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9.2.12

सच को क्यों मारा जा रहा है


२७ फरवरी २००२ को गोधरा रेलवे स्टेशन पर अयोध्या से लौट रहे हिन्दू तीर्थयात्रियो से भरी
रेलगाड़ी के एक डिब्बे में आग लगाकर ५९ यात्रियों को मारने वाले किस धर्म के लोग थे और
उन्होंने बेकुसूर ५९ तीर्थयात्रियो को जिनमे २५ महिलाए और १५ बच्चे भी शामिल थे
उनको जिन्दा किस मजहब के लोगो ने और क्यों जलाया ?

इस बात पर न्याय अंधा हो जाता है ,क्यों ?

हिन्दू यात्रियों को जिन्दा जलाया गया इस बात पर  आततायियो को कोई दोषी क्यों नहीं मान
रहा है जिन्होंने यह अधम कृत्य किया था ,उनकी कहीं चर्चा नहीं होती ;

इस बात पर न्याय भी बहरा हो जाता है, क्यों ? 

क्या हिन्दू की जान गयी वह कीमती नहीं थी ,

इस बात पर न्याय पट्टी बाँध लेता है ,क्यों?

पूरा गुजरात इस सच को जानता है और बार बार मोदी को चुनकर भेजता आया है 
क्योंकि गुजरात छद्म धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षता को अच्छी तरह समझता है  
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इन दंगों में कुल १०४४ लोग मारे गए, जिनमें ७९० मुस्लिम और २५४ हिन्दू थे.
२५४८ घायल, २२३ लापता, ९१९ महिलायें विधवा हुईं और ६०६ बच्चे अनाथ. 
सात साल बाद लापता लोगों को भी मृत मान लिया गया और मृतकों की संख्या 
१२६७ हो गयी.पुलिस ने दंगों को रोकने में लगभग १०००० राउण्ड गोलियां चलायीं,
जिनमें जिनमें ९३ मुसलमानों और ७७ हिन्दुओं की मौत हुई. दंगों के दौरान 

१७९४७ हिन्दुओं और ३६१६ मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया बाद में कुल

मिला कर २७९०१ हिन्दुओं को और ७६५१ मुस्लमों को गिरफ्तार किया गया.

ये आंकड़े http://en.wikipedia.org/wiki/2002_Gujarat_violence साईट से मिले हैं.

ये आंकड़े सरकारी हैं और गैरसरकारी आंकड़ों के हिसाब से २००० से ज्यादा लोग

इन दंगों में मारे गए, लेकिन हमेशा ही गैर सरकारी आकडे सरकारी आंकड़ों

से ज्यादा होते हैं……..पर महत्वपूर्ण विषय ये है यदि सरकार और पुलिस मूक 

दर्शक बनी थी या हिन्दुओं का साथ दे रही थी तो पुलिस की गोली से ७७ हिन्दुओं

की मौत कैसे हो गयी…….. पुलिस ने २७००० से अधिक हिन्दुओं को क्यों गिरफ्तार किया जबकि मुस्लिमों को कम ……?


9 comments:

त्यागी said...

समस्या एक नहीं मित्र कई है. क्यूँ गोधरा ट्रेन में मरे हिन्दुओ के रिश्तेदार और परिजन रोज टीवी पर आकर चीत्कार करते, क्यूँ नहीं न्याय के मंदिरों में याचिका दायर करते. क्यों सरकार से मुआवजा नहीं मांगते. जब हिन्दुओ के अपने रिश्तेदार ही इस मुद्दे को नहीं उठाएंगे तो क्या पाकिस्तान से लोग आकर हल्ला करेंगे. लोकतंत्र के दो मतलब है या तो जिस की लाठी उसकी भैंस का पालन करो और ताकतवर बनकर सब कुछ मनवा लो या इतना रोओ इतना रोओ की दुनिया की मीडिया तुम्हारी कवरेज के लिए मजबूर हो जाये. फिर उसको यूएन में उठवाओ. तब तो तुमको न्याय मिल सकता है.
अन्यथा तब तक कभी मंदिर के लिए रोते रहो, कभी कश्मीर में पिटाई के लिए, १००० साल से रोते रोते आंखे भी फूट चुकी है परन्तु तरीके से एक बार भी नहीं रोए हो.
गिर कर कपडे झाड कर खड़े होने वाले के साथ तो कोई भी नहीं होता उसको तो अपनी बात मनवाने के लिए सत्ता पर काबीज होकर गर्दन पकड़ कर अपनी बात ही मनवानी पड़ती है. रोने से भीख मिल जाये गारेंटी नहीं परन्तु सांसे चलती रहेंगी. अब निर्णय आपका है.
उप्र में आरक्षण के कांग्रेस के मुद्दे से यदि अलाप्संख्यको ने यदि कांग्रेसी सरकार बनवा दी तो एक और बंटवारा कांग्रेस करवा कर ही रहेगी.
www.parshuram27.blogpsot.com

Anonymous said...

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.

गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है

औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए

अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.

