तन्हाइयों की आहट ने जो इश्क जगाई
बीसियों की चाप उसे मिटा न सकी ;
इक उम्र में मैंने दिया उल्फत की जलाई
क्या अजब है की एक फूँक उसे बुझा न सकी ।
तेरा जाना मुझे एक यादगार सा बनकर
बारहा नम किया आँखे मगर रुला न सका ;
तू मेरे सामने घंटों रहा एक सच बनकर
जमाना भी है इर्द-गिर्द मैं भुला न सका ।
19.12.10
तन्हाइयों की आहट
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
बहुत खूब्।
dhanyawad wandanaji!
Post a Comment