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13.8.11

दुखों से छुटकारा कैसे !


जब भगवान कृपालु हैं तो दुनिया में कष्ट क्यों

    


प्रिय मित्रों ,


अभी , एक ग्रुप 

gita-talk@yahoogroups.com

में बड़ा ही दिमाग को आन्दोलित कर देने वाला प्रश्न  पढ़आ


 why lord gives lot of pain out of "His Mercy"


यानि भगवान इतना कष्ट क्यों देते हैं , कृपालु होकर भी , 


कुछ लोगों ने अपने अपने विचार लिखे, जो अंग्रेजी में हैं ,  फिर भी मैं वो  विचार यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ. 


इस विषय में मेरे कुछ विचार निम्नलिखित हैं. 
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दुःख के बारे में मेरे विचार : 


कई बार मेरा भी मन किया कि एस प्रश्न पर भगवान को घेरा जाये . 


पर जब भी इन कष्टों और उसकी कृपा में तुलना कि तो कष्टों में भी कृपा के दर्शन हुए , और मुकदमा सुनने से पहले ही ख़ारिज हो गया .


फिर भी ये तो जानना ही पड़ेगा कि आखिर दुःख हैं क्या ?


हमारे मन के विपरीत जो भी बात हो , वो हमें दुःख नज़र आती है , 


बच्चे को चोकलेट न दिलाएं तो दुःख है , जबकि माता-पिता को मालूम है कि कितनी चोकलेट कब दिलानी है . 


कई बार किसी के कार्य को देख कर हमें उस पर दया व् दुःख होता है : बच्चे का व्रण कटवाने के लिए 
माँ बच्चे को डाक्टर के पास ले जाती है और  व्रण कटते समय बच्चे का दुःख देखा नहीं जाता . 


बच्चे  के लिए माँ  रात में उठ कर खाना बनाती है  और हमें लगता है ये तो 
माँ के प्रति अत्याचार है , मगर वह अत्याचार तो  नहीं होता . 


इन परिपक्ष्य में तो दुःख के मायने पहले ढूढने पड़ेंगे , क्योकि दुःख-सुख तुलनात्मक हैं.




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मगर मेरा खुद का  supplementary (पूरक प्रश्न ) यह है , कि 


चलो औरों को तो विभिन्न कारणों से कष्ट मिलता है , पर भक्तों को भी क्यों . 


जैसे प्रहलाद गर्भ से ही भक्त थे , देवकी , वासुदेव उनके माता पिता थे , द्रोपदी उनकी संबन्धिनी भी थी 
पांडव उनके मित्र एवं संबंदी थे , और तो और सुदामा तो उनके हाथ में हाथ दाल कर घूमते थे , क्या भगवान का
स्पर्श भी उनके कष्ट दूर करने में असमर्थ था . 
 
इस ग्रुप के मोडरेटर ने बहुत सुंदर बात लिखी है कि कृपया वही लोग इस वार्ता में शरीक हों जो हिंदू धर्म के 
अनुसार , शाश्त्रनुसार ही लिख सकते हों .  

मन चाही बातें तो हज़ार , लाख हैं . उनके नियम निम्न लिखित हैं ;

GITA TALK GROUP GUIDELINES: PLEASE - FOR QUESTIONER

1. The questions as far as possible must be relevant to Gita, relevant to Dharma, relevant to other scriptures and relevant to motivate Sadhaks to take up spiritual path
2. The Questioner must commit to feedback at end of discussion to bring closure and commit to daily Gita study
3. Only one question at a time.
4. Question must be brief, to the point and relevant to the group's primary aim of deeper understanding of Gita.

GITA TALK GROUP GUIDELINES for RESPONDER: PLEASE -

1. Responses are to be supported by scriptures, words of saints and great souls, spiritual books etc. for it to be posted. Quote Gitaji/scriptures wherever possible.
2. Only responses that are not in conflict with Gita, Scriptures, Dharma etc. will be posted.
3. Responses are to be BRIEF (maximum 20 lines, approx. half a page)
4. Responses must be RESPECTFUL and RELEVANT (stay with the subject being discussed only)

5. Kindly, keep in mind novices, youth, westerners, non-sectarian audience. Limit the use to Sanskrit words and provide English word bracketed.

GITA TALK MODERATORS

 
मुझे ये नियम पसंद आये : 


यदि हिंदी लेखक भी इस विषय में , कुछ मेरा मार्गदर्शन करें तो अति कृपा होगी . 



उनके द्वारा लिखे गए उत्तर निचे लिखे हैं : 



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why lord gives lot of pain out of `His Mercy

rkm

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Shree Hari Ram Ram

For a man to become a great soul once and for all, God alerts and warns man to stay away from desires, for desire is the root of all sins, pain and suffering. "The Bhagavad Gita - Sadhak Sanjivani" in Hindi pg 238 , in English pg 417 by Swami Ramsukhdasji

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God tells Arjuna - "Madbhakto bhav, manmanaa bhav, madhyaajee bhav, maam namaskuru". In all these four, God's aim for Jeev (embodied souls) is only to get the Jeev to come towards Him, i.e. to turn away from the unreal and perishable. The reason is that the main cause of sorrow, pain and suffering, of the unending birth and death cycle, and of all adversities is turning away from God.
From "Sharanagati" in Hindi page 23-25 by Swami Ramsukhdasji.

चूँकि यह ब्लॉग हिंदी का है ,  इसलिए शेष प्रतिक्रियाएं मेरे ब्लॉग पर देखें .  पर अपनी सम्मति इसी ब्लॉग में दें , चूँकि यह एक बड़ा मंच है . 


क्रमश : 

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