Anonymous said...

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.

गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है

औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए

अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.

Anonymous said...

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.

गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है

औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए

अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.

Anonymous said...

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.
गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है
औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए
अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.

Anonymous said...

यशवंत सिंह जी हमारा उगला हुआ आपको पसंद नहीं आया आपने उसे छापा नहीं कई दिन हो गए.

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.
गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है

औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए

अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो,भारत की कचेहरिओं में दावे दायर करें मुआविज़े के लिए लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.

Unknown said...

श्री त्यागीजी ,
आपने सही कहा है हिन्दू ना तो वोट बैंक बन कर नेताओ की गर्दन पकड़ कर अपनी बात मनवा पाया है
और ना ही खुल कर रो पाया है .हिन्दू सिर्फ सहन करना ही जानता है मगर इस स्थिति से यदि उबर
नहीं पाए तो OBC का कोटा अल्पसंख्यको की भेट चढ़ जाएगा.हिन्दुओ का खून सडको पर बम्ब
धमाको में सडको पर बहता रहेगा ,खुद के देश में कैदी बन जाएगा ...अपने स्वाभिमान की रक्षा के
लिए जागना ही आखिर रास्र्ता बचा है .टिप्पणी देने के लिए आभार .

Anonymous said...

यशवंत सिंह जी
आपने मेरे कमेन्ट नहीं छापे, और न ही कारण ही बतायाआपके पास मेरा ईमेल भी है. पर आपने मुझे लिखना अनुचित समझा खैर यह आख़री बार मैं आपको फिर लिखता हूँकृपया छाप दें. मैंने इसे लिखने में काफी समय लगाया है.आप मुझे जानते हैं इसी कारण मैं फिर लिख रहा हूँ.

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.
गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है

औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए
अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.

Anonymous said...

यशवंत सिंह जी
आपने मेरे कमेन्ट नहीं छापे, और न ही कारण ही बतायाआपके पास मेरा ईमेल भी है. पर आपने मुझे लिखना अनुचित समझा खैर यह आख़री बार मैं आपको फिर लिखता हूँकृपया छाप दें. मैंने इसे लिखने में काफी समय लगाया है.आप मुझे जानते हैं इसी कारण मैं फिर लिख रहा हूँ.

इन्टरनेट या किताबों, अखबारों में लिख कर वो अपनी ज़िम्मेदारी अगर समझते हैं कि पूरी हो गयी, तो मैं कुछ नहीं कहता. बस इतना ही कि दुराचार,अत्याचार,कुकर्म, के ख़िलाफ लोगों ने सक्रिय रूप से सारी दुनियां में आवाज़ें उठाईं हैं. अपनी,अपने प्रियजनो की जानें गवाईं हैं. ये सारी दुनियाँ का इतिहास है. कोई मुझसे अगर यह कहे कि यह कहना आसान है कि लोग क्या करें ख़ुद कुछ करके दिखाना और बात है.ये भी सही है.
गोधरा जैसे काण्ड में हिदुओं को वोह करना चाहिए था और चाहिए कि वो करें जो त्यागी कह रहें हैं. यहूदियों की सारी कौम ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था. ये आपको मालूम है की क्या हुआ अंत में. आज भी कुछ लोग कहते हैं वो सब झूट है. अरे भाई इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कितनी गोलियां चलीं कितने ज़ख़्मी हुए, कितने मरे. आठ साल के बाद झूठ सच पे बहस हो रही है

औरत तो जल गयी, सती हो गयी. इसके ख़िलाफ़ जो औरतें आवाज़ उठातीं हैं उन्हें हमारे देश वासी बाज़ारू कहते हैं. हमको एक विलिअम बेंटिंक की ज़रुरत पडी, सती को हिंसात्मक कर्म ठहराने के लिए. हमारे इतिहासकार इसे 'सती की प्रथा' कहते आये हैं. अभी भी कहते हैं, प्रथा का शब्द किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग होता है.अभी राजस्थान में सुना गया. किसी ने ये नहीं कहा या लिखा कि एक औरत को जिंदा जलाकर उसकी ह्त्या कर दी गयी जिस देश में औरतों और बच्चों पे ज़ुल्म हो, उनका जीवन सुरक्षित न हो, उस देश के हर संवेदनाशील आदमी को सर झुका कर चलना चाहिए
अगर हम वाक़ई न्याय चाहते हैं तो लन्दन तक जाकर क्लाइव और हेस्टिंग्स के दुष्कर्मो के मुआवज़े के लिए कानूनन कचहरी में दावा दायर करें. अगर ये सुन कर हंसी आये तो आप से बढ़कर मूर्ख और निष्क्रिय कोई नहीं या फिर आप का जीवन ऐयाशी से गुज़र रहा है.अमेरिका, यूरोप, सब जगह लोग मुक़दमे दायर किये हुए हैं और सरकारें पीछा छुड़ाने के लिए मुआवज़ा दे रहीं हैं.