Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

14.3.25

अखबारों की बढ़ती भूल, कीमत नहीं हो रही वसूल

इन दिनों समाचार पत्र मेरी हिंदी के साथ अजीबो-गरीब प्रयोग कर रहे हैं, मानो भाषा को किसी प्रयोगशाला में डालकर नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हों। आज दैनिक जनवाणी में एक खबर का शीर्षक पढ़ा—"एक नेता और उसके 'बेट' पर मुकदमा दर्ज।" 


यह पढ़कर भ्रम हुआ कि हिंदी भाषा ने कोई नया मोड़ ले लिया है या फिर संपादन विभाग ने भाषा को स्वतःस्फूर्त प्रवाह में छोड़ दिया है।

इतिहास में यह शायद पहली बार हुआ होगा कि किसी निर्जीव वस्तु पर भी मुकदमा दर्ज हो गया। अब तक अपराधी मनुष्य होते थे, लेकिन इस नई पत्रकारिता ने बेजान चीजों को भी अदालत के कटघरे तक पहुँचा दिया है। इस नवीन प्रयोग को देखकर ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में ईंट, पत्थर और बिजली के खंभे भी अभियुक्तों की सूची में शामिल कर लिए जाएंगे। 

शायद यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी अखबारों और पत्रिकाओं से दूर भाग रही है और सोशल मीडिया को अधिक भरोसेमंद मान रही है। कम से कम वहाँ पोस्ट लिखने वाले लोग अपनी भाषा और तथ्यों को लेकर अधिक सतर्क रहते हैं। दुर्भाग्यवश, अखबारों की बढ़ती अशुद्धियाँ उनके घटते पाठक वर्ग का सबसे बड़ा कारण बनती जा रही हैं।

जो अखबार कभी भाषा, विचार और अभिव्यक्ति की शुद्धता के पर्याय थे, वे अब स्वयं सुधार के मोहताज हो गए हैं। इन दिनों अखबारों में बढ़ती गलतियाँ उनके दाम से भी अधिक भारी पड़ रही हैं—पाठक मूल्य चुका रहे हैं, लेकिन बदले में भाषा की त्रुटियों का बोझ उठाना पड़ रहा है। 

भड़ास को भेजे गए मेल पर आधारित

10.3.25

एसबीआई क्रेडिट कार्ड के विवादास्पद बिल की शिकायत सीएम की जनसुनवाई पोर्टल में पंजीकृत

* पीड़ित ने लगाया आरोप कि फर्जी बिल के भुगतान के लिए वसूली गैंग कर रहा है आतंकित 

* साइबर अपराधियों और एसबीआई क्रेडिट कार्ड कंपनी की मिलीभगत आ रही है सामने 

* प्रथम दृष्टया पुलिस , साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 की अनदेखी हो रही है उजागर 

लखनऊ: एक तरफ जहां देश/ राज्य में डबल इंजन की सरकार सुशासन के दावे करते नहीं थकती है तो दूसरी ओर बैंकिंग – क्रेडिट कार्ड कंपनियों के फर्जीवाड़ों की इतनी कहानियां है जिससे चोरी – ठगी के आधुनिक तौर – तरीकों के स्वरूप का हैरतनाक दर्शन होता है। ऐसे ही एक प्रकरण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरा नगर निवासी नैमिष प्रताप सिंह का है। उन्होंने SBI क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट द्वारा फर्जी बिल भेजकर अवैध वसूली करने और पूर्व में साइबर क्राइम सेल /गाजीपुर थाने द्वारा साजिशन लापरवाही करने के नाते अपने खाते से 27 फरवरी 2024 को फर्जीवाड़ा करके निकाले गए रुपए के मामले में अभी तक FIR दर्ज न करने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विधानसभा स्थित कार्यालय में 28 फरवरी 2025 को प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करके त्वरित, निष्पक्ष वा सक्षम कार्रवाई करने के लिए उचित निर्देश देने की मांग किया हैं, जो आगे की कार्रवाई को लेकर प्रमुख सचिव (गृह) को अग्रसारित कर दिया गया है। 

