हैं, जबकि बयान किसी विवश, उत्पीडि़त व्यक्ति जैसे दे रहे हैं, जो मानो किसी तरह विदेश में समय काट रहा हो। नि:संदेह जो माफी एक बार हुसैन मुंबई में मांग चुके थे, वही न्यायालयों में दोहरा कर किस्सा खत्म कर सकते थे, पर यह खुला मार्ग अपनाने के बदले हुसैन और उनके हिंदू-विरोधी समर्थक राजनीति कर रहे हैं। भारत और हिंदुओं की बदनामी करने में सब तरीका जायज है, यही हुसैन प्रकरण का एक मात्र सही निष्कर्ष है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
साभार:-दैनिक जागरण
24.8.10
फिदा हुसैन की कलाबाजी
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1 comment:
हिन्दू धर्म के, देश के, मानवता के गद्दारों को काली सूचि ( ब्लैक लिस्टेड) में डालो | २०१४ में देश का भाग्योदय होने वाला है, देश भक्त मुस्लिम भी अब जाग गया है इसलिए इनको जान गया है, इनका हुक्का-पानी बंद होने वाला है |
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