मेरे पिछले आलेख के कुछ शब्दों पर लोगों की आपत्तियों पर...!!(क्षमायाचना सहित)
सवाल तो यह है कि किन शब्दों को प्रयुक्त करें
3.8.10
मेरे पिछले आलेख के कुछ शब्दों पर लोगों की आपत्तियों पर...!!(क्षमायाचना सहित)
भाई साहब,
नमस्कार
कल आपने मेरे आलेख को छापने से पूर्व उसमें प्रयुक्त ''हरामी'' और ''हरामजादा'' शब्द को संपादित करने की अनुमति मांगी थी जो मैने आपको दे भी दी....उससे पहले भी मेरे द्वारा लिखे गये एक आलेख में "चुतिया" शब्द के प्रयोग पर कुछेक महिलाओं द्वारा आपत्ति उठायी जा चुकी है तब से मैं अकसर सोचता रहा हूं कि मेरे सम्मुख जो चीज़ें आती रहती हैं या जो कुछ मेरे सामने रोज-ब-रोज घटता रहता है,जिसमें सब कुछ इतना ज्यादा वीभत्स,बेशर्म,नंगा और घृणित होता है कि सच कहिये तो दरअसल उसे व्यक्त करने को भी दिल नहीं होता मगर चुंकि चुप भी रह गया तो जैसे मैं खुद-ब-खुद मर जाउंगा, इसिलिए यह सब कुछ कहने को विवश या कहूं कि अभिशप्त होना पड्ता है.....आप देखें कि यह सब [मतलब यह यंत्रणादायक और बेहद मार्मिक घटनाक्रम] कितना,जो कुछ मैने उपर मैने कहा है,उसके अनुकूल है...तो शायद आप भी इन्हीं शब्दों का उपयोग करने लगें.....!!
अभी-अभी मैने एक प्रख्यात अखबार को पूरा-का-पूरा चाटा है यानि कि उसके पांच पेजों में छपे एक-एक शब्द मैं "खा” चुका हूं एक "स्टिंग-आपरेशन" को लेकर यह अखबार पूरा-का-पूरा भरा पडा है...यह स्ट्रिंग आपरेशन झारखंड के मंत्रियों एवं विधायकों द्वारा पिछला उसके भी पिछले राज्यसभा चुनाव में कार्डों रुपये डकार जाने से समबन्धित है और साथ ही अखबार की पुरानी कतरनों का भी उल्लेख है यह कहकर कि हम तो पहले से ही कहते थे मगर....!!"स्टिंग-आपरेशन" में जिस सच्चाई को उजागर किया गया है,उसे ऐसा नहीं है कि हम ना जानते हों याकि ना मह्सूस करते हों मगर फिर भी कोई चीज़ जब हमारे सम्मुख ठोस सबूतों के साथ और तथ्य़ों के साथ प्रकट होती है,तो उसका प्रभाव हम पर कुछ अलग ढंग से ही पडा करता है....है ना....??
तो अब प्रभाव तो यह है....कि राज्य के साथ,देश के साथ,व्यवस्था के साथ ऐसा करने वालों को देखते ही गोली मार देने को जी चाहता है...और सच यह कि कानून के दायरे में रहकर हम किसी भी हालत में ऐसा कर ही नहीं सकते....तो यही प्रभाव हम पर हमारे मुख-मंडल पर एक गंदी-सी गाली के रूप में तारी हो जाता है...और उससे ज्यादा कुछ कर पाने की हमारी ताब ही नहीं...[अगर होती तो हम सब डंडे लेकर सडक पर होते और हमारे प्रतिनिधि बने बैठे ये "मवाली’’, कुत्तों की तरह हमारे पैर और तलवे चाट रहे होते कि बाबू हमें माफ़ कर दो....भईया हमें माफ़ कर दो....आईंदा हमसे ऐसे गलती नहीं होगी.....कान पकड्ते हैं सरकार सच कहते हैं कि आईंदा ऐसी गलती नहीं करेंगे हम....मगर ऐसा कभी नहीं हो पाता....रोज अपनी पीडा लिए हम अपने बिस्तर पर सो जाते हैं.....और रोज अगला सवेरा हमें इसी तरह की कोई दूसरी घट्ना का दर्शन करवा देता है....हम एकदम से अभ्यस्त हो चुके हैं रोज-ब-रोज इस पीडा को भोगने के बावजूद भी कुछ नहीं करने के....हम अभ्यस्त हो चुके हैं दिन-प्रतिदिन तमाम तरह के सरकार को कोसने और प्रशासन को गालियां देने और और यह सब कर वापस अपने दडबे में घुस कर वापस अपने दैनिक नित्यकर्म,यथा टी.वी देखने,कोई अन्य मनोरंजन करने या फिर "रति-कर्म" करने में "रत"..."मस्त"....और फिर "पस्त" हो जाते हैं!!
