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22.8.11

अन्ना के रूप में कह रहे हैं कृष्ण----परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम


अन्ना के रूप में कह रहे हैं कृष्ण----परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम ....................

 अन्ना के रूप में कह रहे हैं कृष्ण----परित्राणाय  साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम ....................

कृष्ण का जन्म भी बहुत विपरीत परिस्थितियों में हुआ .माँ- बाप जेल में कैद हैं ,दुष्ट मामा के रखवाले उनके 
जन्म लेते ही मारने को उतारू हैं. भारी विषम परिस्थितियों में उन्हें नन्द के घर भयावह रत में ले जाना पड़ता है 
बाल्यकाल से सघर्ष झेलने और बचपन से अन्याय को चुनोती देने वाला भगवान कैसे मान लिया गया ?

जो बच्चा बचपन से अन्याय के खिलाफ सीना तान के खड़ा हो गया,दुष्टों का दलन करने लग गया .जिसके गाँव 
में पीने के पानी पर कालिय नाग ने अधिकार कर लिया, वह बच्चा निर्भीकता के साथ नागराज से झुंझ पड़ा और पाताल में पहुंचा दिया .

इन्द्र जो व्यक्ति पूजा में विशवास करता था उसके इस अहंकार को चकनाचूर कर दिया.इन्द्र राजा के सभी अधिकारों का दुरूपयोग कर चूका लेकिन कृष्ण डटे रहे कुछ गाँव वालों का साथ लेकर ,आखिर इन्द्र का
घमन्ड चकनाचूर हो गया एक अहीर के बच्चे के सामने .

कंस की दुष्ट नीतियों का विनाश कंस वध के साथ इसी बालक ने किया ,न तो वहां रिश्ता देखा,न ही दुष्ट कंस
की नीतिओ के साथ समझोता किया

दोस्त जब संकट में फँस गया तो पूरा मित्र धर्म निभाया ,दोस्त को अन्याय से डरकर भागने की सलाह नहीं 
दी बल्कि उसे कर्म करने की प्रेरणा दी.दोस्त की विजय में मेरा सहयोग था इस बात का कभी अहसास तक 
नहीं किया.

लोकहित के कार्य में तत्पर वह युवा राजा बनकर भी निराभिमानी बना रहा .प्रजा के कल्याण के लिए हर 
पल चिंतन करने वाला स्वत: ही अपने विशिष्ट कर्मों से प्रजा द्वारा भगवान् मान लिया जाता है.उन्हें भगवान्
की पदवी के लिए प्रजा से लिखित में लेना नहीं पड़ा.

आज इस पावन पर्व पर अन्ना का अन्याय के खिलाफ संघर्ष यह बताता है की कृष्ण के सिद्धांतो को किस तरह 
से अमल कर रहे हैं .वहां इन्द्र राजा का अभिमान था,यंहा निरंकुश कांग्रेसी सरकार का. वहां कंस जैसा दुष्ट मामा 
था तो आज अपने ही निरंकुश भारतीय भ्रष्ट नेता .

प्रजा हमेशा अपना हित चाहने वाले के समय आने पर प्राण भी अर्पित कर देती है .प्रजा भले ही ज्यादा नहीं
समझ रखती हो पर निरंकुश शासक के साथ कभी नहीं रहती है

हे! कृष्ण, आपने सही कहा था- जब - जब भी धरती पर अनाचार बढेगा मै तब - तब किसी ना किसी रूप में
अन्याय,अनाचार के नाश के अवतरित होता रहूंगा 

आज तुम अन्ना के रूप में साक्षात हो, कभी तुम गांधी बनते हो,कभी शिवाजी के रूप में आते हो, कभी विवेकानंद के रूप में आते हो, कभी लक्ष्मीबाई बन जाते हो,कभी चाणक्य बनते हो. हे, जगत गुरु तेरे 
हर रूप को कोटि कोटि नमन 

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