मोहनदास कर्मचन्द गान्धी जिन्हें महात्मा कहा गया व कॉंग्रेस के कुछ स्वार्थी व भारत राष्ट्र की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक कल्पना से शून्य बुद्धिराक्षसों ने उन्हें विखण्डित भारत का राष्ट्रपिता बना डाला। मूलत: गुजराती होने से व उनकी अवस्था के कारण उन्हें बापू कहा जाना स्वभाविक था किन्तु बापू कहते कहते राष्ट्रपिता बना देना भारत के साथ अन्याय ही नहीं वरन् एक पातक है जिसका दण्ड न जाने कब तक हम भारतवासियों को सहन करना होगा। यह सनातन पुरातन राष्ट्र जहाँ देव भी जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं, वैदिक मनीषा से बंकिम बाबू पर्यन्त जिसे भारतमाता कह कर उसकी वन्दना करते हैं, भला उसका कोई पिता कैसे हो सकता है? किन्तु धर्मनिरपेक्ष फिरंगी समर्थकों को इससे क्या क्योंकि वह और भी नाते बना गए हैं- चाचा, माता ( स्मरण करें एक प्रमुख कॉंग्रेसी देवकान्त बरुवा की इन्दिरा गान्धी के विषय में की गई टिप्पणी- INDIRA IS INDIA AND INDIA IS INDIRA.) भारत को ही INDIA कहा जाता है तथा भारतमाता भी, इस प्रकार इन्दिरा जी भारतमाता के समकक्ष कही गई हैं। एक पद सृजित किया गया राष्ट्रपति, तो इस दृष्टि से भारतमाता के पति राष्ट्रपति हुए, यह बात पुरुषों तक तो चल रही थी किन्तु अब एक महिला के इस पद पर आसीन होने से उसे राष्ट्रपति कहना उचित नहीं क्योंकि पति शब्द का अर्थ HUSBAND अथवा स्वामी MASTER हो सकता है। HUSBAND तो स्त्री हो नहीं सकती अत: प्रतिभा को राष्ट्रपत्नी कहना ठीक होगा। हाँ यदि पति का अर्थ स्वामी लगाएं तो प्रतिभा स्वामिनी होने से राष्ट्रपति कहला सकती है। किन्तु तब यह मानना होगा कि धर्मनिरपेक्षों के अनुसार यह भारत एक सम्पत्ति है जिसका/जिसकी स्वामी/स्वामिनी राष्ट्रपति होता/होती है। भाषा व शब्दों के प्रति तनिक भी गम्भीरता से विचार करने वाले इस विडम्बना को समझ तदानुसार अपना दृष्टिकोण स्थापित करें।
भारतमाता के साथ और भी सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास हुआ है इन्दिरा जी के पुत्र को भैय्या व उनकी इतालवी पत्नी को भाभी कहा गया है तथा इसके उपरान्त अब राहुल भय्या को युवराज से सम्बोधित करते समाचार माध्यम व धर्मनिरपेक्ष राजनेता तनिक भी लज्जा अथवा संकोव्ह का अनुभव नहीं करते हैं। भारतमाता के सम्बन्धों की यह श्रृँखला कहाँ समाप्त होगी, ज्ञात नहीं।
डॉ. जय प्रकाश गुप्त, अम्बाला छावनी।
९३१५५१०४२५
30.9.10
भारतमाता के सम्बन्धी
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1 comment:
बुद्धिराक्षस,पातक,धर्मनिरपेक्ष,फिरंगी समर्थकों की यह श्रृँखला कहाँ समाप्त होगी.........?
२०१४ में "सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन" के पश्चात | जिसे "स्वामी रामदेव जी महाराज" ने आरम्भ कर दिया है |
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