मानसून के मेंढक और भारतीय समाज
बरसात का मौसम और मेंढ़क का टर्राना वैसे कोई नयी बात नहीं है लेकिन जब सैकड़ों मेंढ़क अलग -अलग
समुह में इकट्टे होकर टर्राये तो दाल काली होने का पक्का विश्वास हो ही जाता है.मेंढकों की टर्र-टर्र को
समझने के लिए विशेषज्ञ का साथ मिल जाए तो हरेक टर्र टर्र को बारीकी से समझा जा सकता है .मानसून
सत्र में पूरा तालाब टर्र-टर्र से गूंज उठेगा .कौनसा मेंढ़क कैसे टर्रा सकता है .एक बानगी ----
तीन रंगों वाला मेंढ़क -- ये एक खास किस्म का मेंढ़क है .इस तिरंगी समुह की बोस मादा है ,वह भी
बाहर के तालाब से आयात करके लायी गई है .यह मादा खुल कर नहीं टर्राती है,क्योंकि खड़ी बोली में टर्र- टर्राना इसे आता नहीं है.यह बुजुर्ग देशी मेंढ़क के पेट में घुस कर टर्राती है. इसकी इस टर्र -टर्र से बेचारा बुढा
मेंढ़क परेशान है लेकिन पापी पेट के लिए वह भी मेंढकी के सुर में टर्राता है.
इस तिरंगी समुह में एक उजड़ा चमन नाम का मेंढ़क है ....क्या टर्राता है ,साला !बात बात में स्वर
बदलता है .मानव को साधन समझता है बुध्धू . कभी उलटा पड़कर टर- टर्राता है तो कभी तिरछा पड़कर .
इसका साथी भी कम नहीं है सा'ब! दिमाग घर पर रखकर ऐसा पन्च मारता है की मेंढकी की भी साँसे फुला देता है.बद दिमाग ऐसा कि मेंढकी के ताबूत में ही कील ठोकता है जी ! अभी भी छत्र वाला समझता है अपने आप को .
इसमें एक मेंढकी का बच्चा है, अभी-अभी तालाब के एक कोने में तेरना सीख रहा था मगर ऐसा
बरसात में भीगा सा'ब की जुकाम हो गया . नौटंकी की मगर देखने वाले नहीं थे सा'ब .बेचारी मेंढकी !! क्या
कभी पुरे तालाब में एक बार अपने बबलू की टर्र टर्र को सबकी टर्र टर्र बना सकेगी ???
मेंढक भाषा विशेषज्ञ के साथ आपको भी सैर करा देते हैं पुरे तालाब की .तीन-रंगे मेंढक अलग तरह
से टर्रा रहे थे जिसका अर्थ यह था कि हम पूरे तालाब के उन मेंढकों को जरुर सबक सिखायेंगे जो हमारी छिपायी गई सम्पती को जनता में लुटा देना चाहते हैं , जो मेंढक हमें कानून पढ़ायेगा उसे कारावास में मरवा दिया जायेगा, जो मेंढक हमारी और एक वाजिब अंगुली भी उठाएगा तो हम गैरवाजिब तरीके से पांच अंगुलियाँ
उठायेगें ,जो हमारे हरामीपने कि पोल खोलेगा हम उसकी झूठी पोल लिखेंगे और सब एक साथ चीख कर उसे
सही करार देंगे .राज करेंगे तो गला तो दबायेंगे ही .जो हमारे सेवा के धंधे में आग लगाएगा उसे बाबा बना देंगे .
दुरंगे मेंढक की टोली में अजीब हादसा हो गया लगता था क्योंकि कुछ दुरंगे रो रहे थे .कुछ तीन रंगे वाली
शक्ल के लग रहे थे कुछ चुप थे तो कुछ फिर बोलेंगे अभी सोच रहे हैं कि गलत को सही कैसे बोले ताकि राम कि कृपा से गद्दी मिल जाये तो तीर-रंगे कि तरह हलवा पूड़ी खा सके .
एक कोने में लम्बी सूंड वाले मेंढक टर्रा रहे थे. ये तालाब में नहीं खेतीहर कि जमीन में अपना आशियाना
ढूंढ़ रहे थे ,मूर्तियों में सत्ता ढूढ़ रहे थे.तीन-रंगे को गले भी लगाता है और आँख भी दिखाता है
आगे कोने में तीन रंगे को सलाम ठोकने का मौका ढूंढ़ पाने में असफल मेंढक पुरानी सूखी घास के तिनके
से टाट खुजा रहा था ,बिना वजह के तीन-रंगी मादा के कसीदे पढ़ रहा था .मगर हाय रे किस्मत !फिर छलावा हो गया .काश! बत्ती दिखा सकता या हरी देख सकता .
दक्षिण के कोने में पड़ा एक बुढा मेंढक मजे से अंडा ,दूध,कपास ,चीनी ,बियर सब कुछ हजम करने कि
जुगत में ताज को पटकनी देने कि धौंस झाड़ रहा था .
