लड़की के जन्म पर
उदास क्यों हो जाते हैं
परिवारीजन ?
क्यों उड़ जाती है
रौनक चेहरों की
और क्यों हो जाती है
नए मेहमान के आने की ख़ुशी कम ?
शायद सबसे पहले मन
में आता है ये
हमसे जुदा होकर
चली जाएगी पराए घर ,
फिर एकाएक घेर लेती
है दहेज़ की फ़िक्र ;
याद आने लगती हैं
बहन बुआ ,पड़ोस की
पूनम-छवि के साथ घटी
अमानवीय घटनाएँ !
ससुराल के नाम पर
दिखने लगती है
काले पानी की सजा ;
फिर शायद ह्रदय में यह
भय भी आता है कि
हमारी बिटिया को भी
सहने होंगे समाज के
कठोर ताने -''सावधान
तुम एक लड़की हो ''
किशोरी बनते ही तुम एक देह
मात्र रह जाओगी ,
पास से गुजरता पुरुष
तुम पर कस सकता है तंज
''यू आर सेक्सी ''
इतने पर भी तुम गौर न करो तो
एक तरफ़ा प्यार के नाम पर
तुम्हे हासिल करना चाहेगा ,
और हासिल न कर सका तो
पराजय की आग में स्वयं
जलते हुए तुम पर तेजाब
फेंकने से भी नहीं हिचकिचाएगा ;
इतने भय तुम्हारे जन्म के साथ
ही जुड़ जाते हैं इसीलिए
शायद लड़की के जन्म पर
परिवारीजन
उदास हो जाते हैं .
शिखा कौशिक
No comments:
Post a Comment