मज़ा यह कि हम भी यही करने में मस्त रहते हैं....और अभी-अभी हमने जिनकी निंदा-आलोचना या जो कुछ भी की है,वो भी उसी वक्त वही सब कुछ कर रहे होते हैं....या फ़िर कुछ ऐसे लोग जो अपने आलोचकों की अतिरिक्त काबिलियत के चलते जेल गये हुए होते हैं....वो जेल में भी यही सब कुछ करने में निमग्न होते हैं, बल्कि जेल में तो गोया बाहर के आम व खास लोगों लोगों की जिंदगी से भी अधिक मस्ती है आजकल....तो यहीं पर मेरी नज़र में यह प्रश्न पैदा हो जाया करता है....जब हम न सिर्फ़ अपने समाज के इन पहरेदार प्रतिनिधियों से "चुतिया" बन रहे होते हैं, बल्कि खुद अपने-आप से भी....अब मेरी मुश्किल यह है....कि मैं चाहकर भी यहां ”चुतिया” शब्द की जगह उल्लू... गधे.... मुर्ख... बुड्बक...ऐसा कोई शब्द उपयोग नहीं कर पाता....आप ऐसी स्थितियों में पूरे-का-पूरा घुस कर देखें ना,तो आप पर भी यह पूरी स्थिति बिल्कुल साफ़ हो जायेगी कि वर्तमान में घट रही बहुतों प्रकार की घटनाओं के कारण पैदा हो रही इस तरह की स्थितियों के मद्देनज़र शब्द्कोश के वो पूराने शब्द कतई पूरे नहीं पडते...जो कि इनसे ज्यादा सम्मानजनक स्थितियों के लिये बिठाए गये गये थे....ठीक उसी तरह हरामी.... हरामजादा ....या इसी श्रेणी के अन्य शब्द मेरी नज़र में कहीं से भी गलत प्रतीत नहीं दिखते....बल्कि ये भी कम ही पड्ते हैं....
दरअसल यौनिक शब्दों का उपयोग वीभत्सम स्थितियों के सन्दर्भ में ज्यादा सटीक बैठता है....जब हमारे पास स्थिति को गरियाने के लिए शब्द ही ना मिल पायें....जब हम इतने उद्वेलित हों कि......गलत व्यक्ति का गला ही घोंट देना चाहे....गाली देने का अर्थ सदा स्त्री जात को शर्मिंदा करने के लिए नहीं होता....उस वक्त यह हमारी विवशता होती है और इस बात की तस्दीक भी कि हम कुछ कर ही नहीं पा रहे... लेकिन यहाँ मैन जोड़ना चाहूँगा कि बात-बेबात पर बच्चों और स्त्री जात के सामने ही गन्दी-से-गन्दी गालियाँ देने हम (चूतिये)सामाजिक गंदगी को लतियाने के लिए जब ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं....तो अक्सर इस पर एतराज़ क्यूँ हो जाया करता है....क्यूंकि उस वक्त यह गाली गंदगी-सूचक कतई नहीं होती...और क्या होती है यह मैं चाह कर भी परिभाषित नहीं कर सकता....तो मैं यह अक्सर महसूस किया करता हूँ....कि शब्दकोष में उपस्थित शब्द,जिस किसी काल में जिन लोगों के द्वारा रचे गए थे,उन्होंने शायद सपने में भी ऐसी स्थिति का आभास ना पाया हो कि उन्हें ऐसे शब्दों को शब्दकोष में लेने की आवश्यकता महसूस हो....अगर रंच-मात्र भी उन्हें ऐसा लगा होता तो ये शब्द भी हमारे जीवन की तरह हमारे शब्द-कोष का एक अभिन्न हिस्सा हुए होते....{आवश्यकता आविष्कार की जननी है की तर्ज पर }
अंत में, भाई साहब,....शब्दों के अर्थ और उनके वाजिब सम्मान का मैं भी उपासक हूं....मगर इस आदमी [हरामी]का मैं क्या करूं...जिसे ना शब्दों से मतलब है ना आदमियत से....ना खुद के सम्मान का कोई अर्थ पता है....ना देश या राज्य के सम्मान का....ये वही करता है,जो इसका जी करता है...चाहे इसका परिणाम जो हो.....मैं ऐसा मानता हूं कि मैं हरामी हूं तो खुद को हरामी ही लिखुंगा....हां सच, यह ताकत मुझमें है....यह ताब मुझमे है....अगर मेरे हरामी होने पर मेरे द्वारा मुझे हरामी लिखा जाना गलत नहीं है....तो वाकई जो सच ही में देश और राज्य के प्रति हरामी है....उनके लिये यह शब्द लिखने पर अशोभनीय क्यूं है.....और यदि यह अशोभनीय ही है तो मुझे कोई बताये ना प्लीज़ कि शोभनीय क्या है...और इन जैसे लोगों के लिये क्या लिखा जाना शोभनीय है.....उचित है.....मंगलकारी है......अगर यह मुझे जल्द-से-जल्द पता चल सके तो मैं खुद को भी जल्द-से-जल्द सुधार कर अपनी मात-भाषा हिन्दी का अपमान होने से भी बचा सकूंगा.......इति....सबको मेरा राम-राम......!!!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ राजीव जी॥
Post a Comment