क्या एहसान किया है तुमने,नयी हवेली में जाकर
जख्मी सांसें लेकर मुझको क्या करना मिलने आकर
साथ निभाने की सब कसमें,पगडण्डी पर छोड़ गयी
साथी दोष नहीं है तेरा,समझ गया हूं ढाई आखऱ
कुंवर प्रीतम
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
2 comments:
yeh rachna maine shayad mathur sahab ke link par bhi padhi.. acchhi rachna.. Badhai...
गज़ब्।
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