तुम अपना रंजोगम अपनी
परेशानी मुझे दे
दो,
मुझे अपनी कसम यह दुख यह हैरानी मुझे दे दो।
मैं देखूं तो सही, यह दुनिया तुझे कैसे
सताती है,
कोई दिन के लिये तुम अपनी निगहबानी मुझे दे दो।
ये माना मैं किसी काबिल
नहीं इन निगाहों
में,
बुरा क्या है अगर इस दिल की वीरानी मुझे दे दो।
·
रोगी को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनाना।
·
स्ट्रोक से आई अक्षमता और अपंगता को दूर करने, स्वीकार करने
और उनके साथ जीने की कला सिखाना।
·
स्ट्रोक से जन्मी नई परिस्थितियों के अनुसार रोगी को घर,
परिवार, कार्यस्थल और समाज में पुनर्स्थापित करना।
खा-खा के शिकस्त फतह पाना सीखो, गिरदाब में कहकहा लगाना सीखो,
इस दौरे-तलातुम में
अगर जीना है, खुद अपने को तूफान बनाना
सीखो।
क्या स्ट्रोक से स्थाई अक्षमता और विकलांगता
आती है?
स्ट्रोक मस्तिष्क के कुछ भाग को क्षतिग्रस्त करता है जो शरीर के कई कार्यों जैसे भाषा, गति
आदि का सम्पादन करता था। ऐसी स्थिति में मस्तिष्क के स्वस्थ ऊतक
इन कार्यों को करने लगते हैं। अधिकतर रोगी
पुनर्वास से अपनी खोई हुई अक्षमता
और अपंगता को ठीक कर लेते हैं। लेकिन कई
रोगियों में थोड़ी बहुत स्थाई अपंगता रह ही जाती है। नेशनल स्ट्रोक एसोसियेशन के
अनुसार:
·
10% रोगी पूर्णतया
ठीक हो जाते हैं।
·
25% रोगियों में
मामूली अक्षमता रह जाती है।
·
40% रोगियों में
मध्मम से गंभीर स्तर की अक्षमता और अपंगता रह जाती है तथा विशेष देखरेख की
आवश्यकता होती है।
·
10% रोगियों में को
लम्बे समय तक चिकित्सा-कैंद्र या पुनर्वास कैंद्र में रखना पड़ता है।
पुनर्वास कब तक
चलता है?
अधिकतर रोगियों में पुनर्वास जीवन पर्यन्त चलता
है। आरोग्य प्राप्ति की यह डगर लम्बी,
उबाऊ और थकाने वाली जरूर है, लेकिन आप दृढ़ इच्छा शक्ति और सकारात्मक
दृष्टिकोण रखेंगे तो राहें बहुत आसान हो जायेगी। बस आप बतलाये गये व्यायाम, अभ्यास,
कार्य और दर्द निवारण के लिए यथा संभव
उपाय करते जाइये। विशेषज्ञ आप की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। आपके परिवार और
मित्रों का प्यार, प्रोत्साहन और प्रेरणा
तो जादू की झप्पी का काम करेगी। वैसे तो कुछ ही हफ्तों या महीनों में आप काफी ठीक हो जायेगे परन्तु स्वास्थ्य-सुधार की यह प्रक्रिया
धीरे-धीरे वर्षों तक चलती ही रहेगी। बस आप
आशा के दीपक को कभी बुझने मत देना।
स्ट्रोक
पुनर्वास का एक जरूरी उद्देश्य भविष्य में दूसरे संभावित दौरे को रोकना भी है।
आरोग्य प्राप्ति हेतु रोगी को दवाइयां दी जाती है, उसके लिए बेहतर आहार तथा
व्यायाम बतलाये जाते है और जीवनशैली में बदलाव
लाया जाता है। पुनर्वास से सबसे अधिक लाभ शुरू के कुछ महीनों में होता है, इसलिए
पुनर्वास कार्यक्रम जितना जल्दी संभव हो शुरू कर देना चाहिए।
