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25.12.10

टाइगर के सिगनेचर-जिम कार्बेट पार्क

1973 में जब से प्रोजेक्‍ट टाइगर अभियान चलाया गया है,तब से ही टाइगर को हमारी देखने की लिप्‍सा अचानक बढ गयी है। जब हम भी परिजनों के साथ टाइगर रिजर्ब जिम कार्बैट देखने के लिये पंहुचे तो निश्चित था कि टाइगर हमारे स्‍वागत के लिये तो रहता नहीं,लेकिन हर साल जिम कार्बेट पहुंचने वाले सैलानियों की तादाद लगभग 70,000 बतायी गयी1अब हम अनुमान लगा सकते थे कि टाइगर ही क्‍या पार्क के अन्‍य जानवरों के लिये भी ये मानव का उनके घर में अतिक्रमण है।सुबह के साढे छ; बजे हॉड कपां देने वाली सर्दी में हम पांच लोग चार छोटे बच्‍चों के साथ झिरना गेट से अन्‍दर दाखिल हुये थे,हम लोग खुली जीप यानि सफारी में सवार थे।बच्‍चों को अपना फायदा देखते हुये और पार्क के कानूनों को देखते हुये मैने डन्‍हें कुछ भी खाने की चीज देने से मना कर दिया।जाडे में यहॉं का तापमान दस डिग्री से कम ही रहता है।बच्‍चों की नन्‍हीं उंगलियॉं सर्दी से एकदम बर्फ की माफिक ठण्‍डी थीं।सुबह के साढे सात तक सूरज की की किरणें पेंडों की पत्तियों से छनकर कहीं-कहीं ठण्‍ड को कुछ कम करने की कोशिश में थीं।इसी गुनगुनी धूप मे कुछ हिरन हमें शरमाते हुये भागते दिखे। हमें गाइड ने बताया कि पार्क का क्षेत्रफल लगभग 1318 वर्ग किमी0 है,यह दिल्‍ली से 273 किमी0 काशीपुर रामनगर रोड पर मात्र 18 किमी0 है। हमें बताया गया कि पार्क का केवल 520 वर्ग किमी0 एरिया में टाइगर रिजर्व प्राजेक्‍ट के लिये सुरक्षित है।यहॉं कोई भी गतिविधि कानून के खिलाफ है।इस एरिया के अन्‍दर बच्‍चों ने जब बेरी से बेर तोडने के लिये सफारी ड्राइबर से कहा तो हर एक भारतीय के मुताबिक,जो किसी आग्रह को कुछ हद तक जरूर पूरा करने की कोशिश करता है, उसने कहा कि यह जंगल के कानून के खिलाफ है लेकिन उसने फिर भी बच्‍चों को पके बेर तोड के दिये।दिखने में ये बेर बिल्‍कुल छोटे पके सेब की तरह थे,लेकिन खाने में एकदम खटटे।हमारे सामने से आती हुयी सफारी में अधिकांश जवान लडकिंयां खडे होकर पार्क का जायजा ले रहीं थीं,या अपने मंहगें का कपडों का फैशन कर रहीं थीं,समझ से बाहर था।

हमें एक बारह सिंगा,कुछ हिरन व सिर्फ एक मोर के दर्शन हो सके थे।बच्‍चों की नारजगी इस बात को लेकर थी,उन्‍हें एक हाथी भी नहीं दिखा।लेकिन मेरे लिये एक बात महत्‍वपूर्ण थी कि मुझे गाइड ने रेत में टाइगर के,हाथी के व भालू के पैरों के निशान दिखाये।मेरी नजर में ये इन जानवरों के सिगनेचर थे,बच्‍चों के लिये आटोग्राफ।गाइड ने बताया कि इस रिजर्व में लगभग 160 टाइगर हैं‍,जिनकी गिनती जगह जगह लगे कैमरों से की जाती है।

टाइगर के बारे में कहा जाता है कि ये जानवर अपनी गंघ,पेशाब,व मल आदि से अपने साथियों को अपनी सूचना देते हैं।आदमी इनसे आगाह हो सकता है। यहॉ टाइगर आदमियों पर हमला नहीं करता। कर्नल जिम कार्बेट के नाम पर यह पार्क हमें जंगली जानवरों के रहन सहन के बारे में काफी कुछ बता पाता है।यहॉं गुजरने वाली रामगंगा नदी जानवरों की प्‍यास बुझाती है,कोशी नदी रिजर्व पार्क की सीमाओं को तर रखती है,जो आपात स्थिती में जानवरों को महफूज रखती है।

1 comment:

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत अच्‍छी जानकारी। हम भी रण थम्‍भौर अभयारण्‍य गए थे। हमें भी सारा ही चक्‍कर कटाकर शेर के पंजे के निशान के दर्शन कराए गए थे। सभी को केवल पंजा दिखाने का अर्थ मुझे तो अचरज भरा लगता है।