भेड़ियों ने कब बख्शे हैं निरीह हिरणों के प्राण
क्या ऐसा कभी हुआ है .....................
जंगल के भेड़ियों ने क्या कभी निरीह हिरणों के प्राण बख्शे हैं ?
शिकारी कुत्तों ने खरगोस के पीछे भागना छोड़ा है ?
दैत्यों ने कभी जनहित के काम और साधू जन के प्राण बख्शे हैं ?
बड़ी मछली ने छोटी मछली को अपना शिकार बनाना छोड़ा है ?
श्रीराम की प्रार्थना पर अहंकारी समुद्र ने लंका का रास्ता दिया था ?
पांडवों की पांच गाँव देने की बात को दुर्योधन माना था ?
सिर्फ शांति और अंहिंसा की भाषा से गोरे देश छोड़ कर कुच कर गये थे ?
गोल घेरे में चक्कर लगाते रहने से मंजिल मिल जाती है ?
एक गाल पर दुष्ट चांटा मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर देना प्रभावी नीति है ?
भैंस के सामने भागवत पढने से कोई काम सिद्ध हो जाता है ?
कुत्तों की पूंछ कुछ दिन परखनली में रखने पर सीधी हो जाती है ?
मुर्ख को कभी नीतिशास्त्र की बाते समझाई जा सकती है ?
खल और शठ कभी प्रेम की भाषा समझते हैं ?
चमगादड़ को सूर्य के होने पर भी कभी विशवास होता है ?
लातों के भुत कभी बातों से मानते हैं ?
चोर कभी अपनी फांसी का फैसला खुद लिखता है ?
अगर ऐसा होता नहीं है तब जरुरी होता है.....................
दुष्ट को उसकी भाषा में समझाया जाये.
लक्ष्मण बन समुद्र को मिटा देने का संकल्प किया जाये.
कृष्ण बन गीता का कर्म समझाया जाये .
सुभाष और शिवाजी के सिद्धात दोहराये जाये
मतलब कि..........................
भय बिन होय न प्रीत
1 comment:
i am agree with you.thanks
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