बचपन में राजनेताओं के नाम और उनके काम में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, खेलने-कूदने से फुर्सत ही कब रहती थी कि कुछ और याद रहे। लेकिन उस वक्त भी लालू प्रसाद यादव का नाम याद था। पता था कि आप बिहार के ‘राजा’ हैं और इसके पीछे कारण बहुत ही सहज था, घरवाले जब भी राजनीति से जुड़ी बातें किया करते तो अक्सर लालू का जिक्र करके कोई किस्सा सुना देते या फिर उनकी तथाकथित बेबाकी पर हंसने लगते। कभी-कभी ये नाम इसलिए भी सुनाई देता कि तमाम घोटालों के बावजूद भी वो मुख्यमंत्री थे, जेल में थे लेकिन बीवी को तैनात कर रखा था। कुछ इन्हीं तरह की बातों से लालू प्रसाद यादव का नाम मस्तिष्क रूपी कागज पर उस वक्त से ही छप गया जब मैने राजनीति शब्द को जोड़-जोड़कर पढ़ना शुरू किया था।
उसके बाद स्कूल और फिर कॉलेज में आ गए, समझ बढ़ी, दायरा बढ़ा और राजनीति की इकाई समझ आने लगी। इस वक्त तक कई राजनेताओं के नाम के बाद ‘जी’ का सम्बोधन करने लगी तो कुछ के नाम के साथ उन तमाम शब्दों का जो अब राजनीतिज्ञों के पर्यायवाची (देशद्रोही, पापी, चोर, भ्रष्ट...आदि) बन चुके हैं। खैर लालू प्रसाद यादव का नाम कभी भी राजनीतिज्ञों की सूची में नहीं रख सकी, क्योंकि जब भी इस नाम का जिक्र होता, कोई यार-दोस्त उनके ऊपर गढ़ा गया चुटकुला सुनाने लग जाता या फिर कोई किस्सा लेकर बैठ जाता।
इन सबके बीच एक दौर ऐसा भी आया जब वो रेलवे विभाग सम्भालते हुए मैनेजमेंट गुरू बन बैठे और देश से लेकर विदेश तक घूम-घूमकर शिक्षा देने लगे, खैर ये दौर भी बीतते देर नहीं लगी और उसके बाद लालू कहीं खो से गए। चुनावो में मिली करारी हार भी कहीं ना कहीं उनकी चुप्पी का कारण बनी।
लेकिन आज एक लम्बे समय बाद लालू को सदन में बोलते देखा और आज उन पर और उनकी बातों पर हंसी आने के बजाय, उनकी सोच पर तरस आ रहा था। लालू प्रसाद ने सदन में बजाय इसके कि अन्ना के प्रस्ताव पर कोई राय दें, देश के लिए कुछ सोचें, कुछ सुझाव दें इस बात पर खींस निपोरते दिखे कि कोई 74 साल का आदमी 12 दिन का अनशन कर कैसे सकता है, और कैसे कह सकता है कि अभी मैं 3 किमी तक और दौड़ सकता है। लालू प्रसाद जी इन बातों को किसी मजाक की ही तरह सदन में अभिव्यक्त कर रहे थे। किसी सदस्य ने जब पूछा कि क्या ये इतना जरूरी विषय है तो लालू जी ने झट से जवाब दिया कि हां ये बहुत जरूरी टॉपिक है। हम नेता लोगो को ये पता करना चाहिए कि कोई ये सब कैसे कर सकता है। हम नेता लोगों को उनसे ट्रेनिंग लेनी चाहिए और डॉक्टरों को उन पर रिसर्च करना चाहिए। हालांकि इस बात पर उनके सहयोगी भी खूब दांत चीयार रहे थे लेकिन क्या ये अन्ना का अपमान नहीं है? अन्ना ही क्या ये उस तपस्या का भी अपमान ही है जो भारत की जनता पिछले 12 दिनों से कर रही है और साथ ही ये सदन का भी अपमान ही था।
सदन में आज लालू प्रसाद को सुनकर पहला ख्याल बस यही आया कि राजनेताओं और राखी सावंत में कोई खास फर्क नहीं रह गया है। वो भी अनाप-शनाप बोलकर पब्लिसिटी बटोरती हैं और ये भी कुछ ऐसा ही करते हैं। ना तो इन्हें देश से मतलब है और ना ही देश के लिए लड़ने वालों से, मतलब है तो सिर्फ अपनी कुर्सी से। खैर लालू प्रसाद ने जो करना था और कहना था वो कर-कह चुके लेकिन अगर वो अन्ना से कुछ पूछना ही चाहते हैं तो ये जरूर पूछें कि देश उनके लिए क्या है... भारत मां, जिसकी इज्जत से हम सबकी इज्जत है या बस एक जमीन का टुकड़ा, जिसे कोई भी कभी भी लूट सकता है......।
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