मामला यह है नैमिष प्रताप सिंह के  क्रेडिट कार्ड संख्या 4726424389243830 पर एसबीआई क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट द्वारा 12 जनवरी 2025  को जो बिल भेजा गया है , उसमें  साफ – साफ लिखा है कि यह इनकी आखिरी किश्त है, इसके बावजूद पुन: 12 फरवरी 2025 को रु. 43741 का बिल भेज दिया गया  जबकि इनका कहना है कि सभी 18 किश्तों का भुगतान किया जा चुका हूं और सभी किश्तें निर्धारित अवधि में जमा हुई है। उन्होंने टोल फ्री नं./ सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘X’ (एक्स) / ईमेल से जब इसकी शिकायत की तब एसबीआई क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट ने कई दिनों तक कोई सुनवाई नही किया। 12 फरवरी के बिल में इन्होंने किस मद में शिकायतकर्ता को इन रुपयों का बकायेदार बनाया है, इसे भी नहीं लिखा है जबकि इसके पूर्व के बिल में हर चार्ज का ब्यौरा दिया जाता था। 

नैमिष प्रताप सिंह ने जब भी  एसबीआई क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट से उन्हें फोन करने वालों और टोल फ्री नं. पर फोन करके कहा कि उन्हें लखनऊ आफ़िस के प्रतिनिधि अफसर का पता/ फोन न. उपलब्ध करवा दीजिए लेकिन इसे उन्हें नहीं दिया गया। हरियाणा राज्य के गुड़गांव इलाके में बैठकर संगठित ठगी कर रहे इन लोगों को जवाबदेह बनाया जाय, इसलिए ये लोग साजिशन लखनऊ के किसी अधिकारी का मोबाइल नं. उपलब्ध नहीं करवा रहे है। उत्तर प्रदेश एक विशाल आबादी वाला राज्य है। जाहिर है कि इतनी बड़ी कंपनी अपनी शाखा यहां जरूर खोलेगी, ऐसे में संबंधित अधिकारी का फोन नं./ पता बताने में इन्हें क्या और क्यों समस्या है? अब पुलिस को एसबीआई क्रेडिट कार्ड के लखनऊ के प्रतिनिधि अफसर का कैसे मोबाइल नं./ पता दिया जाय जिससे क्रेडिट कार्ड के जरिए संगठित ठगी वालों वालों तक  लखनऊ पुलिस पहुंचे। जब इस फर्जी बिल को लेकर सोशल मीडिया एकाउंट ’X’ ( एक्स) पर पीड़ित  नैमिष प्रताप सिंह ने अपनी शिकायत डाला तब ये लोग एक नया एसआरएन की संरचना कर देते है लेकिन करते कुछ नहीं है। एक ओर इन्होंने लखनऊ के अपने प्रतिनिधि अफसर का फोन नं./ पता नहीं दिया तो दूसरी तरफ कल पूरा दिन नैमिष प्रताप सिंह को फोन करके फर्जी बिल का भुगतान करने के लिए दबाव बनाते रहे, आतंक का तांडव करते रहे। एक फोनकर्ता ने बताया कि अब उनका बिल रु. 43741 से बढ़ाकर रु. 45000 कर दिया गया है और यदि जमा नहीं हुआ तो सिविल स्कोर खराब कर दिया जाएगा। क्या बिल में यह बढ़ोत्तरी बैंकिंग नियमों के अनुरूप है? 

धोखाधड़ी करके निकाले गए रुपए को लेकर नहीं दर्ज की गई थी एफआईआर 

नैमिष प्रताप सिंह का कहना है कि इसके पूर्व 27 फरवरी 2024 को एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड के जिम्मेदार ओहदेदारों की मिलीभगत से उनका रु. 18360 निकाल लिया गया था। इसको लेकर उन्होंने कई बार टोल फ्री नं, ट्वीट, ईमेल के जरिए इस समस्या से  क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट को अवगत कराया लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। हर बार केवल नया एसआर नं. पकड़ा देते थे और फिर इधर – उधर की बातें करके मामले को खत्म करना चाहते थे। शिकायतकर्ता का कहना है कि यह रु. 18360 बैगलोर में खर्च होना दिखाया गया है। उन्होंने बार – बार कहा कि जिस भी गूगल पे – पेटीएम पर उनका रु. 18360 ट्रांसफर हुआ है, उसका विवरण उन्हें  उपलब्ध कराया जाय। कोई गुगल पे – पेटीएम खाता बिना फोन नं./ बैंक एकाउंट नं. के बन ही नहीं सकता है तब आखिरकार एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड को जिस भी गूगल पे – पेटीएम पर उनका रु. 18360 ट्रांसफर हुआ है ,उसका विवरण देने में क्या समस्या है। उनका दावा है कि चूंकि यह रु. 18360, जो उनके क्रेडिट कार्ड से निकला है, वह साइबर अपराधियों और एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड की मिलीभगत का दुष्परिणाम है इसलिए जिस खाते में उनका रु. 18360 का भुगतान हुआ है, उसका विवरण साजिशन नहीं दिया गया। 

एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड ने जब फर्जीवाड़ा करके नैमिष प्रताप सिंह का पैसा निकाले जाने की समस्या की अनदेखी किया तो उन्होंने पिछले वर्ष पुलिस आयुक्त को ईमेल के जरिए प्रार्थनापत्र भेजा, जो साइबर क्राइम सेल हजरतगंज में भेज दिया गया।  02 अप्रैल 2024  को वहां पहुंचकर नैमिष प्रताप सिंह ने अपना पक्ष प्रस्तुत किया, जिसके बाद उनका प्रार्थनापत्र ले लिया गया, जिसकी क्रमांक संख्या उन्हें  2162/ 24 बताया गया। साइबर क्राइम सेल द्वारा उनसे कहा गया कि हम अपनी जांच – पड़ताल करेंगे लेकिन आप अपने संबंधित थाने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए। इसके बाद 08 मई 2024 को नैमिष प्रताप सिंह ने गाजीपुर थाने पर जाकर प्रभारी निरीक्षक की मौजूदगी न होने पर दिवस अधिकारी के समक्ष प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया, जिस पर उन्होंने कहा कि इसे सर्वोदय नगर पुलिस चौकी को जांच के लिए भेज दिया जाएगा, जहां से उन्हें फोन आएगा लेकिन 10 महीने बीतने के बाद आज तक उन्हें कोई फोन नहीं आया। इस दौरान शिकायतकर्ता ने साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर भी फोन किया तो उन्होंने कहा कि जब तक थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं दर्ज होगी तब तक कोई सुनवाई नहीं होगी। जब शिकायतकर्ता की कहीं से रु. 18360 की ठगी को लेकर कोई सुनवाई नहीं हुई तो अगले बिल में जब रु. 18360 जुड़कर आया तब उन्होंने इसका पूर्ण भुगतान कर दिया।                 

नैमिष प्रताप सिंह का दावा है कि एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड ने लगभग प्रत्येक माह निर्धारित किश्त रु. 5839.51 से अधिक का बिल भेजा है, जिसका भी उन्होंने समय से भुगतान किया है और इस ठगी को लेकर भी उनकी कोई शिकायत इन लोगों के  द्वारा नहीं सुनी गई, टोल फ्री नं. पर फोन करने पर केवल इधर – उधर की बातों से उन्हें बहलाया गया। 

पीड़ित शिकायतकर्ता ने कहा कि एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड की समस्त किश्तें समयानुसार जमा किया गया है। उन्होंने कहा कि इस क्रेडिट कार्ड के अलावा या किसी अन्य क्रेडिट कॉर्ड, गाड़ी आदि किसी भी अन्य लोन की कभी भी कोई एक भी किश्त के भुगतान में उनसे कोई देरी भी नहीं हुई है। उनका पूरे जीवन में कोई एक भी चेक बाउंस नहीं हुआ है, इन्हीं कारणों से उनका  सिविल स्कोर हमेशा अच्छा रहता है। उन्होंने बताया कि एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड का क्रेडिट कार्ड उन्हें  यूको बैंक की गोमती नगर शाखा में, जहां उनका बचत खाता है, वहां लेन – देंन का रिकॉर्ड अच्छा बताकर बनाया गया था अर्थात ठगी की पृष्ठभूमि गोमतीनगर के यूको बैंक परिसर में तैयार हुई। 