स्ट्रोक से खोई
हुई अक्षमता और अपंगता के प्राप्त करना
मस्तिष्क एक
अनूठा और शक्तिशाली अंग है, जो जरूरत पड़ने पर नये सर्किट बना लेता है, अपनी
कोशिकाओं को नये काम करने के लिए प्रोग्राम कर देता है और अपनी क्षमताओं का
विस्तार कर लेता है। स्ट्रोक में इसके कुछ ऊतक बेकार हो जाते हैं, तो मस्तिष्क का
स्वस्थ भाग स्ट्रोक से क्षतिग्रस्त हुए ऊतकों
के कार्य अपने हाथ में ले लेता है।
पुनर्वास
कार्यक्रम में सबसे पहले सुधार चलने, हाथों और पैरों को हिलाने-डुलाने आदि कार्यों
में आता है। प्रायः पुनर्वास स्ट्रोक के 24 से 48 घन्टे बाद ही शुरू हो जाता है,
जब रोगी आई.सी.यू. या वार्ड में ही होता है। जैसे-जैसे रोगी सशक्त और सक्रिय होने
लगता है, नर्स या थैरेपिस्ट रोगी को
छोट-छोटे काम सिखाना शुरू कर देती है जिन्हें वह स्ट्रोक के कारण कर पाने में
अक्षम हो चुका था। हर रोगी की पुनर्वास यात्रा अलग-अलग होती है और रोगी की जरूरत
और परिस्थिति पर निर्भर करती है। मसलन यदि रोगी को हृदयरोग है तो उसे धीरे-धीरे
काम सिखाये जायेंगे।
अस्पताल से छुट्टी होने के बाद पूरा ध्यान पुनर्वास पर दिया
जाता है। रोगी पुनर्वास अपने घर, नर्सिंग होम या किसी अच्छे रिहेब-सेन्टर में ले
सकता है। दैनिक चर्या के काम दोबारा
सिखाने के लिए ऑक्युपेशनल थैरेपी
का भी सहारा लिया जाता है। इसके
तहत व्यायाम,
प्रशिक्षण और अभ्यास करवाया जाता है। स्ट्रोक के बाद रोगी को खाना, पीना,
निगलना, नहाना-धोना, तैयार होना, कपड़े पहनना, खाना पकाना, लिखना, पढ़ना, बाथरूम जाना आदि सभी कार्य नए सिरे से सिखलाये जाते हैं। मरीज़ को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना
इसका लक्ष्य होता है।
पुनर्वास टीम –
स्ट्रोक पुनर्वास - यदि
आपके किसी अजीज को स्ट्रोक होता है तो सिर्फ उसे सांत्वना देने और उसकी देखभाल
करने मात्र से काम चलने वाला नहीं है। आपको अच्छे पुनर्वास कैंन्द्र से संपर्क
करना होगा और विशेषज्ञों से तालमेल रख कर उसका पुनर्वास उपचार शुरू करवाना होगा।
रोगी के पुनर्वास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तो उसके परिवार के सदस्यों की होती
है। डाक्टर्स और परिचारिकाओं के अलावा पुनर्वास टोली में मुख्यतः निम्न विशेषज्ञ
होते हैं।
1- भौतिक चिकित्सक (Physiotherapist) पुनर्वास टोली का बहुत महत्वपूर्ण
सदस्य है, जो स्ट्रोक से अंगो की खोई हुई शक्ति, गति और सक्रियता को पुनः प्राप्त
करने में आपकी मदद करता है और आपके दुर्बल और अपंग हुए अंगों के लिए उचित व्यायाम
करना सिखलाता है। यह आपको व्हीलचेयर, वाकर आदि का सही प्रयोग करना बतलाता है। शारीरिक संतुलन और सामंजस्य बनाये रखना सिखलाता
है।
2- ऑक्युपेशनल थैरेपिस्ट – आपको
खाना, नहाना, कहड़े पहनना, लिखना और दैनिक-चर्या के काम सिखलाता है।
