कोई आश्चर्य नहीं कि जनाब आज़म साहेब ने जान बूझ कर अधूरा शपथ पढ़ा हो !
18.3.12
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अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
कोई आश्चर्य नहीं कि जनाब आज़म साहेब ने जान बूझ कर अधूरा शपथ पढ़ा हो !
Labels: Citizens' blog
2 comments:
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी ?
sab kuchh chalta hai..
क्या यही लोकतंत्र है?
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