भ्रष्टाचार के खिलाफ चली अन्ना हजारे की लंबी मुहिम यकीनन ऐतिहासिक रही। आजादी के बाद एकजुटता का ऐसा नजारा देश में शायद ही देखने को मिला हो। दो से तीन पीढ़िया इसकी साक्षी बनी। आम जनता इसलिए उनके साथ जुड़ी क्योंकि लक्ष्य सटीक था। भीड़ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण भी थी कि कोढ़ग्रस्त व्यवस्था में भ्रष्टाचार से सभी त्रस्त हैं। भ्रष्टाचार व महंगाई जनता को तिल-तिलकर मारती रही है। अन्ना और जनता एक-दूसरे के पूरक बने। कोई भी कमजोर नहीं हुआ। मकसद व साहस भी बराबर रहा। कोई एक भाग जाता, तो शायद माहौल कुछ ओर ही होता। इच्छाशक्ति व साफ भावना कठिन रास्तों को आसान करती हैं, बड़बोलेपन से कुछ नहीं होता। कई दुर्भाग्यजनक पहलू भी रहे। चंद सफेदपोशों की शर्मनाक बयानबाजी हो या अन्ना की गिरफ्तारी। गिरफ्तारी ने ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत सरकारी तरीके से सच कर दिखाया था। गिरफ्तारी के बाद उनकी रिहाई भी सरकार को करनी पड़ी। सरकार ने यह फैंसला उन्हें मिल रहे जनसमर्थन को देखकर लिया। लगने लगा था कि इससे हालात ओर भी बिगड़ जायेंगे। यूं भी जनता की सबसे बड़ी ताकत एकजुटता ही होती है। भ्रष्टाचार का राग अलापने वाले कईयों को झटका भी लगा। कदम महत्वाकांक्षाओं से दूर होते, तो वह कामयाब भी हो जाते। हिंसारहित आंदोलन की सफलता का श्रेय मीडिया से लेकर पुलिस तक को भी जाता है। अन्ना साहब की इच्छाशक्ति व साहस को सलाम!
28.8.11
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