3- संभाषण विशेषज्ञ (speech-language
therapist) – यह
स्ट्रोक के बाद आपकी वाणी में आई विकृतियों को दूर करने में मदद करता है। आपको
निगलना सिखलाता है। आपको संप्रेक्षण के अन्य तरीके जैसे हाव-भाव, मुद्रा आदि
सिखलाता है। यह आपकी संज्ञानात्मक क्षमता जैसे योजना बनाना, निर्देशों का पालन करना,
निर्णय लेना, तर्क-वितर्क करना आदि को पुनः
प्राप्त करने में मदद करता है।
4- समाजसेवक या केस मेनेजर (social worker or case
manager) – यह आप और पुनर्वास टोली दोनों के संपर्क में रहता है और आपको घर पर पुनर्वास करना
में यथासंभव मदद करता है।
5- मनोविशेषज्ञ या सलाहकार – यह घबराहट,
चिन्ता, उग्रता और अवसाद से उबरने में आपकी मदद करता है और भावनात्मक सम्बल देता
है।
6- आहार चिकित्सक dietitian – रोगी को वजन घटना,
मूत्र-असंयमता और निगलने में दिक्कत हो
सकती है। आहार चिकित्सक सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर आपका आहार सुनिश्चित करता
है। वह आपको कम सोडियम और हृदयानुकूल (heart-healthy) आहार
की सलाह देता है ताकि आपको भविष्य में दूसरा दौरा न पड़े।
पुनर्वास कार्यक्रम
चूंकि
स्ट्रोक मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है, इसलिए इसमें लक्षण भी
विविध और विस्तृत होते हैं और चिकित्सा तथा पुनर्वास करते समय इन्हें ध्यान में रखा जाता है। पुनर्वास
का मुख्य उद्देश्य माँस-पेशियों को शक्तिशाली बनाना और उन्हें ऐंठन और खिंचाव से
बचाना होता है। मैं कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को संक्षेप में नीचे लिख रहा
हूँ।
·
व्यायाम और अभ्यास - स्ट्रोक के बाद
हमारी प्राथमिकता यही रहती है कि रोगी को जितना जल्दी हो सके चलने का अभ्यास करवा
दिया जाये, ताकि उसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT) जैसे कष्टदायक
कुप्रभाव से भी बचाया जा सके। रोगी को रोज
कम से कम 50 फुट चलने का अभ्यास करना चाहिये। रोगी को चलने का अभ्यास करने में
ब्रेसिंग, छड़ी, वाकर और ट्रेडमिल आदि बहुत मददगार होते हैं। रोगी को व्यायाम और
अभ्यास करवाते समय उसकी शारीरिक दशा को ध्यान में रखा जाता है। व्यायाम में
ऐरोबिक्स, स्ट्रेन्थ, स्ट्रेचिंग और न्युरोमस्कुलर क्रियाएं करवाई जाती हैं।
·
माँस-पेशियों का अभ्यास – माँस-पेशियों के तनाव और जकड़न को दूर करने के लिए
स्ट्रेचिंग और मोशन व्यायाम करवाये जाते हैं। इन अभ्यासों को नियमित और बार-बार
पुनरावृत्ति करने से दुर्बल और लकवाग्रस्त माँस-पेशियां धीरे-धीरे सक्रिय होने
लगती हैं।
·
स्पीच थैरेपी - स्पीच थैरेपी भाषा और वाक-पटुता, संभाषण
करने के अलावा सम्प्रेक्षण के वैकल्पिक तरीके भी सिखलाती है। जिन लोगों को संभाषण
और लिखित शब्दों को समझने में दिक्कत आ रही है, वाक्य
