सुख इस बर्फबारी के कारण परेशानी तो हुई लेकिन इस ने बहुत कुछ सिखाया भी है. सब से बड़ी सीख तो यही मिली हैं कि रास्ताें पर जमी बर्फ पर चलना पडे तो हमारे पास ऐसे हालात से निपटने के कई तरीके हैं, लेकिन यदि रिश्तों में बर्फ जम जाए तो? तब हमें आसानी से कोई हल इसलिए नहीं सूझता क्यों कि हमारा अहंकार, मान-अपमान की अकडं आडें आ जाती है. रिश्ते कच्चे धागे की तरह होते हैं, लेकिन इन्हे मजबूत कैसे बनाया जाए, यह बर्फबारी का सामना करने वाले लोग ही जानते है। शायद यही सबसे बड़ा कारण है कि आम हिमाचली दिल का साफ और बिना किसी स्वार्थ के मदद को हमेशा तत्पर रहता है।
सुख हमेशा क्षणिक तो होता ही और यदि सुख आया है तो मान कर चलना चाहिए दुख बाहर दरवाजे की ओट मे ंखड़ा अन्दर आने का इंतजार कर रहा है. इस सत्य को इस बार हुई बर्फबारी ने फिर सही साबित कर दिया। आस-पास के क्षेत्राें में हो रही बर्फबारी की जानकारी अन्य शहरों में रहने वाले परिचितों को मिली तो सब के फोन आने लगे, यह जानने के लिए कि शिमला में गिरी या नहीं, कब तक गिरेगी। और जब बर्फ गिर गई तो यह हमें बहुत कुछ सिखा भी गई।
रूई के फाहों की तरह गिरने वाली बर्फ कितनी नाजुक और मुलायम थी। इस बर्फबारी ने मन खुश कर दिया लेकिन जब यह धूप खाने के बाद जम कर सीढियों-रास्ताें-छतों पर पत्थर समान हो गई तो परेशानी भी बढ़ा दी। जिन रास्तों पर हम अंधेरे में भी बिना रुके एक सांस मे चढ़ जाते थे उन्ही रास्तों पर दिन मे साफ-साफ दिखाई देने के बाद भी रिस्क लेना नहीं चाहते, पहले एक पैर आगे बड़ा कर अन्दाज लगाते कि दूसरा पैर भी यहा रखना ठीक होगा या नहीं। सख्त हुई बर्फ वाले इन रास्ताें की हमारे मन में ऐसी दहशत बैठ गई जैसे इन रास्तों के नीचे कही हमारे दुश्मनों ने बारूद तो नहीं बिछा दी हो।
एक बार अपने किसी बहुत ही नजदीकी रिश्तेदार से धोखा खाने के बाद हम जैसे फिर किसी पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं करते वही हालत इन चिर-परिचित रास्ताें को लेकर हो गई थी। सीढ़ियों और रास्ताें को पैर धरने लायक बनाने के लिए वही मिट्टी-कचरा काम आया जिसे देख कर हम नाक-भौ चढ़ाते थे। जैसे मुसीबत मे ंहमारे अपने हमारा साथ छोड़ देते हैं, वही धोखाधड़ी इन रास्तों ने भी हमारे साथ की, हम उस गरीब मजदूर जैसे हो गए जिसके साथ धोखाधड़ी होने पर ना तो आसपास के लोग विश्वास करते है और ना ही थाने में आसानी से उसकी रिपोर्ट दर्ज की जाती है.
जहा रैलिंग का सहारा मिला वह पल डूबते को तिनके के सहारे से कम नहीं था। जहां कोई सहारा ना मिला वहा ंगिरते-पड़ते-संभलते यह तो समझ में आया कि मुसीबत मे कोई किसी के काम नहीं आता और गलत डिसीजन होने पर यह अनुभव तो मिलता ही है कि दूसरी बार फिर से वही गलती नहीं होती।
इस बर्फबारी ने और भी जो सिखाया वह यह कि रास्ताें पर जमी बर्फ तो फिर भी दो-चार दिन मे पिघल जाती हैं, लेकिन रिश्तो के बीच यदि बर्फ जमने लगे और उसे समय रहते साफ ना किया जाए तो वह भी सड़क पर जमते-जमते ढेर के रूप में अलग से ही नजर आने लगती है. जैसे रास्ताें पर यहां-वहां जमी बर्फ गाड़ियाें का संतुलन बिगाड़ती है वैसे ही रिश्तों के बीच जमी बर्फ सम्बंधों की गति अवरुध्द कर देती है। यह बर्फ जमती है तो इसका सबसे बड़ा कारण हमारी अपेक्षा होती है और यही अपेक्षा दुखों-अवसाद-असंतोष का कारण भी बनती है. मकानों की छते ढलावदार रखते ही इसलिए हैं कि या तो बर्फ जमे ही नहीं और जम जाए तो पानी बन कर बह जाए। हमारे मन भी मकानाें की ढलवा छतों की तरह हो जाए तो मान-अपमान की बर्फ जम ही ना पाए।
रिश्तों के बीच जब यह हालात बन जाते है तो हमारे आसान से काम भी बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं। अच्छे-भले रात में सोते हैं, सुबह देखते है तो चारो तरफ सफेदी छाई हुई है, मन थोड़ा खुश हो पाता है कि बिजली गुल से आंखो के सामने परेशानियाें का अन्धेरा छा जाता है, किचन से लेकर बाथरूम तक नल हड़ताल पर. पाइप लाइन में पानी भी जम चुका होता है. सब कुछ होते हुए भी हम असहाय से हो जाते है. पानी की टंकी से लेकर नलों के नीचे तक कागज-पुराने कपडे ज़लाकर कुछ गरमाहट बनाने की कोशिश करते है। नल की टोटी बडे उत्साह से खोलते है तो फुस्स की तेज आवाज के बाद पहले बूंद-बूंद पानी टपकता है और फिर जब तेजी से नल चलने लगते है तो हमें अपने किए गए प्रयास पर कितना गर्व होता है।
इस सारी कवायद में ही रिश्तों में जमी बर्फ गलाने का नुस्खा भी तो छुपा है. हम अपने अहंकार-अपेक्षाओं को जला कर भी तो बर्फ के नीचे जम चुके सम्बन्धों में फिर से गरमाहट पैदा कर सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा मन में जो गुस्से का गुबार दबाए बैठे है वह बाहर ही तो निकलेगा, नल से भी तो पहले आवाज करते हवा और फिर पानी आता है। बिना अपेक्षा वाले रिश्तें रहेंगे तो कभी ऐसी सख्त बर्फ जमेगी ही नहीं। यह तभी संभव है जब हम बिना स्वार्थ के अपना काम करे यानी नेकी करे और भूल जाएं।
5.1.11
रिश्तों में तो बर्फ ना जमने दे
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