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1.8.11

आधुनिक बोधकथाएं - ६. प्रिय कविता ।




सौजन्य-गूगल।

एक बड़े ही स्मार्ट और हेन्डसम युवा कवि के साक्षात्कार का, एक  कार्यक्रम , टी.वी. पर, भरी दोपहर में, प्रसारित हो रहा था । 

इस कार्यक्रम को, एक  हॉटेल  में  किटी  पार्टी  मना  रही, कुछ  आधुनिक-मुक्त विचारोंवाली महिलाएं, बड़े चाव से  निहार रही थीं । 

टी.वी. एन्कर-"सर, आप कविता कब से लिख रहे हैं?"

युवा कवि-" जब मैं, कॉलेज में अभ्यास करता था तब से..!!"

टी.वी. एन्कर-" सर, आपको कौन सी कविता सब से अधिक प्रिय है?"

युवा कवि-" देखिए, वैसे तो मुझे मेरी सारी कविता प्रिय है,पर मेरी `चाहत` नाम की, एक कविता मुझे आज भी सब से अधिक प्रिय है ।"

टी.वी. एन्कर-"सर, आपकी कोई ताज़ा कविता का नाम आप दर्शको को बताएंगे?"

अब, टी.वी. एन्कर के इस सवाल, जवाब वह युवा कवि देता,इस से पहले ही, किटी पार्टी में जमा हुई, कुछ महिलाओं में से एक ने कहा," यह युवा कवि, कॉलेज के आख़री साल मेरे साथ ही पढ़ता था और उसकी यही प्रिय कविता, मेरे यहाँ छप कर,आज चार साल की हो गई है, हमारी उस बच्ची का नाम भी `चाहत` है..!!"


यह सुनकर दुसरी महिला बोली," यह कवि, ढाई साल से  मेरे साथ नौकरी कर रहा है और उसकी `चाहत` नाम की, ऐसी ही एक और प्रिय  कविता मेरे यहाँ छप कर, अभी  दो  साल की हो गई है..!!"

बस, इतना सुनने भर की देरी थी और तीसरी एक महिला गुस्सा हो कर बोली," क्या बात करती हैं आप दोनों? ये  सा...ला..कवि..!! इतना बदमाश है? चार माह के पश्चात  उसकी एक और कविता मैं  भी प्रकाशित करनेवाली हूँ, जिसका नाम भी उसने अभी से `चाहत` रखा है..!!"

यह  सुनकर  वे  दोनों  महिलाएं  चीख  उठी,"क्या कह रही हो तुम?"

आख़री महिला ने बड़े मायूस स्वर में कहा," इस ठग के साथ,पिछले साल ही, मेरी शादी हुई है..अब मेरा क्या होगा..!!"

उन दो महिलाओं ने,उदास महिला को, ढाढ़स बंधाते हुए कहा," अब कविराज, तुम्हारे यहाँ पूरा कविता संग्रह प्रकाशित करेंगे..और क्या..!!"  


आधुनिक बोध- किसी भी कवि राज से, विवाह रचाने के पूर्व, उन्होंने अपनी प्रिय कविताओं को, कई जगहों पर छापा तो नहीं है ना? ये बात अवश्य चेक कर लेना चाहिए..!!
मार्कंड दवे । दिनांक-०१-०८-२०११.

4 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

काश की समाज में ऐसी आधुनिकता ना आये ..

Shalini kaushik said...

shandar prastuti.par sateek vyangya.

Shikha Kaushik said...

he bhagvan aisa kavi kabhi koi kavita n rach paye ! sateek vyangy .aabhar

suryakant said...

ya kavitayan to matra `jokes` ki fuhad prastuti hi hain. kisi bhi kavi ka liya eisi kavita likhana sahi nahi hai.... ya kavita to hai hi nahi...