बनाने, बोलने में मुश्किल आ रही है, स्पीच
थिरेपी उनके लिए अनुकूल सिद्ध होती है। स्पीच
थिरेपिस्ट भाषागत प्रवीणता के अलावा इन्हें तालमेल बिठाने के तरीके भी सिखलाता है, ताकि उन्हें अपने आपको अभिव्यक्त न कर पाने का दुख न हो। धीरे-धीरे
धैर्य के साथ मरीज वह सब कुछ भी सीख सकता है, जो
उसे स्ट्रोक से पहले आता था।
·
ध्यान प्रशिक्षण (Attention training) – स्ट्रोक में ध्यान, सजगता, बोधन और संज्ञानात्मकता संबन्धी समस्याएं
होना सामान्य बात है। रोगी को विशेष अनुभूति (stimuli) के
प्रत्युत्तर में कोई अमुक कार्य बार-बार सम्पन्न करना सिखाया जाता है। उदाहरण के
लिए जैसे रोगी को एक अमुक संख्या सुन कर एक घन्टी बजाने को कहा जाता है। इन्हीं
तरीकों में बदलाव करके रोगी को कई जटिल कार्य जैसे ड्राइव करना, बातचीत करना या
अन्य कार्य करना सिखाया जाता है।
·
लैंगिक समस्याओं का समाधान – 1- सेक्स थैरेपी 2-
अपने जीवनसाथी से इस विषय पर खुल कर बात करें और आपस में मिल कर लैंगिक आनंद के
नये सरल तरीके खोजें। 3- अपने चिकित्सक से
पूछें कि क्या उसे ऐसी कोई दवा तो नहीं दी गई है जिसके कारण उसे लैंगिक विकार हुआ
हो। 4- स्पर्श, चुम्बन और आलिंगन जैसी प्रेम-क्रीड़ाओं से संबन्धों को पुनः रूमानी
बनाने का यत्न करें। 5- औषधियाँ।
·
बोट्युलिनम
टॉक्सिन –
कई बार हेमिपरेसिस के रोगियों की मासँ-पेशियों में तनाव, खिंचाव और अकड़न
भी आ जाती है। इसके उपचार में बोट्युलिनम टॉक्सिन के इंजेक्शन बहुत फायदेमंद साबित
हुए है। आजकल तीन तरह के बोट्युलिनम टॉक्सिन उपलब्ध हैं। जिनके नाम टाइप-ए -
बोटोक्स और डिस्पोर्ट तथा टाइप-बी - मायोब्लॉक हैं।
·
रोबोटिक उपकरण – स्ट्रोक पुनर्वास में आजकल कई रोबोटिक उपकरण काम में लिए जा
रहे हैं। ये उपकरण रोगी को उनके लकवा-ग्रस्त पैर या हाथों की खोई हुई शक्ति और
अपंगता को पाने में बहुत कारगर साबित हो रहे हैं। इनकी मदद से रोगियों को कसरत और
अभ्यास करने में बहुत सहूलियत होती है और काम करना जल्दी सीखते है। रोबोट एक अच्छे
प्रशिक्षक की तरह रोगी के हाथ या पैरों की हरकत पर पैनी नजर रखते हैं, उसी हिसाब
से कसरत करवाते हैं। यदि रोगी गिरने लगे तो रोबोट उसे पकड़ कर थाम लेते हैं। रोगी यदि अपने
हाथ या पैर से कोई हरकत न कर पाये तो रोबोट उसे सहारा देता है और हरकत करने में
मदद करता है। कसरत की बार-बार पुनरावृत्ति और अभ्यास करवाता है। आप संत कबीर का दोहा
पढ़िये। संलग्न चित्र में लोकोमोट रोबोट रोगी
को चलना सिखा रहा है।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर होत निसान ।।
·
काल्पनिक वास्तविकता (Virtual
Reality) - इस तकनीक में
कम्प्युटर सॉफ्टवेयर के द्वारा एक वास्तविक लगने वाली लेकिन काल्पनिक दुनियां