सवाल यह है कि क्या साजिशन फर्जी बिल भेजने के लिए जिम्मेदार मैनेजर – कस्टमर केयर सर्विस / सक्षम अधिकारी , एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड,डीएलएफ इंफिनिटी टावर्स, टावर सी, 12वीं मंजिल, ब्लाक 2, बिल्डिंग 3, डीएलएफ साइबर सिटी, गुड़गांव – 122002 हरियाणा के खिलाफ लखनऊ पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी? क्या एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड द्वारा अपने लखनऊ के प्रतिनिधि अफसर का पीड़ित शिकायतकर्ता का कोई मोबाइल नं./ पता देने के बजाय उनका मो. नं. ‘वसूली गैंग ’ को पकड़ा दिया है जिसने कल पूरा दिन उन्हें फोन कर – करके फर्जी बिल के अवैध वसूली करने का दबाव बनाया जाता रहा। अब क्या वसूली गैंग के खिलाफ नैमिष प्रताप सिंह को साजिशन प्रताड़ित करने के मामले में लखनऊ पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी? क्या 02 अप्रैल 2024 को साइबर क्राइम सेल, हजरतगंज और 08 मई 2024 को गाजीपुर थाने पर एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड द्वारा नैमिष प्रताप सिंह के साथ की  गई ठगी के शिकायत की जो अनदेखी की गई, उनकी प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं लिखी गई, क्या उसके लिए साइबर क्राइम सेल / गाजीपुर थाने की पुलिस का कोई उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुए जिम्मेदारों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी? 






शिकायतकर्ता :  नैमिष प्रताप सिंह, मोबाइल नं: 8188052544

24.1.25

फर्जी ऑपरेशन कर रहा था डॉक्टर, एक्सपोज करने वाले रिपोर्टर को मिली धमकी

मनीष मिश्रा- 

पडरौना का डाक्टर पुष्कर यादव आयुष्मान का पैसा खाने के लिए यूरिन के रास्ते पथरी डालकर फिर सर्जरी करता है। 

घोटाले का यह नया ट्रेंड एक्सपोज करने पर मुझे मेडिकल माफिया जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। सीएम से लेकर डीजीपी तक को ईमेल किया है।

बाबा का बुलडोजर ऐसे हॉस्पिटल के खिलाफ चलना चाहिए जिनकी नींव ही मेडिकल क्राइम पर खड़ी है। यूरिन के रास्ते पथरी डालकर 24 घंटे बाद ऑपरेशन कर निकालने वाले डॉक्टर अपराधियों से भी खतरनाक हैं।



22.1.25

व्यंग्य : माफिया, माफियोज़, माफियसु का हिन्दी तर्जुमा सरकारी खर्च पर जून में आएगा!



संजय दुबे-

क्त सारे शब्द 'इटालियन' हैं। आभासी रुप में 'बालक के रूप और विभक्ति' से मिलते स्वरुप के चलते इस पर आगामी जून में दिल्ली के पांच सितारा होटल में विद्वानों, प्रोफ़ेसरों की एक संगोष्ठी आयोजित है। जिसका खर्चा सुनने में आया है सरकार उठायेगी।

इतनी बड़ी इंडस्ट्री के लिए अभी हिन्दी में शब्द नहीं है, ये शर्म की बात है। आज़, भारत में पुराने नामों को नया नाम दिया जा रहा है। आत्मनिर्भर भारत के लिए ये अति आवश्यक है। चाँद पर पहुंचने के बाद भी हमें विदेशी शब्दों से काम चलाना पड़े है जिससे राष्ट्रीय शर्म सी 'फीलिंग' आती है। 

'माफिया' माननीय है या गरीबों के मसीहा? इस पर देश के विद्वानों में एक राय नहीं है। इसी को लेकर एक दानिशवरों का एक ख़ास इजलास दिल्ली में होना है। जहां इसके लिए उपयुक्त शब्द निर्धारित किये जाने के आसार हैं। माफिया नामक उपाधि धारक उद्योगपतियों, स्वयंभू घोषित डेरा, आश्रम संचालकों की एक लंबी कतार समूचे देश में दिखती है। बस, उत्तर प्रदेश में फिलहाल इनका सरकारी अनुदान और अनुकम्पा, बर्खास्त है। वहां ये उद्योग दम तोड़ रहा है।

