मित्रों,आज १५ अगस्त है;१५ अगस्त २०११ यानि हमारी झूठी आजादी की ६४वीं सालगिरह.आपने शायद जागने के बाद एक या दो रूपये में कागज का तिरंगा ख़रीदा होगा और उसे लहराते हुए अपने आपको धन्य मान लिया होगा कि आप आजाद हैं.लेकिन क्या आप सचमुच आजाद हैं?क्या आपसे हमारा लोकतंत्र (भ्रष्टतंत्र) कदम-कदम पर जीवित रहने की कीमत नहीं वसूल कर रहा है?क्या आपका काम बिना घूस दिए हो जा रहा है?क्या आप यह गारंटी दे सकते हैं कि आपका राशन कार्ड,आपका ड्राइविंग लाइसेंस या घर की होल्डिंग के कागजात या फिर बिजली के कनेक्शन का कागज बिना कोई घूस लिए बना दिया गया है?अगर नहीं,तो फिर आप मजबूर हैं सरकारी तंत्र की मनमर्जी मानने को और उस पर चलने को भी.फिर आप आजाद कहाँ हैं और कैसे हैं?क्या कोई मजबूर व्यक्ति आजाद हो सकता है?
मित्रों,अभी थोड़ी ही देर में भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह ऐतिहासिक लाल किले पर झंडा फहराएंगे और उन्हीं नापाक हाथों से फहराएंगे जिन हाथों से उन्होंने घोटालेबाजों को घोटाला करने की पूरी आजादी दी,जिन हाथों से उन्होंने न जाने कितने कलमाड़ी,राजा,पवार और थामस को विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया है.फिर वे हम देशवासियों को उसी मुखारविंद से चने के झाड़ पर चढ़ाएंगे अथवा अपनी मजबूरी का रोना रोते हुए कहेंगे कि सिर्फ आप ही गुलाम नहीं हैं मैं भी गुलाम हूँ,मजबूर हूँ;कठपुतली हूँ जिसके द्वारा झूठ बोलकर वे अब तक अनगिनत भ्रष्टाचारियों का बचाव करते आ रहे हैं.वे कह सकते हैं कि मैं अगर गुलाम होकर भी खुश हूँ और अपने-आपको भाग्यशाली समझता हूँ तो फिर आप क्यों भ्रष्टाचार से आजादी चाहते हैं?वे अपने भाषण में संसद की सर्वोच्चता का गुणगान करेंगे और कहेंगे कि संसद (और सरकार) अगर देश को रसातल में धंसा दें तो भी आपको कोई हक़ नहीं है उसे बचाने या निकालने का प्रयास करने का क्योंकि स्वयं संविधान ने उसे ऐसा करने का अधिकार दिया है.वे यह भी कह सकते हैं कि चूँकि धरना,अनशन आदि विरोध के गांधीवादी तरीके वर्तमान भारतीय लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक हो गए हैं इसलिए महात्मा गाँधी वर्तमान सन्दर्भ में एक असामाजिक व्यक्ति थे और उनका अनुशरण करनेवाले सारे लोग ब्लैकमेलर हैं,अपराधी हैं.साथ ही भगत सिंह और उनके साथियों ने भी लाहौर जेल में जो कई महीने लम्बा अनशन किया था वह एक घोर आपराधिक कृत्य था;रेयर इन रेयरेस्ट था.अंग्रेजों ने उनकी मांगों को नहीं मानते हुए उनकी प्राणरक्षा के नाम पर उनके साथ जबरन भोजन कराने की जो जोर-जबरदस्ती की वह उस शासन का पुनीत कर्त्तव्य था,इसलिए अनुचित भी नहीं था.इसलिए हम काले अंग्रेजों को भी उनकी तरह ही यह अधिकार नैसर्गिक तरीके से प्राप्त है कि युगधर्म भ्रष्टाचार की रक्षा के लिए हम अन्ना को अनशन नहीं करने दें और अगर वे बात से समझाने से नहीं समझते हैं तो उनकी मांगों पर किसी भी तरह से विचार नहीं करते हुए हम उनके अनशन को क्रूरतापूर्वक तुडवाने का प्रयास करें जैसे भगत और उसके साथियों के साथ हमारे अंग्रेज भाइयों ने किया था (अत्याचारी-अत्याचारी सहोदर भाई).मित्रों,फिर आप माननीय प्रधानमंत्री जी के औपचारिकतावश किए गए उस बकवास पर खूब तालियाँ बजाएंगे और खूब जलेबी खायेंगे.यही होगी आपकी आज की दिनचर्या न?या फिर आप आज के दिन संकल्प लेंगे भ्रष्टाचार से आजादी के लिए चल रही लड़ाई में शामिल होने का,आधुनिक युग के वीर कुंवर सिंह अन्ना के बूढ़े हाथों को मजबूत करने का और अब तक की सबसे झूठी और बेईमान केंद्र सरकार को मजबूत लोकपाल वाला विधेयक लाने के लिए मजबूर कर देने का.आप जानते हैं कि अन्ना का इस आन्दोलन में कोई भी छिपा हुआ एजेंडा नहीं है.उनके आगे नाथ न पीछे पगहा है.वे निस्स्वार्थ भाव से हमारे लिए लड़ रहे हैं,हमारी आने वाली संततियों के लिए युद्ध के मैदान में उतरे हैं.तो क्या यह उचित होगा कि कोई हमारे भले के लिए अपनी जान की बाजी लगा दे और हम उसका नैतिक रूप से भी समर्थन न करें?नहीं न!तो मित्रों,आगे आईये और अन्ना के निर्देशों का पालन करिए और इस आजादी की दूसरी लडाई को सफल बनाईये.
यलगार हो,आक्रमण!!!!
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