एक जगह बहुत सारे मरियल मेंढक जागते हुए भी गाफिल थे .इनमे से कभी कभी कोई मेंढक टर्राता
तो बाकि सब उसे ऐसे घूरते जैसे फिर सतरंगी नेता मेंढक से मार खाने कि नौबत आने वाली है
इतने में एक बड़ा शिकार तालाब में आकर गिरता है .मरियल मेंढकों को आँखे दिखा बाकी सभी मेंढक
शिकार का मिलकर लुफ्त उठाने लगते हैं . बेचारा मरियल मेंढक का टोला... कभी नेताओं के भरे हुए पेट को, दबा दबा कर माल ठूंस रहे नेता मेंढक के पेट को देखता है तो कभी अपने भूखे पेट को देखकर अपनी किस्मत पर टर्राता है. उसकी टर्राहट का अर्थ है रोटी का दूर होता निवाला, भूखमरी , अन्याय, गरीबी.
ये रंग बिरंगे मेंढक जब भी टर्राते हैं बेचारे मरियल रंग हीन मेंढक समुदाय की चीख निकल जाती है
क्या करे रंग हीन मेंढक ? व्यवस्था और कानून के नाम पर 65 साल से झेल रहा है ............
मेंढक भाषा विशेषज्ञ के साथ आपको भी सैर करा देते हैं पुरे तालाब की .तीन-रंगे मेंढक अलग तरह
से टर्रा रहे थे जिसका अर्थ यह था कि हम पूरे तालाब के उन मेंढकों को जरुर सबक सिखायेंगे जो हमारी छिपायी गई सम्पती को जनता में लुटा देना चाहते हैं , जो मेंढक हमें कानून पढ़ायेगा उसे कारावास में मरवा दिया जायेगा, जो मेंढक हमारी और एक वाजिब अंगुली भी उठाएगा तो हम गैरवाजिब तरीके से पांच अंगुलियाँ
उठायेगें ,जो हमारे हरामीपने कि पोल खोलेगा हम उसकी झूठी पोल लिखेंगे और सब एक साथ चीख कर उसे
सही करार देंगे .राज करेंगे तो गला तो दबायेंगे ही .जो हमारे सेवा के धंधे में आग लगाएगा उसे बाबा बना देंगे .
दुरंगे मेंढक की टोली में अजीब हादसा हो गया लगता था क्योंकि कुछ दुरंगे रो रहे थे .कुछ तीन रंगे वाली
शक्ल के लग रहे थे कुछ चुप थे तो कुछ फिर बोलेंगे अभी सोच रहे हैं कि गलत को सही कैसे बोले ताकि राम कि कृपा से गद्दी मिल जाये तो तीर-रंगे कि तरह हलवा पूड़ी खा सके .
एक कोने में लम्बी सूंड वाले मेंढक टर्रा रहे थे. ये तालाब में नहीं खेतीहर कि जमीन में अपना आशियाना
ढूंढ़ रहे थे ,मूर्तियों में सत्ता ढूढ़ रहे थे.तीन-रंगे को गले भी लगाता है और आँख भी दिखाता है
आगे कोने में तीन रंगे को सलाम ठोकने का मौका ढूंढ़ पाने में असफल मेंढक पुरानी सूखी घास के तिनके
से टाट खुजा रहा था ,बिना वजह के तीन-रंगी मादा के कसीदे पढ़ रहा था .मगर हाय रे किस्मत !फिर छलावा हो गया .काश! बत्ती दिखा सकता या हरी देख सकता .
दक्षिण के कोने में पड़ा एक बुढा मेंढक मजे से अंडा ,दूध,कपास ,चीनी ,बियर सब कुछ हजम करने कि
जुगत में ताज को पटकनी देने कि धौंस झाड़ रहा था .
एक जगह बहुत सारे मरियल मेंढक जागते हुए भी गाफिल थे .इनमे से कभी कभी कोई मेंढक टर्राता
तो बाकि सब उसे ऐसे घूरते जैसे फिर सतरंगी नेता मेंढक से मार खाने कि नौबत आने वाली है
इतने में एक बड़ा शिकार तालाब में आकर गिरता है .मरियल मेंढकों को आँखे दिखा बाकी सभी मेंढक
शिकार का मिलकर लुफ्त उठाने लगते हैं . बेचारा मरियल मेंढक का टोला... कभी नेताओं के भरे हुए पेट को, दबा दबा कर माल ठूंस रहे नेता मेंढक के पेट को देखता है तो कभी अपने भूखे पेट को देखकर अपनी किस्मत पर टर्राता है. उसकी टर्राहट का अर्थ है रोटी का दूर होता निवाला, भूखमरी , अन्याय, गरीबी.
ये रंग बिरंगे मेंढक जब भी टर्राते हैं बेचारे मरियल रंग हीन मेंढक समुदाय की चीख निकल जाती है
क्या करे रंग हीन मेंढक ? व्यवस्था और कानून के नाम पर 65 साल से झेल रहा है ............
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