मन मचलता है....
मगर कुछ कह नहीं पाता....
पता नहीं किस दिशा से
इसे कोई अज्ञात बुलाता....
कौन कानों में कुछ सुरसुरा देता है...
कौन देह को छुईमुई बना देता....
कौन आँखों को रौशन-सा
करके भी इक धुंध भर देता है
कौन ह्रदय को महका जाता....
मन मचलता है....
मगर कुछ कह नहीं पाता
कहाँ से आ जाते हैं
आँखों में अनंत सपने.....
कौन कल्पनाओं को बना कर
मुझमें उड़ेल देता....
कौन नस-नस में जीने की
ताकत भर देता है....
और भरी उदासी में यकायक
उमंग को पग देता है.....
ये कौन है जो होकर नहीं है और
नहीं होकर होने की तरह
ये कौन है जो हममें रहकर भी
अज्ञात की तरह जीता है....
ये कौन अज्ञात है जो
हरदम मुझे बुलाता रहता है
मेरे भीतर एक झरने की भांति
अनवरत छलछलाता रहता है.....!!!
http://baatpuraanihai.blogspot.com/
2 comments:
man machalta hai,magar kuchhkah nahi pata..satyata par khari utarti bhavabhivyakti...
मैंने अज्ञात को समर्पित एक कविता लिखी थी...
चंद लाइने प्रस्तुत हैं
एक मकड़ी बुन रही जाला अनवरत
और उसमे फंस रहे हैं जीव कितने...
छटपटाहट भी फसाता जा रहा है
मृत्यु भी उसको बुलाता जा रहा है...
आपकी अभिव्यक्ति बेहतरीन है....जय भारत जय भारती
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