एक सवाल !!!!
""जैसा कि कहा जाता है कि औरत की बुद्धि उसके पैर के घुट्नों में होती है तो फिर एक तीस-चालीस-पचास-साठ-सत्तर-अस्सी यहां तक कि नब्बे वर्षीय "पुरुष"भी अठ्ठारह-बीस वर्षीय अपनी बेटी-पोती-नाती-परपोती समान लड्की के साथ के साथ "ब्याह" कैसे रचा डालता है?क्या पुरुष की बुद्धि उसके पैर की कानी अंगुली में होती है??होती भी है या कि नहीं...???""
आंकडे यदि सच्चाई होते तो......!!
अपने बचपन से ही हम स्कूल में और बाद में कालेज आदि में बहुत सारी बाते तरह-तरह के आंकडों की मदद से पढ्ते-समझते हुए आते हैं,सांख्यिकी के आंकडे कुछ ऐसी ही चीज़ हैं जो ऐसा लगता है कि तस्वीर को थोडा साफ़ करते हैं,कि गणनात्मक चीज़ों को सही तरीके से समझने में हमारी मदद करते हैं किन्तु सच तो यह है कि अधिकतर इससे मानवजाति दिग्भ्रमित ही होती रही है और इससे पैदा निष्कर्षों में बहुत से मामलों में कोई सार तक नहीं होता,अगर आप यह गौर करें तो आप खुद भी चौंक जायेंगे ! दरअसल ज्यादातर चीज़ों के बारे में हम निष्कर्षों की प्राप्ति के लिए जिन आंकडों का उपयोग करते हैं,दरअसल वो आंकडे उन मूल आंकडों का औसत होता है,जिनकी संख्या के कुल जोड को कुल ईकाईयों से भाग देकर प्राप्त किया जाता है,लेकिन यही भागफल बहुत से मामलों में एक "भ्रम" हो जाता है हम सबके लिए !आईए हम सब जरा इसकी पड्ताल भी करें .
आज के अखबार की खबर है कि भारत में मोबाईल उपभोक्ताओं की संख्या साढे पैंसठ करोड जा पहुंची है मगर इस आंकडे में सच का प्रतिशत थोडा-सा अलग भी हो सकता है,क्योंकि यह आंकडा मोबाईल कंपनियों द्वारा दिये/बेचे गये सिम के आधार पर है,जबकि सच तो यह है कि करोडों लोगों के पास आज मल्टी-सिम मोबाईल हैं,यहां तक कि लाखों लोगों के पास चार-पांच सिम से लेकर दर्जनों सिम तक मौजूद हैं,इसके अलावा बेकार पडे सिमों तथा रद्दी की टोकरी में फेंके जा चुके सिमों की संख्या भी लाखों-लाख संख्या में होंगे,इस प्रकार अगर हम इस संख्या की वास्तविक पड्ताल कर सकें तो यह संख्या मेरी समझ से पांच-सात करोड कम भी हो सकती है !!
अभी कुछ दिनों पूर्व भारत के सांसदों ने अपना वेतन सोलह हजार से तीन गुना बढा कर पचास हजार करोड रुपये कर लिया था तब अखबारों में तरह-तरह के आंकडे देखने को मिले.विभिन्न देशों में सांसदों को मिलने वाले वेतन का जिक्र किया गया था मगर संयोग से इस मामले में भारत की तुलना जिन देशों से तुलना की गयी थी वे सब-के-सब विकसित देश थे और भारत के मुकाबले बेहद अमीर,अर्थात इस "मुकाबले" का असल में कोई अर्थ ही नहीं था,क्योंकि यह बिल्कुल ऐसा ही था कि बिल्ली कितना खाना खाती है और हाथी कितना !तो सौ बिल्लियां कितना खाएंगी इतने हाथी के मुकाबले !!
आंकडों की बाजीगरी में एक शब्द बडा ही "फ़ेमस" है उस शब्द का नाम है "प्रति-व्यक्ति"!आईए जरा इस प्रति व्यक्ति नामक बला को समझें !दर-असल धरती पर प्रत्येक चीज़ प्रत्येक आदमी को उपलब्धता के आधार पर तौली जाती है और अरबों आदमियों के "महा-मायाजाल" में हरेक व्यक्ति की प्राप्तियों को अलग-अलग नहीं बताया जा सकता, इसे बताने के लिए ही सबके गुणनफल को इकाइयों से भाग देकर एक औसत निकाल कर बताया जाता है किन्तु यही औसत दर-असल एक "महाघोटाला" है,जिससे सच के नाम पर सिर्फ़-व-सिर्फ़ भ्रम ही सामने आता है और इस भ्रम का शिकार हर कोई ही है !आईए जरा इसे भी देखें!!!
