अब निशंक के खिलाफ खड़े किए जा रहे है प्रायोजित मुख्यमंत्री
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उत्तराखंड के राजनैतिक गलियारों में शनिवार का दिन काफी गहमागहमी का रहा। सुबह होते ही एक निजी चैनल में अपनी ब्रेकिंग न्यूज में ख़बर चलायी की,निशंक की जगह राज्य की बागडोर जल्द ही पूर्व मुख्यमंत्री कोश्यारी के हाथों में सौफी जा रही है। इसके बाद तमाम राजनैतिक लोग अटकलें लगाने लगे कि क्या ऐसा होगा? क्या अब यह संभव है? वह भी ऐसे में जब राज्य में लगभग डेढ साल बात चुनाव होने वाले है। और जब बीजेपी अध्यक्ष गडकरी इस बात की घोषणा कर गए हों कि मिशन 2012 डॉ.निशंक के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इस बयान के मायने क्या इतने कमजोर हो सकते है कि,कोई भी पत्रकार कैसे इस तरह की ख़बर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बदलने की चला सकता है।
देर शाम तक मुख्यमंत्री निशंक के बदलने की चर्चा राज्य भर में चलती रही। सुबह से लेकर शाम तक कई फोन मेरे पास भी आएं। क्या ऐसा सही अर्था में हो रहा है। कई बुद्दिजिवियों का कहना था कि डॉ.निशंक का ग्राफ जिस तरह से राज्य में बढ़ रहा है। उनकी कार्य शैली की चर्चाएं जिस तरह से आज प्रदेश की जनता की जुबान पर है। राज्य की विकास यात्रा को डॉ.निशंक जिस तरह से निरंतर आगे बढ़ा रहे है। उत्तराखंड के बेरोजगारों के लिए सरकार ने जिस तरह से रोजगार के द्वार खोले हैं,आदि आदि को देखते हुए क्या बीजेपी का वरिष्ठ नेतृत्व ऐसा फैसला ले पाएगा। इस बात को लेकर प्रदेश के बुद्दिजिवियों में दिन भर खासी चर्चा रही। लेकिन सबका एक ही मत रहा की यदि इस तरह का फैसले के बारे में यदि बीजेपी थोड़ा सोचती भी हैं तो,यह निश्चित हैं की भविष्य में राज्य में बीजेपी का सफाया तय हो जायेगा और विपक्षी पार्टियों के लिए रास्ते असान हो जाएगें।
बहराल ये तो उत्तराखंड के एक वर्ग की सोच थी। लेकिन जिनको कुछ लोगों अर्थात पत्रकारों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर प्रोजेक्ट किया। आखिर उनकी इस बारे में क्या रया है? इस बारे में मैने जब दिल्ली स्थित भगत दा के कार्यलय में भगत दा से फोन पर बातचीत की और उन्हें बधाई देते हुए कहा,'भगतदा बधाई हो,आपको राज्य की कमान एक बार फिर से सौंपी जा रही है'। मेरी बात सुन भगत सिंह कोश्यारी थोड़ी देर तो जोर से हंसे,फिर बोले,'आज़ाद जी,मेरे पास भी सुबह से लगातार फोन आ रहे है। मैं खुद समझ नहीं पा रहा हूं कि आप लोग चाहते क्या है। मैने तो मुख्यमंत्री का सपना देखना ही बंद कर दिया है। मुझे मेरे आलाकमान लेह-लदाक भेज दें,लेकिन मैं उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनना अब सपने में भी नहीं सोच सकता। उनका कहना था कि दरअसल मेरे पास टीबी के बिमारी का ईलाज तो हैं,लेकिन टीबी वालों यानि ख़बर चालने वालों के लिए मेरे पास कोई दवा नहीं है। मुझे लगता हैं की आप लोग ऐसा कर मेरा अपमान कर रहे है। कृपया इस तरह के अफवायें फैला कर पार्टी को बदनाम न करें।'
भगत सिंह कोश्यारी भले ही इस बात को पार्टी की बदनामी कह रहे हों लेकिन यह भी सच हैं कि यह ख़बर पार्टी के एक बड़े नेता द्वारा ही प्रायोजित कर ही चलायी गयी थी। जब इस बारे में तमाम पत्रकारों लोगों से बातचीत हुई तो। पता चला की बीजेपी के कुछ बड़े चेहरे ख़ासकर देहरादून स्थित,निशंक की विकास यात्रा और जनता में निशंक की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर घबरा गए है। उन्हें अब समझ में नहीं आ रहा हैं कि वह निशंक को किस तरह रोकें,जिसके लिए यह चेहरे समय-सयम पर निशंक के ऊपर प्रायोजित हमले कर रहे है। इस बारे में जब हमने दिल्ली स्थित बीजेपी कार्यलय में इस ख़बर की पुष्टि करनी चाही तो,वहां से भी यही जबाब मिला कि की पत्रकार बंधु,अपने ही खेमे के मुख्यमंत्री को क्यों बदनाम करने पर तुले है आप लोग।
इन बात तो साफ जाहिर हो जाता हैं कि डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक के सामने चुनौतियां निरंतर बढ़ती जा रही है। वह भी उनके अपनो के ही माध्यम से। अब यहां सवाल यह उठता हैं कि डॉ.निशंक इन प्रायोजित हमलों का जबाब कैसे देगें। देगें भी की नहीं,या हमेशा कि तरह इन अफवाओं को दरकिनारे कर अपने काम में लगे रहेगें।
जगमोहन 'आज़ाद'
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