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26.8.11

samyik teep

प्रश्न ये नहीं है कि इससे पहले भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई कानून था या नहीं?ब्लकि प्रश्न यह है कि कितने लोगों ने उस कानून के द्वारा भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज लगायी?

इससे क्या ऐसा नहीं लगता हैैं कि भ्रष्टाचार के मसले पर जनता की दोहरी मांसकिता है? जब अपना काम होता है तो ले दे कर काम निकालने को भ्रष्टाचार नहीं मानते और जब दूसरा ऐसा करता है तो वह भ्रष्टाचार हो जाता हैं और उसका विरोध होने लगता है

अनना को मिला अथाह समर्थन इस बात को लेकर है कि बिजली के स्विच जैसे बटन दबाते ही भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। यह दिलासा अन्ना जी जनता को दे भी रहे हैं। सही तो यही है कि भ्रष्टाचार जनता से ही पैदा होता है,जनता से ही पोषित होता है और जनता ही इसे समाप्त कर सकती है। इस पर गौर करना क्या जरूरी नहीं हैं?सरकार द्वारा बनाये गये किसी भी कानून से क्या भ्र्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा?भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये हर व्यक्ति को खुद रिश्वत ना देने और ना लेने की पहल करनी होगी तब ही शायद भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता हैं।

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