हमारे सांसदों ने स्वयं संसद में बैठकर अपने वेतन और भत्तों में तीन सौ प्रतिशत की वृद्धि कर ली है। उनका कहना है कि उन्हें जो वेतन-भत्ते मिलते हैं, वे अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम हैं। वे अपनी तुलना उन देशों के सांसदों से करते हैं जो विकसित और समृद्ध देश हैं। वहां के आमजन उस गरीबी और कुपोषण में नहीं जीते हैं जिसमें इस देश के अधिसंख्य लोग जीते हैं। एशिया विकास बैंक की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 75 फीसदी लोग निर्धन मध्य वर्ग में आते हैं, जिनकी मासिक आय 1035 रुपये से कम है। निम्न मध्य वर्ग, जिसकी आय 1035 से 2070 रुपये के बीच है, में लगभग 22 करोड़ लोग हैं। 2070-5177 आय वर्ग वाले मध्य-मध्य वर्ग के लोगों की संख्या पांच करोड़ से कम है। उच्च मध्य वर्ग के लगभग 50 लाख लोगों की मासिक आय 10 हजार का आंकड़ा छूती है। केवल 10 लाख लोग, जिन्हें अमीर समझा जाता है, की आय 10 हजार रुपये से अधिक है। देश के सांसद जो वेतन और भत्ते प्राप्त करने जा रहे हैं उसके अनुसार प्रत्येक सांसद की मासिक आय डेढ़ लाख रुपये मासिक से अधिक होगी। उन्हें सांसद होने के नाते जो सुविधाएं प्राप्त होंगी उनमें दिल्ली में मुफ्त आवास, 50 हजार यूनिट बिजली, 4 हजार किलोलीटर पानी, डेढ़ लाख मुफ्त काल सहित दो टेलीफोन, दो मोबाइल फोन, पति या पत्नी सहित देश के किसी भी भाग की 34 बार मुफ्त हवाई यात्रा, रेलवे के वातानुकूलित डिब्बे में असीमित यात्राएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी अनेक सुविधाएं हैं जिन पर आम लोगों को हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। अनेक सांसदों का यह कहना है कि उनका वेतन सचिव स्तर के किसी भी अधिकारी से एक रुपया अधिक होना चाहिए। यह बेहूदा तर्क है। सचिव स्तर के अधिकारी का वेतन आयकर मुक्त नहीं होता। सांसद चाहते हैं उनके वेतन पर किसी प्रकार का कर न लगे। सरकारी अधिकारियों को मुफ्त आवास, बिजली, पानी, टेलीफोन सेवा, हवाई अथवा रेल सेवा की ऐसी सुविधाएं नहीं मिलतीं, जो सांसदों को हासिल हैं। किसी सरकारी कर्मचारी को किसी अन्य साधन से धन-अर्जित करने का अधिकार नहीं होता। किंतु सांसदों पर ऐसा कोई बंधन नहीं होता। भारतीय सांसदों में 300 से अधिक करोड़पति और अरबपति हैं। एक सांसद यदि पूरी अवधि तक संसद का सदस्य रहता है तो उसकी संपत्ति में चार-पांच गुणा बढ़ोतरी हो जाती है। सांसदों के वेतन को लेकर संसद के सभी सदस्यों के बीच जिस प्रकार की एकता दिखाई दी है, वह भी अद्भुत है। वामपंथी सदस्यों ने वेतन वृद्धि का विरोध अवश्य किया और इस प्रश्न पर सदन से बहिर्गमन भी किया। कुछ वर्ष पहले संविधान में संशोधन करके उसमें समाजवादी शब्द जोड़ा गया था। किंतु अपने आपको समाजवादी कहने वाले सांसदों ने वेतन वृद्धि में जितनी लोलुपता और दुराकांक्षा प्रदर्शित की है, उतनी किसी और ने नहीं की। इस अभियान में लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव सबसे आगे रहे। मुलायम सिंह यादव तो उस पार्टी के अध्यक्ष है जिसका नाम ही समाजवादी है। इस देश में आ रहे समाजवाद का हाल यह है कि 45 प्रतिशत से अधिक लोग 20 रुपये रोज से कम में गुजारा करते हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के अंतर्गत किसी भी बरोजगार मजदूर को वर्ष में 100 दिन का काम और 100 रुपये प्रतिदिन दिए जाने का प्रावधान है। राजस्थान से प्राप्त एक रिपोर्ट के अनुसार वहां इस योजना के अंतर्गत लगाए गए मजदूरों को एक रुपये से 13 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिली। शेष धन बिचौलिये खा गए। संसद में बैठे जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं है कि देश में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या करोड़ों में है। ये असमय ही मौत के गाल में समा जाते हैं। बस्तर तथा अन्य आदिवासी क्षेत्रों के लोग पास के शहरों में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में मजदूरी के लिए जाते हैं। इस प्रकार की रिपोटर्ें भी आई हैं कि उनमें से कुछ लोग रास्ते में ही भूख से तड़प कर मर गए। इन सांसदों का इससे कोई सरोकार नहीं है। इनकी मानसिकता तो यह है कि जब देश में लूट-खसोट चल ही रही है तो वे इस अवसर को हाथ से क्यों जाने दें। श्री महीप सिंह (लेखक जाने-माने साहित्यकार हैं)
साभार:-दैनिक जागरण
3.9.10
जनप्रतिनिधियों की अंतरात्मा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
महीप सिंह जी, बात सोलह आने सच है, हमारे सांसद कही से भी समाजवादी नहीं है, क्यों कि ये भूखे नंगे लोग है और हम सभी लोग जानते है कि भूखे नंगों का कभी पेट नहीं भरता है चाहे आप उसे कुछ भी दे दिजिये, संवैधानिक तौर पर सांसदों को इतनी सुविधाएँ इस लिए दी गई ताकि इनको कोई चिंता न रहे और चिंता मुक्त होकर ये अपने छेत्र कि जनता का राज्य का और देश के विकाश के बारे में सोंचे, लेकिन ये छेत्र कि जनता राज्य या देश के विकाश के बारे में ना सोंच कर अपने विकाश के बारे में सोंचते है और इनसे अच्छे कि उम्मीद करना हमारी मुर्खता है.
Post a Comment