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26.8.11

भ्रष्टाचार -- दोषी कौन ?

एक बार युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा था , " राजा समय का निर्माता है या समय राजा का निर्माता ?"
भीष्म ने कहा ,"राजा समय का कारण है (राजा कालस्य कारणं ) , राजा के अनुसार युग का निर्माण हो जाता है ।"
प्रजा का एक अर्थ बच्चा भी होता है , प्रजा बच्चे की तरह भावुक होती है , समझदार नहीं होती । और जैसे हम बच्चे पर कोई दोष नहीं थोप सकते , वैसे ही प्रजा दोषी नहीं मानी जा सकती ।
भ्रष्टाचार के लिए दोषी नेता ही हैं क्योंकि जैसे भी हो शासन तो वही करते हैं । राज तो उन्हीं का होता है । उनहोंने जनता की भावुकता का दोहन किया । उनहोंने तो कई बार नफरत की आंच में सत्ता की रोटियाँ सेंक लीं ।
गांधी ने तो रामराज्य का सपना देखा था पर नेताओं की आँखों में स्वर्णमहल के सपने रहे । बिना भ्रष्ट हुए वे सपने साकार कैसे हो सकते थे ?
अब आप कडवाहट के साथ यह पूछना चाहेंगे कि उपाय क्या है ?
उपाय है 'मूल्यबोध'।
हमें यह जानना होगा कि कोई व्यक्ति महान तभी हो सकता है जब उसके पास अनेक मानव मूल्य हों । मानव मूल्यों की समुचित शिक्षा की सर्वांगीण आवश्यकता है तथा नेतृत्व करने की इच्छा रखनेवालों के लिए तो इन्हें अपरिहार्य बना देना होगा ।
फिर तो यथा राजा तथा प्रजा !
नेतृत्व करनेवाले अगर चोर और भ्रष्ट न हों तो फिर पूरा देश स्वस्थ एवं सदाचारी बन जाए ।
यहीं पर श्री अन्ना हजारे द्वारा उठाया गया मुद्दा महत्वपूर्ण है । माना कि यह पर्याप्त नहीं है पर कुछ तो है सही दिशा में । आइये हम सब उनको पुरजोर समर्थन दें ।

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