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28.8.11

हो गयी पीर पर्वत सी




हो गयी पीर पर्वत सी
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हो गयी पीर पर्वत सी ,पिघलनी चाहिये
इस हिमालय से कोई ,गंगा निकलनी चाहिये

आज ये दीवार ,परदों कि तरह ,हिलनी लगी
शर्त लेकिन,थी कि ये, बुनियाद हिलनी चाहिये

सिर्फ़ हंगामा खडा करना ,मेरा मकसद नही
सारी कोशिश, है कि ये , सूरत बदलनी चाहिये

मेरे सीने में नही , तो तेरे सीने में सही
हो कही भी आग लेकिन, आग जलनी चाहिये ।

        वन्दे-मातरम!


ho gayi hai peer parwat si 

 
ho gayi hai peer parwat si, pighalni chahiye
is himalay se koi, ganga nikalni chahiye

aaj yah deewar, pardo ki tarah, hilne lagi
shart lekin, thhi ki ye, buniyad hilni chahiye

sirf hangama, khada karna, mera maksad nahi
saari koshish, hai ki ye, soorat badalni chahiye

mere seene mein nahi, to tere seene mein sahi
ho kahi bhi aag lekin, aag jalni chahiye
                                    
                                 
Dushyant Kumar

		 

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