यहां माफिया बनने के लिए क़ोई तैयार नहीं दिख रहा है। अकेले अपने दम पर इतने बड़े सूबे में इतनी बड़ी कुर्सी हासिल करना संभव ही नहीं नामुमकिन है। वैसे माफिया इतने प्रतिभाशाली होते है कि इनके प्रतिभा पुंज से हर खित्ता रौशन है। 

शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि-प्रबंधन, परिवहन, खनन, शेयर मार्किट में इनका सिक्का चले है। किसी भी क्षेत्र में जहां विकास की थोड़ी भी गुंजाइश है वहां ये अपना हुनर दिखाने से बाज़ नहीं आ रहे है। उदारीकरण के बाद इनका मान-सम्मान भी तेजी से बढ़ा है। समृद्धि इनके यहां नौबत बजाती है। इस फील्ड की प्रगति ऐतिहासिक है। सारे भौतिक सुखों के साधन इतनी तेजी से इस क्षेत्र में हासिल होते हैं कि आप देश के सामान्य विकास दर से इसे किसी अन्य क्षेत्र में जीवन भर में हासिल नहीं कर पाएंगे।

जैसे ही इस ख़ास सर्किल में आप दाखिल होते हो, आपकी विकास दर दो अंको में ''मासिक "हो जाती है। अब आप ही बताओ क़ोई इनको कैसे सम्मान नहीं दें? लिहाजा इनके सामने सर झुकाने के अलावा आम आदमी के पास क़ोई विकल्प ही नहीं है। इसलिए देश के हर क्षेत्र में इस तरह की दौड़ आपको हर फील्ड में देखने को मिल जायेगी। 

माफिया बनना इतना आसान नहीं होता। इसके लिए आपके पास 'माफियसु' होना चाहिए। फ़िर 'माफियोज़' भी बहुत जरूरी है। इन दोनों में अगर एक भी आपके पास नहीं है तो इस क्षेत्र में असफल होना तय है। जबरदस्ती बनने की कोशिश करेंगे तब यमलोक जरा जल्दी ही जाना पड़ेगा। माफिया होना नैसर्गिक गुण है। कुछ, प्रयास और अभ्यास करके भी इस कठिन मुकाम को हासिल करते है। पर उनके सर पर भी किसी अग्रज का ही हाथ होता है। अगर ये हाथ नहीं हो तब, आपके पाँव जमीं पर नहीं जन्नत पर होते है।

नैसर्गीक रूप से कौन-कौन गुण होते है जिससे ऐसे लोगों को पहचाना जाता है। ये गूढ़ बात बतानी नहीं चाहिए। आप इस आलेख को पढ़ रहे हैं तब नैतिक रूप से मेरी ये जिम्मेदारी है कि मैं इस ज्ञान को आप संग साझा करूँ। 

जो बच्चा जन्म के समय देर से रोयें। कम रोयें। दांत सहित पैदा हो। हर वो काम करे जिससे माता-पिता को गुस्सा आये। समझ लो प्रतिभावान है। कक्षा में हमेशा देर से पहुंचे। टीचर की क़ोई बात न मानें। हमेशा विद्रोह की बात करे। कॉलेज, यूनिवर्सिटी में पढ़ने के बजाय लड़ने के तरीके सीखे। विद्या प्राप्त करने से ज्यादा रुचि उससे होने वाले नुकसान के बारे में ज्ञान अर्जित करें। कभी भी प्रोफ़ेसरों की बातों पर अमल न करें। विज्ञान, कला, साहित्य की अपेक्षा कानून, संविधान, जुर्माना का समग्र ज्ञान अर्जित करे। किसी भी चीज़ के पास न होने पर उसे दूसरे से कैसे हासिल करें? इसके सम्यक ज्ञान प्राप्ति में अबाध रूप से लगा रहना। ये अति आवश्यक गुण है। 