सजाई जाती है, जिसकी मदद से रोगी अपने हाथ
और पैरों से कई तरह के काम करना सीखते हैं। इस तकनीक के अच्छे परिणाम मिल रहे हैं
और इसे रोबोटिक उपकरणों के साथ भी प्रयोग किया जा रहा है।
·
एक्युपंक्चर – यह चीन की बहुत पुरानी और सुरक्षित उपचार पद्धति है जिसमें
त्वचा के खास ऊर्जा कैन्द्रों में सुइयां घुसाई जाती हैं। स्ट्रोक के कई
लक्षणों जैसे माँस-पेशियों की दुर्बलता, तनाव और दर्द में एक्युपंक्चर से काफी
फायदा मिलता है। इससे धीरे-धीरे लाभ मिलता है परन्तु यह पूर्णतः सुरक्षित उपचार
है।
·
विद्युत उत्तेजना (Electrical stimulation) – इस तकनीक में कमजोर माँस-पेशियों में कम
विभव की विद्युत-धारा प्रवाहित की
जाती है जिससे उनका संकुचन होता है और वे अपनी खोई हुई शक्ति पुनः प्राप्त करती
हैं।
स्ट्रोक पुनर्वास में दवाइयां
स्ट्रोक
के बाद रोगी को शारीरिक वेदना, पीड़ा, दर्द, आकर्ष (Muscular
spasm), व्याकुलता, चिंता, अनिद्रा और अवसाद (Depression) रहता है जिसके उपचार के लिए समुचित दवाइयां दी जाती हैं।
दर्द निवारक और अवसादरोधी दवाइयां –
सलेक्टिव
सीरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर्स –
इनमें
सिटेलोप्राम, एसिटेलोप्राम, फ्लुओक्सेटिन, परोक्सेटिन, सर्टेलिन आदि प्रमुख हैं। SSRIs मस्तिष्क में प्रमुख नाड़ीसंदेशवाहकों का संतुलन बनाये
रखते हैं, जिससे अवसाद के लक्षणों में सुधार आता है। अवसाद के अलावा ये वेदना,
पीड़ा और दर्द का भी निवारण करते हैं। ये त्रिचक्रीय, चतुर्चक्रीय अवसादरोधी और
माओ इन्हिबिटर्स से ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं। SSRIs का असर एक से तीन सप्ताह में होने लगता हैं लेकिन रोगी को
पूरा लाभ छः से आठ सप्ताह में होता है। इन्हें कभी भी अचानक बंद नहीं करना चाहिए। SSRIs से कभी-कभी रोगी
को लैंगिक-विकार हो सकता है। जिसके लिए
उसे सिलडेनाफिल दी जा सकती है। बुप्रोपियोन से लैंगिक-विकार कम होते हैं।
इनके
पार्ष्व प्रभाव मितली, भूख न लगना, दस्त लगना, अधैर्यता, चिड़चिड़ापन, सुस्ती,
निद्रा-विकार, काम-दुर्बलता, लैंगिक-विकार, सिरदर्द, चक्कर, आत्महत्या करने का
विचार आना आदि होते हैं।
त्रिचक्रीय
और चतुर्चक्रीय अवसादरोधी
जिनमें एमिट्रिप्टीलीन, डेसिप्रेमीन,
डोक्सेपीन, इमिप्रेमिन, नोरट्रिप्टीलीन आदि
प्रमुख हैं। ये मस्तिष्क में मन को प्रसन्न रखने और दर्द की अनुभूति को कम करने
वाले कुछ नाड़ीसंदेशवाहकों का स्तर बढ़ाते हैं। कम मात्रा में ये अच्छे दर्द
निवारक है और ज्यादा मात्रा में अवसादरोधी हैं। कम मात्रा में ये चिरकारी
दर्द-विकारों (Long-term Pain Syndrome) में बहुत असरकारी हैं। साथ में ये मन में उदासी, अनिद्रा, ग्लानि,
कुन्ठा, बेचैनी और व्याकुलता से भी राहत दिलाते हैं। इन्हें रात्रि में सोने के