मेरे गांव में एक हजार लोग रहते हैं,जिसमें किसी का दो जने का परिवार है,किसी का चार का,किसी का दस जने का,तो किसी का तो पच्चीस-तीस जनों का परिवार भी है,उसमें भी किसी दो जने वाले परिवार के पास कई एकड खेती है और किसी बीस जने वाले परिवार के पास एकाध या आधा एकड ही खेती है.गांव के एक हजार लोग मोटा-मोटी सौ परिवार हैं और गांव की कुल उपज सात हजार टन अनाज है.अब मज़ा यह कि गांव के सौ परिवारों में अस्सी-पिचयासी परिवार गरीब हैं,दो परिवार करोड्पति हैं,आठ परिवार लखपति,और पांच लखपति के लगभग-लगभग.तो कोई तो कम कमाई के बावजूद अपने परिवार के सदस्यों की दिन-रात की हारी-बीमारी से परेशान है और फसल भी उसकी ऐसी जो साल में दो बार ही होए,तिस पर सुखा-बाढ या किसी अन्य दैवीय आपदा का प्रकोप हो जाए तो यह समस्या अलग !हो सकता है कि किसी परिवार के खेतों की कुल उपज गांव में सबसे अधिक हो मगर वह परिवार ज्यादा व्यक्तियों वाला हो,इसका उलटा भी संभव है,कोई साल भर चार फसल तो कोई दो,कोई सब्जी उगा रहा है तो कोई क्या,हर तरह की फसल का विक्रय मूल्य भी अलग-अलग है,जो एक रुपये से लेकर पचास रुपये प्रति किलो तक का भी हो सकता है,जो भी हो मगर गांव की कुल उपज का मुल्य कुल कोई नब्बे लाख रुपये सालाना है,मगर इसमें भी पचास लाख रुपये तो इन पन्द्रह परिवारों के हैं,और उसमें भी पच्चीस लाख रुपये पांच परिवारों के,और उसमें भी पन्द्रह लाख सिर दो परिवारों के !!इस प्रकार आर्थिक आधार पर किसी की कोई तुलना या गणना आप कर ही नहीं सकते.....!!
तो दोस्तों आकड़ों का सच तो सचमुच यही है एक अलग तरह का उदाहरण देता हूँ,दो भाईयों की लड़ाई हो गयी,बिजनेस में आपस में उनकी नहीं पटी,घर की पंचायत बैठी,बड़े भाई से हिसाब माँगा गया तो उसने जो हिसाब दिया वो कुछ यूँ था....कमाई सौ रुपये,घर खर्च तीस रुपये,दूकान खर्च तीस रूपये,गोदाम दस रुपये,एल.आई.सी.पालिसी बीस रुपये और उपरी खर्च दस रूपये.....ऊपर-ऊपर देखने में हिसाब-किताब बिल्कुस जंचा हुआ था मगर जो बात घर की पंचायत को आखिरी तक पता नहीं चली की घर के तीस रुपये खर्च में छोटे भाई का हिस्सा मात्र पांच रूपये था,दूकान खर्च दरअसल बीस रूपये ही था,गोदाम खर्च भी इसी तरह कुछ उन्नीस-बीस के फर्क में था,तथा एल.आई.सी.पालिसी में छोटे भाई का हिस्सा महज ढाई प्रतिशत ही था और सबसे मजे वाली बात तो यह कि कमाई का अनुमान वास्तविक कमाई से आधा बताया जा रहा था और महीने की कुल सेल भी काफी घटा कर बतायी गयी थी.....मगर घर की पंचायत इस नपे-तुले हिसाब से संतुष्ट थी और इस प्रकार अंत में जो फैसला हुआ उसमें बड़े भाई ने कुल स्टॉक का साथ प्रतिशत खुद और चालीस प्रतिशत छोटे भाई के आधार पर बंटवारा कर दिया,अब यह स्टॉक का मूल्यांकन भी बड़े भाई का मन-माफिक हिसाब से तय किया हुआ था....तथा बड़े भाई ने पिछले पन्द्रह-बीस सालों का निजी इन्वेस्टमेंट तो पूरा-का-पूरा गायब ही कर दिया तथा वर्तमान में दी गयी उधारियों,जो स्टॉक का आधा थीं,उसे भी पूँजी मानने से इनकार कर वह भी गपचा गया यहाँ तक वह दूकान भी बड़े भाई के पास ही रही और बड़े भाई की इस न्यायप्रियता का सबने सामने समर्थन किया....और बड़ी हंसी-ख़ुशी-पूर्वक यह बंटवारा राजी-ख़ुशी संपन्न करवा दिया गया...बाद में क्या हुआ,इसकी बातें बाद में.....!!
कहने का मतलब यही है आंकड़ों का खेल ऐसा ही है,अगर आंकड़ों से सच प्रकाशित होता तो सब कुछ बहुत अलग-सा होता...आंकड़े अगर सच होते तो दुनिया में इतनी खुशहाली होती कि मत पूछिए.....भारत की प्रति-व्यक्ति आय मान लिया पांच हजार रुपये प्रति महीना है,मगर कहते हैं भारत की आधी संपदा के बराबर मूल्य के संसाधन कुल छत्तीस लोगों के पास है(या ऐसा ही कुछ)तो इन छत्तीस लोगों के प्रति महीने की कमाई को अगर निकाल लें तो प्रति व्यक्ति आंकडा क्या बचेगा....सो अनुमान लगाने का कार्य मैं आज आप सबों को सौंपता हूँ....आप अनुमान लगाएं तब तक मैं ज़रा हल्का होकर आता हूँ...तब तक के लिए एक छोटा सा ब्रेक.....!!!मैं भूत बोल रहा हूँ..........!
2 comments:
sahi kaha... aankdo par hamesha har cheez calculate nahi kee jaa saktee, hamesha har jagah ek hi funda to kaam nahiaata na...if possible, paanchve aankade ka rang badal de, padhane mein aasanee hogi... dhnyawaad...
सही कह रहे हैं।
Post a Comment