सबसे ज़्यादा जरुरी अहर्ता होती है मौके को भांपना। ये माफियाओं में मिलने वाला सबसे कॉमन गुण है। बातों से फिरना, लाभ के लिए दुश्मन से भी हाथ मिला लेना। दोस्तों को दगा देने में थोड़ा भी संकोच नहीं करना। कुल मिला कर धूर्तई, मक्कारी, चालाकी, मौकापरस्ती का पूरा कम्प्लीट पैक होना ही एक अच्छे माफिया की पहचान है। इतनी बड़ी सम्मानित कुर्सी पाना आज़ सहज नहीं है। आईएएस परीक्षा में भले सीटें लगातार कम हो रही हों लेकिन यहां तो शुरू से ही कम रही है। फिर भी किसी माफिया बनने की चाहत रखने वाले छात्रों को इसका रोना रोते देखा है? ये सबसे बड़ा गुण है। धैर्य तो इतना कि 'काक दृष्टि वको ध्यानम' इन्हीं को देख कर लिखा गया है। 

इतने सारे गुणों के साथ-साथ 'माफियोज़' का भी इनके साथ होना जरुरी होता है। इस शब्द का क्या अर्थ हो सकता है? इस पर जून में दिल्ली की मीटिंग में फैसला होगा। फ़ौरी तौर पर जो मेरी जानकारी है उसे मैं आपको दे रहा हूं। इसको हिन्दी में कहते है 'चेला-चपाटी।' ये जिनके साथ रहें समझो दुनिया उसकी मुठ्ठी में। कभी-कभी ये वो काम कर देते हैं जिस पर माफिया सोच भी नहीं पाता। किसी को ठिकाने लगाते-लगाते ख़ुद इच्छा होने पर बॉस को ही ठिकाने लगा देना। गला नापने से लेकर काटने तक के हुनर वालों की टीम रखना एक अच्छे माफिया की ख़ूबी होती है।

ये माफियोज़ को बहुत जल्दी पहचान जाते है। किसको, कब, क्या जरुरत है? सब इनको पता होता है। माफियोज़ ही तय करते है कि माफिया कितना बड़ा होगा। रही बात सबसे अहम योग्यता की तो वो अकड़ की होती है। पता नहीं इतालवी भाषा में माफियसु जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया गया? 

खैर! हिन्दी के जानकारों की प्रस्तावित जून की मीटिंग तक इसी से काम चलाइये। लब्बोलुआब ये कि अकड़, दोस्त, सहयोग ही आपको एक सफल माफिया बना सकता है। ये ही माफिया, माफियोज़, माफियसु का साधारण बोलचाल की भाषा में अनुवाद है। आप चाहे तो अपने क्षेत्र के किसी माफिया को देखकर उससे सीख सकते है। बिना हुनर के कैसे सफल हो सकते है? गंभीरता से बस इन्हें देखिये। सब पता चल जायेगा।

ये हर जगह है। निजी, सरकारी, सहकारी हर ऑफिस से लगाये घास मंडी, सब्जी मंडी, ग़ल्ला मंडी, दूध मंडी हर पैसा बनाने वाली जगह में मिल जायेंगे। यहां तक कि प्रसिद्ध मंदिरों के पास भी। बिना नुक्स के नुक्स निकालते। फ़िर उसका समाधान करने का उपाय बताते। काम करने वाले को हतोत्साहित करते। नाकारों की बड़ाई करते। चाटुकारों की फ़ौज के दम पर हवाई किले बनाते। मौका देखकर दूसरे की करी गई मेहनत को अपनी बता कर ख़ुद की पीठ ठोंकवाते। ये सारे गुणसम्पन्न व्यक्ति आपको अपने पास दिख सकते हैं। बशर्ते आप कोशिश करो। 

ख़ैर! माफिया, माफियोज़, माफियसु के बारे में इतनी ही मेरी जानकारी है। अगर आपके पास इन शब्दों के लिए हिन्दी में क़ोई शब्द हो तो "भड़ासी गुरु" के 'विपत्र' पर पत्र से सूचित करियेगा। हाँ! तो बंधुओं, अब! जून तक का इंतज़ार करिये। देश के विद्वान दिल्ली में जुटान कर तफ़सील से इसका हिंदुस्तानी तरजुमा करेंगे। तब तक के लिये दीजिये इज़ाज़त। आदाब अर्ज़ है।

मऊ निवासी संजय दुबे कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पिछले 20 वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं. उनके कॉलम हिंदुस्तान, जनसत्ता, दैनिक जागरण, देशबंधु इत्यादि अखबारों में लगातार छपते हैं. उनसे संपर्क- 98898 34756 पर कर सकते हैं।