पहले दिया जाता है क्योंकि इन्हें लेने के बाद सुस्ती आती है। SSRIs की भांति इनका असर भी एक से तीन सप्ताह में होने लगता हैं
लेकिन रोगी को पूरा लाभ छः से आठ सप्ताह में होता है। इन्हें कभी भी अचानक बंद
नहीं करना चाहिए।
इनके
पार्ष्व प्रभाव मुँह सीखना, चक्कर, सुस्ती आना, सिरदर्द, वजन बढ़ना, कब्जी, मितली,
उलटी, श्वासकष्ट, होंठ, जीभ, चेहरे या गले में सूजन, आत्महत्या करने का विचार,
उग्रता, बैचेनी, दौरा पड़ना, हृदयगति तेज होना आदि हैं।
अप्समाररोधी
(Anticonvulsants)
कार्बामापेजीन,
गाबापेन्टिन, ऑक्सकार्बेजीन, वेलप्रोइक एसिड, प्रिगाबालिन, टोपिरामेट आदि दवाइयां
प्रयोग में ली जाती हैं। ये संभवतः मस्तिष्क में दर्द की संवेदनाओं के प्रवाह को
बाधित करती हैं इसलिए चिरकारी और नाड़ीजनित दर्द-विकारों में बहुत प्रभावशाली हैं।
इन्हें भी कम मात्रा से शुरू करके धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाई जाती है और अचानक बंद
नहीं किया जाता है।
इनके
मुख्य पार्ष्व प्रभाव सिरदर्द, वजन बढ़ना/कम होना, भ्रमित होना, भूख न लगना, त्वचा में चकत्ते, मितली, उलटी, पेट
दर्द, पैरों में सूजन आदि हैं।
निद्राकारी
दवाइयां (Sedatives) – स्ट्रोक के बाद रोगी को नींद न आना सामान्य घटना है। इसके
लिए रोगी को निद्राकारी या अवसादरोधी दवाइयां जैसे नाइट्रेजेपाम, मर्टाजेपीन, जोल्पिडोम, जोपिक्लोम आदि दी जाती
हैं।
प्रशांतक दवाइयां (Tranquilizers) – स्ट्रोक के रोगियों में
अधैर्यता, उत्सुकता, घबराहट, दुनिया जहान की चिन्ता और तनाव रहना सामान्य बात है, जिसके उपचार के लिए बेन्जोडायजेपीन्स जैसे
डायजेपाम, लोराजेपाम, एल्प्राजोलाम, बुस्पिरोन, क्लोनाजेपाम, एटिजोलाम आदि दी जाती हैं। मूड एलीवेटर दवा मिथाइल फेनिडेट (Addwise 10-30 mg/day in div doses) रोगी
के मन को प्रसन्न रखने और मनोदशा को सकारात्मक बनाये रखने के लिए दिया जाता
है।
मनोवियोगी और मनोविकाररोधी दवाइयाँ (Neuroleptics are Antipsychotic Medicines) - स्ट्रोक में यदि रोगी को उग्रता,
उत्तेजना और व्याकुलता हो तो हेलोपेरिडोल, रिसपेरिडोल आदि लिखी जाती हैं।
मसल-रिलेक्सेन्ट दवाईयाँ - माँस-पेशियों
में खिंचाव, तनाव और अकड़न दूर करने के लिए डेन्ट्रोलीन, टिजानिडीन, बेक्लोफेन आदि
गुणकारी साबित हुई हैं।
थक्कारोधी
दवाईयाँ (Anticoagulants) – स्ट्रोक के बाद पैरों की शिराओं में रक्त के थक्के न बने इसलिए हिपेरिन दी
जाती है।
लेख
के अंत में स्ट्रोक के रोगियों को ये शेर पेश करता हूँ।
इन्सान
मुसीबत में
हिम्मत न अगर हारे,
आसाँ से वो आसां है मुश्किल से जो मुश्किल
है।
1 comment:
Excellent article with detailed information
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