एक कफस में कैद बुलबुल ने बताया कान में
एक आज़ादी के बदले मिल गया क्या -क्या नहीं ।
अब रहा डर भी नहीं सैयाद का शायर मुझे
घोसले के वास्ते चुनना मुझे तिनका नहीं ।
व्यर्थ था वन वन भटकना , गुनगुनाना शाख शाख
आदमी को छोड़ कोई गीत तो सुनता नहीं ।
उस खुदा ने जो किया सचमुच बड़ा अच्छा किया
वाह रे अल्लाह , तेरी सूझ का कहना नहीं ।
क्यों चिढाती हैं मुझे दर दर भटकतीं बुलबुलें
एक दिन भी पेट भर मिलता जिन्हें दाना नहीं ।
पर मचल जातीं कभी आँखें पहाड़ों के लिए
और छोटे आंगनों में एक भी झरना नहीं ।
20.12.10
एक कफस में कैद बुलबुल
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2 comments:
bahut bhavbhari prastuti .badhai .mere blog ''kaushal ''par aapka hardik swagat hai .
Dhanyawaad Shaliniji!
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