तुलसी और मनीप्लांट
एक वाटिका में तुलसी और मनीप्लांट पास-पास
में लगे थे .तुलसी की झाडी छोटी थी और
मनीप्लांट से विविध शाखाएं निकलकर पास के पेड़
के सहारे काफी फैल चुकी थी .
एक दिन मनीप्लांट ने तुलसी से व्यंग्य से कहा "इस
वाटिका में हम दोनों का जन्म साथ-साथहुआ है
लेकिन तुम अभी तक छोटी झाडी ही बने हो और मैं
कितना विस्तार कर चुकी हूँ ".
तुलसी का पौधा मनीप्लांट की बात पर मुस्करा के रह गया .कुछ समय
बीत गया .एक दिन वाटिका के माली ने मनीप्लांट की बहुत सी शाखाओं
को काट कर छोटी कर दी और मनीप्लांट को काफी छोटा कर दिया .
मनीप्लांट अपनी दशा पर फफक कर रो पड़ा और तुलसी के पेड़ से
बोला -"इस माली ने जगह- जगह से मुझे काट दिया और मेरे विस्तृत
रूप को छोटा कर दिया .मैं पहले मस्त हवा की बाँहों में पेड़ पर झूलती
रहती थी मगर आज जमीन पर बदहाल पड़ी हूँ जबकि उस माली ने
तुझे किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंचाई और तेरी श्रधा के साथ परिक्रमा करके चला गया.मेरे
साथ यह अन्याय क्यों हुआ?जबकि फल तुम भी नहीं देते हो और मैं भी नहीं देती" .
तुलसी की झाडी ने जबाब दिया-"यह सही है की मेरे पर फल नहीं आते मगर मुझ में और तुममे
स्वभाव का बड़ा फर्क है .तुम परजीवी हो और दुसरो के सहारे आगे बढती हो जबकि मैं छोटी झाडी
जरुर हूँ मगर अपनी जड़ों की ताकत पर खड़ी रहती हूँ .जब मेरे को मालूम चला की मैं फल नहीं दे
सकती हूँ तब इस विषम परिस्थिति में मेने अपने में गुणों का विकास किया जबकि तुम सारहीन
विभिन्न शाखाएं फैला कर बढती रही .तुम्हारी सारहीनता के कारण ही माली ने तुझे काट कर बौना
कर दिया और मेरी उपयोगिता और गुणों से प्रभावित होकर मुझे क्षति पहुंचाए बिना मेरी परिक्रमा
कर के चला गया .
(छवि -गूगल से साभार . )
1 comment:
wah!
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