रे मन तेरी ये दुस्साहस जो तूने प्रेम रचा डाला,
तिल-तिल जलती इस मन को अब दे छांव प्यार की मिटे ज्वाला II
मन की माने या दुनिया की जो बार बार ये बतलाती है ,
की प्यार आग का दरिया है डूब के ही हमें पार जाना हैii
मन के कोने से आस जगी नहीं डरने की ये बात नहीं ,
प्यार ही तो है नफरत तो नहीं दुनिया की शाश्वत गाथा यही II
1 comment:
hay! zamama syat prem ko
kabhi na sah sakata hai ;
premakatha ko baar-baar
gaaye na kintu thakata hai .
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